नन्दोत्सव
नन्दोत्सव
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अनुयायी | हिन्दू |
तिथि | भाद्रपद कृष्ण पक्ष नवमी |
उत्सव | यह उत्सव 'दधिकांदों' के रूप मनाया जाता है, 'दधिकांदो' का अर्थ है दही की कीच। हल्दी मिश्रित दही फेंकने की परम्परा आज भी निभाई जाती है। |
प्रसिद्धि | हिन्दू धार्मिक महोत्सव |
संबंधित लेख | ब्रज, मथुरा, वृन्दावन, कृष्ण, राधा, नंद, यशोदा, नंदगाँव, बरसाना |
अन्य जानकारी | मथुरा ज़िले में वृंदावन के विशाल श्री रंगनाथ मंदिर में ब्रज के नायक श्रीकृष्ण के जन्मोत्सव के दूसरे दिन नन्दोत्सव की धूम रहती है। |
अद्यतन | 11:30, 13 अगस्त 2016 (IST)
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नन्दोत्सव भगवान श्रीकृष्ण के जन्म (कृष्ण जन्माष्टमी) के दूसरे दिन समूचे ब्रजमण्डल में मनाया जाने वाला प्रमुख उत्सव है। ब्रज क्षेत्र के गोकुल और नंदगांव में श्रीकृष्ण के जन्मोत्सव के दूसरे दिन नंदोत्सव या नंद उत्सव का विशेष आयोजन होता है। शास्त्रों के अनुसार कंस की नगरी मथुरा में अर्धरात्रि में श्रीकृष्ण के जन्म के बाद सभी सैनिकों को नींद आ जाती है और वसुदेव की बेड़ियां खुल जाती हैं। तब वसुदेव कृष्णलला को गोकुल में नंदराय के यहां छोड़ आते हैं। नंदराय जी के घर लाला का जन्म हुआ है, धीरे-धीरे यह बात पूरे गोकुल में फैल जाती है। अतः श्रीकृष्ण जन्म के दूसरे दिन गोकुल में 'नंदोत्सव' पर्व मनाया जाता है। भाद्रपद मास की नवमी पर समस्त ब्रजमंडल में नंदोत्सव की धूम रहती है। इस दिन सुप्रसिद्ध 'लठ्ठे के मेले' का आयोजन किया जाता है। मथुरा ज़िले में वृंदावन के विशाल श्री रंगनाथ मंदिर में ब्रज के नायक भगवान श्रीकृष्ण के जन्मोत्सव के दूसरे दिन नन्दोत्सव की धूम रहती है।
उत्सव
अर्धरात्रि में श्रीकृष्ण का जन्म कंस के कारागार में होने के बाद उनके पिता वसुदेव कंस के भय से बालक को रात्रि में ही यमुना नदी पार कर नन्द बाबा के यहाँ गोकुल में छोड़ आये थे। इसीलिए कृष्ण जन्म के दूसरे दिन गोकुल में 'नन्दोत्सव' मनाया जाता है। भाद्रपद नवमी के दिन समस्त ब्रजमंडल में नन्दोत्सव की धूम रहती है।