गुड़ी पड़वा  

गुड़ी पड़वा
गुड़ी पड़वा
अन्य नाम वर्ष प्रतिपदा, उगादि, नवसंवत्सर तिथि
अनुयायी हिंदू
प्रारम्भ पौराणिक काल
तिथि चैत्र शुक्ल पक्ष प्रतिपदा
अनुष्ठान पूरनपोली और श्रीखंड का नैवेद्य चढ़ा कर नवदुर्गा, श्रीरामचन्द्र एवं उनके भक्त हनुमान की विशेष आराधना की जाती है।
धार्मिक मान्यता कहा जाता है कि ब्रह्मा ने सूर्योदय होने पर सबसे पहले चैत्र मास की शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा को ही सृष्टि की संरचना शुरू की।
विशेष इस दिन नीम की पत्तियाँ खाएँ और दूसरों को भी खिलाएँ।
अन्य जानकारी इस दिन घरों के आगे एक-एक 'गुड़ी' या झंडा रखा जाता है और उसके साथ स्वास्तिक चिह्न वाला एक बर्तन व रेशम का कपड़ा भी रखा जाता है।

गुड़ी पड़वा 'हिन्दू नववर्ष' के रूप में पूरे भारत में मनाई जाती है। चैत्र मास में शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा को "गुड़ी पड़वा" या "वर्ष प्रतिपदा" या "उगादि" (युगादि) कहा जाता है। इस दिन सूर्य, नीम की पत्तियाँ, अर्ध्य, पूरनपोली, श्रीखंड और ध्वजा पूजन का विशेष महत्त्व होता है। माना जाता है कि चैत्र माह से हिन्दूओं का नववर्ष आरंभ होता है। सूर्योपासना के साथ आरोग्य, समृद्धि और पवित्र आचरण की कामना की जाती है। गुड़ी पड़वा के दिन घर-घर में विजय के प्रतीक स्वरूप गुड़ी सजाई जाती है। उसे नवीन वस्त्राभूषण पहना कर शक्कर से बनी आकृतियों की माला पहनाई जाती है। पूरनपोली और श्रीखंड का नैवेद्य चढ़ा कर नवदुर्गा, श्रीरामचन्द्र एवं उनके भक्त हनुमान की विशेष आराधना की जाती है।

हिन्दू नववर्ष का प्रारम्भिक दिन

'गुड़ी पड़वा' के अवसर पर लोग अपने घरों की साफ-सफाई करते हैं, द्वार पर रंगोली बनाते हैं और दरवाज़ों को आम की पत्तियों व गेंदे के फूलों से सजाते हैं। इस दिन घरों के आगे एक-एक 'गुड़ी' या झंडा रखा जाता है और उसके साथ स्वास्तिक चिह्न वाला एक बर्तन व रेशम का कपड़ा भी रखा जाता है। लोग पारम्परिक वस्त्र पहनते हैं। महिलाएँ नौ गज लम्बी साड़ी पहनती हैं। वैसे तो पौराणिक रूप से गुड़ी पड़वा का अलग महत्त्व है, लेकिन प्राकृतिक रूप से इसे समझा जाए तो सूर्य ही सृष्टि के पालनहार हैं। अत: उनके प्रचंड तेज को सहने की क्षमता पृ‍‍थ्वीवासियों में उत्पन्न हो, ऐसी कामना के साथ सूर्य की अर्चना की जाती है। इस दिन 'सुंदरकांड', 'रामरक्षास्तोत्र' और देवी भगवती के मंत्र जाप का विशेष महत्त्व है। हमारी भारतीय संस्कृति और ऋषियों-मुनियों ने 'गुड़ी पड़वा' अर्थात् चैत्र शुक्ल पक्ष प्रतिपदा से 'नववर्ष' का आरंभ माना है। 'गुड़ी पड़वा' पर्व धीरे-धीरे औपचारिक होती चली जा रही है, लेकिन इसका व्यापक प्रचार-प्रसार नहीं हो पाया है।

अर्थ तथा महत्त्व

'गुड़ी' का अर्थ होता है- 'विजय पताका'। कहा जाता है कि इसी दिन ब्रह्मा ने सृष्टि का निर्माण किया था। इसी दिन से नया संवत्सर भी प्रारम्भ होता है। अत: इस तिथि को 'नवसंवत्सर' भी कहते हैं। कहा जाता है कि ब्रह्मा ने सूर्योदय होने पर सबसे पहले चैत्र मास की शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा को सृष्टि की संरचना शुरू की। उन्होंने इस प्रतिपदा तिथि को 'प्रवरा' अथवा 'सर्वोत्तम तिथि' कहा था। इसलिए इसको सृष्टि का प्रथम दिवस भी कहते हैं। इस दिन से संवत्सर का पूजन, नवरात्र का घटस्थापन, ध्वजारोपण, वर्षेश का फल पाठ आदि विधि-विधान किए जाते हैं। चैत्र शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा वसंत ऋतु में आती है। इस ऋतु में सम्पूर्ण सृष्टि में सुन्दर छटा बिखर जाती है।

मान्यताएँ

हिन्दू धर्म में गुड़ी पड़वा को लेकर कई प्रकार की मान्यताएँ व्याप्त हैं- जैसे-

  • कहा जाता है कि चैत्र मास में शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा के दिन भगवान विष्णु ने मत्स्य रूप में अवतार लिया था। सूर्य में अग्नि और तेज हैं, चन्द्रमा में शीतलता। शान्ति और समृद्धि का प्रतीक सूर्य और चन्द्रमा के आधार पर ही सायन गणना की उत्पत्ति हुई है। इससे ऐसा सामंजस्य बैठ जाता है कि तिथि वृद्धि, तिथि क्षय, अधिक मास, क्षय मास आदि व्यवधान उत्पन्न नहीं कर पाते। तिथि घटे या बढ़े, लेकिन 'सूर्य ग्रहण' सदैव अमावस्या को होगा और 'चन्द्र ग्रहण' सदैव पूर्णिमा को ही होगा।
  • यह भी मान्यता है कि ब्रह्मा ने वर्ष प्रतिपदा के दिन ही सृष्टि की रचना की थी। विष्णु भगवान ने वर्ष प्रतिपदा के दिन ही प्रथम जीव अवतार (मत्स्यावतार) लिया था।
  • माना जाता है कि शालिवाहन ने शकों पर विजय आज के ही दिन प्राप्त की थी। इसलिए 'शक संवत्सर' प्रारंभ हुआ।
  • मराठी भाषियों की एक मान्यता यह भी है कि मराठा साम्राज्य के अधिपति छत्रपति शिवाजी महाराज ने वर्ष प्रतिपदा के दिन ही 'हिन्दू पद पादशाही' का भगवा विजय ध्वज लगाकर हिन्दू साम्राज्य की नींव रखी थी।[1]
  • चैत्र ही एक ऐसा महीना है, जिसमें वृक्ष तथा लताएँ फलते-फूलते हैं। शुक्ल प्रतिपदा का दिन चंद्रमा की कला का प्रथम दिवस माना जाता है। जीवन का मुख्य आधार वनस्पतियों को सोमरस चंद्रमा ही प्रदान करता है। इसे औषधियों और वनस्पतियों का राजा कहा गया है। इसीलिए इस दिन को वर्षारंभ माना जाता है।
  • कई लोगों की मान्यता है कि इसी दिन भगवान राम ने बाली के अत्याचारी शासन से दक्षिण की प्रजा को मुक्ति दिलाई थी। बाली के त्रास से मुक्त हुई प्रजा ने घर-घर में उत्सव मनाकर ध्वज (गुडियाँ) फहराए। आज भी घर के आँगन में गुड़ी खड़ी करने की प्रथा महाराष्ट्र में प्रचलित है। इसीलिए इस दिन को 'गुड़ी पडवा' नाम दिया गया। महाराष्ट्र में इस दिन पूरनपोली या मीठी रोटी बनाई जाती है। इसमें जो चीजें मिलाई जाती हैं, वे हैं- गुड़, नमक, नीम के फूल, इमली और कच्चा आम। गुड़ मिठास के लिए, नीम के फूल कड़वाहट मिटाने के लिए और इमली व आम जीवन के खट्टे-मीठे स्वाद चखने का प्रतीक होती है।[2]
  • 'नवसंवत्सर' प्रारम्भ होने पर भगवान की पूजा करके प्रार्थना करनी चाहिए- "हे भगवान! आपकी कृपा से मेरा वर्ष कल्याणमय हो, सभी विघ्न बाधाएँ नष्ट हों। दुर्गा की पूजा के साथ नूतन संवत्‌ की पूजा करें। घर को वन्दनवार से सजाकर पूजा का मंगल कार्य संपन्न करें। कलश स्थापना और नए मिट्टी के बरतन में जौ बोएँ और अपने घर में पूजा स्थल में रखें। स्वास्थ्य को अच्छा रखने के लिए नीम के पेड़ की कोंपलों के साथ मिस्री खाने का भी विधान है। इससे रक्त से संबंधित बीमारी से मुक्ति मिलती है।

क्या करें

  1. घर को ध्वजा, पताका, तोरण, बंदनवार, फूलों आदि से सजाएँ व अगरबत्ती, धूप आदि से सुगंधित करें।
  2. दिनभर भजन-कीर्तन कर शुभ कार्य करते हुए आनंदपूर्वक दिन व्यतीत करना चाहिए।
  3. सभी जीव मात्र तथा प्रकृति के लिए मंगल कामना करें।
  4. नीम की पत्तियाँ खाएँ और दूसरों को भी खिलाएँ।
  5. ब्राह्मण की अर्चना कर लोकहित में प्यासे लोगों के लिए प्याऊ स्थापित करना चाहिए।
  6. इस दिन नए वर्ष का पंचांग या भविष्यफल ब्राह्मण के मुख से सुनें।
  7. इस दिन से 'दुर्गा सप्तशती' या 'रामायण' का नौ-दिवसीय पाठ आरंभ करें।
  8. आज से परस्पर कटुता का भाव मिटाकर समता-भाव स्थापित करने का संकल्प लेना चाहिए।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. गुड़ी पड़वा- हिन्दू नववर्ष (हिन्दी)। । अभिगमन तिथि: 29 मई, 2013।
  2. गुड़ी पड़वा का महत्त्व (हिन्दी)। । अभिगमन तिथि: 29 मई, 2013।

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