निर्जला एकादशी
निर्जला एकादशी
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अन्य नाम | भीमसेन एकादशी या पांडव एकादशी |
अनुयायी | हिन्दू |
उद्देश्य | यह व्रत मन को संयम सिखाता है और शरीर को नई ऊर्जा देता है। |
प्रारम्भ | पौराणिक काल |
तिथि | ज्येष्ठ शुक्ल एकादशी |
उत्सव | इस एकादशी का व्रत करके यथा सामर्थ्य अन्न, जल, वस्त्र, आसन, जूता, छतरी, पंखी तथा फलादि का दान करना चाहिए। |
अनुष्ठान | इस दिन जल कलश, गौ का दान बहुत पुण्य देने वाला माना गया है। यह व्रत पुरुष और महिलाओं दोनों द्वारा किया जा सकता है। |
धार्मिक मान्यता | ऐसी धार्मिक मान्यता है कि कोई भी व्यक्ति मात्र निर्जला एकादशी का व्रत करने से साल भर की पच्चीस एकादशी का फल पा सकता है। |
प्रसिद्धि | निर्जला यानि यह व्रत बिना जल ग्रहण किए और उपवास रखकर किया जाता है। |
अन्य जानकारी | इस दिन विधिपूर्वक जल कलश का दान करने वालों को वर्ष भर की एकादशियों का फल प्राप्त होता है। इस एकादशी का व्रत करने से अन्य तेईस एकादशियों पर अन्न खाने का दोष छूट जाएगा तथा सम्पूर्ण एकादशियों के पुण्य का लाभ भी मिलेगा। |
निर्जला एकादशी (अंग्रेज़ी: Nirjala Ekadashi) का व्रत हिन्दू धर्म में विशेषतौर पर मनाया जाता है। हिन्दुओं में वर्ष में चौबीस एकादशियाँ आती हैं, किन्तु इन सब एकादशियों में ज्येष्ठ शुक्ल एकादशी सबसे बढ़कर फल देने वाली समझी जाती है, क्योंकि इस एक एकादशी का व्रत रखने से वर्ष भर की एकादशियों के व्रत का फल प्राप्त होता है। निर्जला एकादशी का व्रत अत्यन्त संयम साध्य है। कृष्ण पक्ष और शुक्ल पक्ष दोनों पक्षों की एकादशी में अन्न खाना वर्जित है।
महत्त्व
हिन्दू माह के ज्येष्ठ मास की शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि को निर्जला एकादशी का व्रत किया जाता है। निर्जला यानि यह व्रत बिना जल ग्रहण किए और उपवास रखकर किया जाता है। इसलिए यह व्रत कठिन तप और साधना के समान महत्त्व रखता है। हिन्दू पंचाग अनुसार वृषभ और मिथुन संक्रांति के बीच शुक्ल पक्ष की एकादशी निर्जला एकादशी कहलाती है। इस व्रत को भीमसेन एकादशी या पांडव एकादशी के नाम से भी जाना जाता है। पौराणिक मान्यता है कि भोजन संयम न रखने वाले पाँच पाण्डवों में एक भीमसेन ने इस व्रत का पालन कर सुफल पाए थे। इसलिए इसका नाम भीमसेनी एकादशी भी हुआ।
हिन्दू धर्म में एकादशी व्रत का मात्र धार्मिक महत्त्व ही नहीं है, इसका मानसिक एवं शारीरिक स्वास्थ्य के नज़रिए से भी बहुत महत्त्व है। एकादशी का व्रत भगवान विष्णु की आराधना को समर्पित होता है। इस दिन जल कलश, गौ का दान बहुत पुण्य देने वाला माना गया है। यह व्रत मन को संयम सिखाता है और शरीर को नई ऊर्जा देता है। यह व्रत पुरुष और महिलाओं दोनों द्वारा किया जा सकता है। वर्ष में अधिकमास की दो एकादशियों सहित 26 एकादशी व्रत का विधान है। जहाँ साल भर की अन्य 25 एकादशी व्रत में आहार संयम का महत्त्व है। वहीं निर्जला एकादशी के दिन आहार के साथ ही जल का संयम भी ज़रूरी है। इस व्रत में जल ग्रहण नहीं किया जाता है यानि निर्जल रहकर व्रत का पालन किया जाता है।
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ एवं य: कुरुते पूर्णा द्वादशीं पापनासिनीम्। सर्वपापविनिर्मुक्त: पदं गच्छन्त्यनामयम्॥
- ↑ देवदेव ह्रषीकेश संसारार्णवतारक। उदकुम्भप्रदानेन नय माँ परमां गतिम्॥