प्राजापत्य व्रत  

  • भारत में धार्मिक व्रतों का सर्वव्यापी प्रचार रहा है। यह हिन्दू धर्म ग्रंथों में उल्लिखित हिन्दू धर्म का एक व्रत संस्कार है।
  • जो व्यक्ति कृच्छ प्रायश्चित के अन्त में गोदान करता है और अपने सामर्थ्य के अनुसार ब्रह्मभोज कराता है, वह शंकर जी के लोक में पहुँचता है।[१]; [२]; [३], [४]


टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. मत्स्य पुराण (101-66
  2. कृत्यकल्पतरु (व्रत 448
  3. हेमाद्रि (व्रतखण्ड 2, 883, पद्म पुराण से उद्धरण
  4. कृत्यकल्पतरु (व्रतखण्ड) में यही 44वाँ षष्टिव्रत है

संबंधित लेख

वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज

                              अं                                                                                                       क्ष    त्र    ज्ञ             श्र   अः



"https://amp.bharatdiscovery.org/w/index.php?title=प्राजापत्य_व्रत&oldid=188809" से लिया गया