रूपावाप्ति  

  • भारत में धार्मिक व्रतों का सर्वव्यापी प्रचार रहा है। यह हिन्दू धर्म ग्रंथों में उल्लिखित हिन्दू धर्म का एक व्रत संस्कार है।
  • यह एक मास व्रत है। यह व्रत फाल्गुन की पूर्णिमा की प्रतिपदा से चैत्र की पूर्णिमा तक रखना चाहिए।
  • शेषनाग के फण पर लेटे हुए केशव की प्रतिमा की पूजा करनी चाहिए।
  • इसमें एकभक्त, पृथ्वी पर शयन, तीन दिनों तक उपवास करना चाहिए।
  • उसके उपरान्त चैत्र की पूर्णिमा पर पूजा करनी चाहिए।
  • चाँदी एवं वस्त्रों का एक जोड़ा दान करना चाहिए।
  • इससे रूप (सौन्दर्य) की प्राप्ति होती है।[१]
  • पंचमी पर विश्वेदेवों की पूजा करने से स्वर्ग प्राप्ति की प्राप्ति होती है।[२] [३]


टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. हेमाद्रि (व्रतखण्ड 2, 744, विष्णुधर्मोत्तरपुराण से उद्धरण)।
  2. हेमाद्रि (व्रतखण्ड 1, 574-575, विष्णुधर्मोत्तरपुराण से उद्धरण
  3. दस विश्वेदेवों के लिए 'राज्याप्ति दशमी' देखिए।

संबंधित लेख

वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज

                              अं                                                                                                       क्ष    त्र    ज्ञ             श्र   अः



"https://amp.bharatdiscovery.org/w/index.php?title=रूपावाप्ति&oldid=189316" से लिया गया