ललिता व्रत
- भारत में धार्मिक व्रतों का सर्वव्यापी प्रचार रहा है। यह हिन्दू धर्म ग्रंथों में उल्लिखित हिन्दू धर्म का एक व्रत संस्कार है।
- यह व्रत माघ शुक्ल पक्ष की तृतीया को रखना चाहिए।
- दोपहर को तिल एवं आमलक से किसी नदी में स्नान करके, पुष्पों आदि से देवी पूजा की पूजा करनी चाहिए।
- इसमे तामपत्र में जल अक्षत एवं सोना रख कर एक ब्राह्मण के समक्ष रखा जाता है, जो मंत्र के साथ कर्ता पर जल छिड़कता है।
- इस व्रत में स्त्री सम्पादिका सोने का दान करती है, कुश डुबोये जल को पीती है, देवी ध्यान में पृथ्वी शयन करती है और रात्रि बिताती है।
- दूसरे दिन ब्राह्मणों एवं एक सधवा नारी का सम्मान करना चाहिए।
- एक वर्ष तक, प्रत्येक मास में देवी के 12 नामों में से एक का प्रयोग[१] करना चाहिए।
- बारह मासों में शुक्ल पक्ष की तृतीया पर उपवास करें तथा 12 वस्तुओं में क्रम से एक सेवन करें, यथा-कुश से पवित्र किया हुआ जल, दूध, घी आदि।
- अन्त में एक ब्राह्मण एवं उसकी पत्नी को सम्मान देना चाहिए।
- सम्पादिका को पुत्रों, रूप, स्वास्थ्य एवं सधवापन की प्राप्ति होती है।[२]
- अग्निपुराण[३] में ललिता तृतीया का उल्लेख किया है और कहा है कि चैत्र शुक्ल तृतीया को गौरी जी शिव से विवाहित हुई थीं।
- यही बात मत्स्यपुराण[४] में भी है।
- मत्स्यपुराण[५] में आया है कि सती को ललिता कहा जाता है, क्योंकि वह सभी लोकों में सर्वोत्तम हैं और रूप में सब से बढ़कर हैं।
- ब्रह्माण्ड पुराण के अन्त में 44 अध्यायों में ललिता सम्प्रदाय का विवेचन है।
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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