कृष्ण  

कृष्ण विषय सूची
संक्षिप्त परिचय
कृष्ण
अन्य नाम वासुदेव, मोहन, द्वारिकाधीश, केशव, गोपाल, नंदलाल, बाँके बिहारी, कन्हैया, गिरधारी, मुरारी, मुकुंद, गोविन्द, यदुनन्दन, रणछोड़ आदि
अवतार सोलह कला युक्त पूर्णावतार (विष्णु)
वंश-गोत्र वृष्णि वंश (चंद्रवंश)
कुल यदुकुल
पिता वसुदेव
माता देवकी
पालक पिता नंदबाबा
पालक माता यशोदा
जन्म विवरण भाद्रपद, कृष्ण पक्ष, अष्टमी
समय-काल महाभारत काल
परिजन रोहिणी (विमाता), बलराम (भाई), सुभद्रा (बहन), गद (भाई)
गुरु संदीपन, आंगिरस
विवाह रुक्मिणी, सत्यभामा, जांबवती, मित्रविंदा, भद्रा, सत्या, लक्ष्मणा, कालिंदी
संतान प्रद्युम्न, अनिरुद्ध, सांब
विद्या पारंगत सोलह कला, चक्र चलाना
रचनाएँ 'गीता'
शासन-राज्य द्वारिका
संदर्भ ग्रंथ 'महाभारत', 'भागवत', 'छान्दोग्य उपनिषद'।
मृत्यु पैर में तीर लगने से।
संबंधित लेख कृष्ण जन्म घटनाक्रम, कृष्ण बाललीला, गोवर्धन लीला, कृष्ण बलराम का मथुरा आगमन, कंस वध, कृष्ण और महाभारत, कृष्ण का अंतिम समय

श्रीकृष्ण को हिन्दू धर्म में भगवान विष्णु का अवतार माना जाता है। सनातन धर्म के अनुसार भगवान विष्णु सर्वपापहारी पवित्र और समस्त मनुष्यों को भोग तथा मोक्ष प्रदान करने वाले प्रमुख देवता हैं। श्रीकृष्ण साधारण व्यक्ति न होकर 'युग पुरुष' थे। उनके व्यक्तित्व में भारत को एक प्रतिभा सम्पन्न 'राजनीतिवेत्ता' ही नही, एक महान् 'कर्मयोगी' और 'दार्शनिक' प्राप्त हुआ, जिसका 'गीता' ज्ञान समस्त मानव-जाति एवं सभी देश-काल के लिए पथ-प्रदर्शक है। कृष्ण की स्तुति लगभग सारे भारत में किसी न किसी रूप में की जाती है। वे लोग जिन्हें हम साधारण रूप में नास्तिक या धर्म निरपेक्ष की श्रेणी में रखते हैं, निश्चित रूप से 'श्रीमद्‍ भगवद्गीता' से प्रभावित हैं। 'गीता' किसने और किस काल में कही या लिखी यह शोध का विषय है, किन्तु 'गीता' को कृष्ण से ही जोड़ा जाता है। यह आस्था का प्रश्न है और यूँ भी आस्था के प्रश्नों के उत्तर इतिहास में नहीं तलाशे जाते।

ब्रज

ब्रज या शूरसेन जनपद के इतिहास में श्रीकृष्ण का समय बड़े महत्त्व का है। इसी समय में प्रजातंत्र और नृपतंत्र के बीच कठोर संघर्ष हुए। मगध राज्य की शक्ति का विस्तार हुआ और भारत का वह महान् भीषण संग्राम हुआ, जिसे महाभारत युद्ध कहते हैं। इन राजनीतिक हलचलों के अतिरिक्त इस काल का सांस्कृतिक महत्त्व भी है। मथुरा नगरी इस महान् विभूति का जन्मस्थान होने के कारण धन्य हो गई। मथुरा ही नहीं, सारा शूरसेन या ब्रज जनपद आनंदकंद कृष्ण की मनोहर लीलाओं की क्रीड़ाभूमि होने के कारण गौरवान्वित हो गया। मथुरा और ब्रज को कालांतर में जो असाधारण महत्त्व प्राप्त हुआ, वह इस महापुरुष की जन्मभूमि और क्रीड़ाभूमि होने के कारण ही प्राप्त हुआ। श्रीकृष्ण भागवत धर्म के महान् स्रोत हुए। इस धर्म ने कोटि-कोटि भारतीय जन का अनुरंजन तो किया ही, साथ ही कितने ही विदेशी इसके द्वारा प्रभावित हुए। प्राचीन और अर्वाचीन साहित्य का एक बड़ा भाग कृष्ण की मनोहर लीलाओं से ओत-प्रोत है। उनके लोकरंजक रूप ने भारतीय जनता के मानस-पटल पर जो छाप लगा दी है, वह अमिट है। ब्रज में भगवान श्रीकृष्ण को लोग कई नामों से पुकारते है- कान्हा, गोपाल, गिरधर, माधव, केशव, मधुसूदन, गिरधारी, रणछोड़, बंशीधर, नंदलाल, मुरलीधर आदि नामों से जाने जाते हैं।

कृष्ण जन्म का समय

वर्तमान ऐतिहासिक अनुसंधानों के आधार पर श्रीकृष्ण का जन्म लगभग ई. पू. 1500 माना जाता है। ये सम्भवत: 100 वर्ष से कुछ ऊपर की आयु तक जीवित रहे। अपने इस दीर्घ जीवन में उन्हें विविध प्रकार के कार्यों में व्यस्त रहना पड़ा। उनका प्रारंभिक जीवन तो ब्रज में कटा और शेष द्वारका में व्यतीत हुआ। बीच-बीच में उन्हें अन्य अनेक जनपदों में भी जाना पड़ा। जो अनेक घटनाएं उनके समय में घटीं, उनकी विस्तृत चर्चा पुराणों तथा महाभारत में मिलती है। वैदिक साहित्य[१] में तो कृष्ण का उल्लेख बहुत कम मिलता है और उसमें उन्हें मानव-रूप में ही दिखाया गया है, न कि नारायण या विष्णु के अवतार रूप में।

विष्णु के अवतार

सनातन धर्म के अनुसार भगवान विष्णु सर्वपापहारी पवित्र और समस्त मनुष्यों को भोग तथा मोक्ष प्रदान करने वाले प्रमुख देवता हैं। जब-जब इस पृथ्वी पर असुर एवं राक्षसों के पापों का आतंक व्याप्त होता है, तब-तब भगवान विष्णु किसी न किसी रूप में अवतरित होकर पृथ्वी के भार को कम करते हैं। वैसे तो भगवान विष्णु ने अभी तक तेईस अवतारों को धारण किया। इन अवतारों में उनके सबसे महत्वपूर्ण अवतार 'श्रीराम' और 'श्रीकृष्ण' के ही माने जाते हैं। श्रीकृष्ण ऐतिहासिक पुरुष थे, इसका स्पष्ट प्रमाण 'छान्दोग्य उपनिषद' के एक उल्लेख में मिलता है। वहाँ[२] कहा गया है कि "देवकी पुत्र श्रीकृष्ण को महर्षिदेव:कोटी आंगिरस ने निष्काम कर्म रूप यज्ञ उपासना की शिक्षा दी थी, जिसे ग्रहण कर श्रीकृष्ण 'तृप्त' अर्थात् पूर्ण पुरुष हो गए थे।" श्रीकृष्ण का जीवन, जैसा कि महाभारत में वर्णित है, इसी शिक्षा से अनुप्राणित था और 'गीता' में उसी शिक्षा का प्रतिपादन उनके ही माध्यम से किया गया है।

लीलाओं का संदेश

कृष्ण लीलाओं का जो विस्तृत वर्णन भागवत ग्रंथ में किया गया है, उसका उद्देश्य क्या केवल कृष्ण भक्तों की श्रद्धा बढ़ाना है या मनुष्य मात्र के लिए इसका कुछ संदेश है? तार्किक मन को विचित्र-सी लगने वाली इन घटनाओं के वर्णन का उद्देश्य क्या ऐसे मन को अतिमानवीय पराशक्ति की रहस्यमयता से विमूढ़वत बना देना है अथवा उसे उसके तार्किक स्तर पर ही कुछ गहरा संदेश देना है, इस पर विचार करना चाहिए। श्रीकृष्ण एक ऐतिहासिक पुरुष हुए हैं, इसका स्पष्ट प्रमाण 'छान्दोग्य उपनिषद' के एक उल्लेख में मिलता है। वहाँ[३] कहा गया है कि देवकी पुत्र श्रीकृष्ण को महर्षिदेव:कोटी आंगिरस ने निष्काम कर्म रूप यज्ञ उपासना की शिक्षा दी थी, जिसे ग्रहण कर श्रीकृष्ण 'तृप्त' अर्थात् पूर्ण पुरुष हो गए थे।

श्रीकृष्ण का जीवन, जैसा कि महाभारत में वर्णित है, इसी शिक्षा से अनुप्राणित था और 'गीता' में उसी शिक्षा का प्रतिपादन उनके ही माध्यम से किया गया है। किंतु इनके जन्म और बाल-जीवन का जो वर्णन प्राप्त है, वह मूलतः श्रीमद्भागवत का है और वह ऐतिहासिक कम, आध्यात्मिक अधिक है और यह बात ग्रंथ के आध्यात्मिक स्वरूप के अनुसार ही है। ग्रंथ में चमत्कारी भौतिक वर्णनों के पर्दे के पीछे गहन आध्यात्मिक संकेत संजोए गए हैं। वस्तुतः भागवत में सृष्टि की संपूर्ण विकास प्रक्रिया का और उस प्रक्रिया को गति देने वाली परमात्म शक्ति का दर्शन कराया गया है। ग्रंथ के पूर्वार्ध[४] में सृष्टि के क्रमिक विकास[५] का और उत्तरार्ध (दशम स्कंध) में श्रीकृष्ण की लीलाओं के द्वारा व्यक्ति के आध्यात्मिक विकास का वर्णन प्रतीक शैली में किया गया है।



इन्हें भी देखें: कृष्ण चालीसा, कुंजबिहारी जी की आरती एवं कृष्ण जन्माष्टमी


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. छांदोग्य उपनिषद (3,17,6), जिसमें देवकी पुत्र कृष्ण का उल्लेख है और उन्हें घोर आंगिरस का शिष्य कहा है, परवर्ती साहित्य में श्रीकृष्ण को देव या विष्णु रूप में प्रदर्शित करने का भाव मिलता है। (तैत्तिरीय आरण्यक, 10, 1, 6; पाणिनि-अष्टाध्यायी, 4, 3, 98 आदि) महाभारत तथा हरिवंश पुराण, विष्णु पुराण, ब्रह्म पुराण, वायु पुराण, भागवत, पद्म पुराण, देवी भागवत, अग्नि पुराण तथा ब्रह्मवर्त पुराणों में उन्हें प्राय: भगवान के रूप में ही दिखाया गया है। इन ग्रंथों में यद्यपि कृष्ण के आलौकिक तत्त्व की प्रधानता है तो भी उनके मानव या ऐतिहासिक रूप के भी दर्शन यत्र-तत्र मिलते हैं। पुराणों में कृष्ण-संबंधी विभिन्न वर्णनों के आधार पर कुछ पाश्चात्य विद्वानों को यह कल्पना करने का अवसर मिला कि कृष्ण ऐतिहासिक पुरुष नहीं थे। इस कल्पना की पुष्टि में अनेक दलीलें दी गई हैं, जो ठीक नहीं सिद्ध होतीं। यदि महाभारत और पुराणों के अतिरिक्त, ब्राह्मण-ग्रंथों तथा उपनिषदों के उल्लेख देखे जायें तो कृष्ण के ऐतिहासिक तत्त्व का पता चल जायगा। बौद्ध-ग्रंथ घट जातक तथा जैन-ग्रंथ 'उत्तराध्ययन सूत्र' से भी श्रीकृष्ण का ऐतिहासिक होना सिद्ध है। यह मत भी भ्रामक है कि ब्रज के कृष्ण, द्वारका के कृष्ण तथा महाभारत के कृष्ण एक न होकर अलग-अलग व्यक्ति थे। (श्रीकृष्ण की ऐतिहासिकता तथा तत्संबंधी अन्य समस्याओं के लिए देखिए- राय चौधरी-अर्ली हिस्ट्री ऑफ वैष्णव सेक्ट, पृ. 39, 52; आर.जी. भंडारकार-ग्रंथमाला, जिल्द 2, पृ0 58-291; विंटरनीज-हिस्ट्री ऑफ इंडियन लिटरेचर, जिल्द 1, पृ. 456; मैकडॉनल तथा कीथ-वैदिक इंडेक्स, जि.1, पृ. 184; ग्रियर्सन-एनसाइक्लोपीडिया ऑफ रिलीजंस ('भक्ति' पर निबंध); भगवानदास- कृष्ण; तदपत्रिकर-द कृष्ण प्रायलम; पार्जीटर-ऎश्यंट इंडियन हिस्टॉरिकल ट्रेडीशन आदि।
  2. 3.17.6
  3. 3.17.6
  4. स्कंध 1 से 9
  5. जड़-जीव-मानव निर्माण

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