व्यास  

व्यास एक बहुविकल्पी शब्द है अन्य अर्थों के लिए देखें:- व्यास (बहुविकल्पी)
संक्षिप्त परिचय
व्यास
अन्य नाम वेदव्यास
अवतार ग्रंथों के अनुसार भगवान नारायण के ही कलावतार
पिता पराशर ऋषि
माता सत्यवती
धर्म-संप्रदाय हिंदू धर्म
संतान धृतराष्ट्र, पाण्डु, विदुर
अन्य जानकारी व्यास का अर्थ है 'संपादक'। यह उपाधि अनेक पुराने ग्रन्थकारों को प्रदान की गयी है, किन्तु विशेषकर वेदव्यास उपाधि वेदों को व्यवस्थित रूप प्रदान करने वाले उन महर्षि को दी गयी है जो चिरंजीव होने के कारण 'आश्वत' कहलाते हैं।

व्यास अथवा वेदव्यास हिंदू धर्म ग्रंथों के अनुसार भगवान नारायण के ही कलावतार थे। व्यास जी के पिता का नाम पराशर ऋषि तथा माता का नाम सत्यवती था। जन्म लेते ही इन्होंने अपने पिता-माता से जंगल में जाकर तपस्या करने की इच्छा प्रकट की। प्रारम्भ में इनकी माता सत्यवती ने इन्हें रोकने का प्रयास किया, किन्तु अन्त में इनके माता के स्मरण करते ही लौट आने का वचन देने पर उन्होंने इनको वन जाने की आज्ञा दे दी। प्रत्येक द्वापर युग में विष्णु व्यास के रूप में अवतरित होकर वेदों के विभाग प्रस्तुत करते हैं। इस प्रकार अट्ठाईस बार वेदों का विभाजन किया गया। पहले द्वापर में स्वयं ब्रह्मा वेदव्यास हुए, दूसरे में प्रजापति, तीसरे द्वापर में शुक्राचार्य , चौथे में बृहस्पति वेदव्यास हुए। इसी प्रकार सूर्य, मृत्यु, इन्द्र, धनजंय, कृष्ण द्वैपायन अश्वत्थामा आदि अट्ठाईस वेदव्यास हुए। समय-समय पर वेदों का विभाजन किस प्रकार से हुआ, इसके लिए यह एक उदाहरण प्रस्तुत है। कृष्ण द्वैपायन वेदव्यास ने ब्रह्मा की प्रेरणा से चार शिष्यों को चार वेद पढ़ाये-

  1. मुनि पैल को ॠग्वेद
  2. वैशम्पायन को यजुर्वेद
  3. जैमिनि को सामवेद तथा
  4. सुमंतु को अथर्ववेद पढ़ाया।

व्यास का अर्थ

व्यास का अर्थ है 'संपादक'। यह उपाधि अनेक पुराने ग्रन्थकारों को प्रदान की गयी है, किन्तु विशेषकर वेदव्यास उपाधि वेदों को व्यवस्थित रूप प्रदान करने वाले उन महर्षि को दी गयी है जो चिरंजीव होने के कारण 'आश्वत' कहलाते हैं। यही नाम महाभारत के संकलनकर्ता, वेदान्तदर्शन के स्थापनकर्ता तथा पुराणों के व्यवस्थापक को भी दिया गया है। ये सभी व्यक्ति वेदव्यास कहे गये है। विद्वानों में इस बात पर मतभेद है कि ये सभी एक ही व्यक्ति थे अथवा विभिन्न। भारतीय परम्परा इन सबको एक ही व्यक्ति मानती है। महाभारतकार व्यास ऋषि पराशर एवं सत्यवती के पुत्र थे, ये साँवले रंग के थे तथा यमुना के बीच स्थित एक द्वीप में उत्पन्न हुए थे। अतएव ये साँवले रंग के कारण 'कृष्ण' तथा जन्मस्थान के कारण 'द्वैपायन' कहलाये। इनकी माता ने बाद में शान्तनु से विवाह किया, जिनसे उनके दो पुत्र हुए, जिनमें बड़ा चित्रांगद युद्ध में मारा गया और छोटा विचित्रवीर्य संतानहीन मर गया। कृष्ण द्वैपायन ने धार्मिक तथा वैराग्य का जीवन पसंद किया, किन्तु माता के आग्रह पर इन्होंने विचित्रवीर्य की दोनों सन्तानहीन रानियों द्वारा नियोग के नियम से दो पुत्र उत्पन्न किये जो धृतराष्ट्र तथा पाण्डु कहलाये, इनमें तीसरे विदुर भी थे। पुराणों में अठारह व्यासों का उल्लेख है जो ब्रह्मा या विष्णु के अवतार कहलाते हैं एवं पृथ्वी पर विभिन्न युगों में वेदों की व्याख्या व प्रचार करने के लिए अवतीर्ण होते हैं।

न विश्वसेदविश्वस्ते विश्वस्ते नातिविस्वसेत्।
विश्वासाद् भयमुत्पन्नमपि मूलानि कृन्तति॥
जो विश्वास्पात्र न हो, उस पर कभी विश्वास न करें और जो विश्वास्पात्र हो उस पर भी अधिक विश्वास न करें क्योंकि विश्वास से उत्पन्न हुआ भय मनुष्य का मूलोच्छेद कर देता है।
- वेदव्यास (महाभारत शांति पर्व, 138।144-45)

अलौकिक शक्तिसम्पन्न महापुरुष

भगवान् वेदव्यास एक अलौकिक शक्तिसम्पन्न महापुरुष थे। इनका जन्म एक द्वीप के अन्दर हुआ था और वर्ण श्याम था, अत: इनका एक नाम कृष्णीद्वैपायन भी है। वेदों का विस्तार करने के कारण ये वेदव्यास तथा बदरीवन में निवास करने कारण बादरायण भी कहे जाते हैं। इन्होंने वेदों के विस्तार के साथ महाभारत, अठारह महापुराणों तथा ब्रह्मसूत्र का भी प्रणयन किया। शास्त्रों की ऐसी मान्यता है कि भगवान् ने स्वयं व्यास के रूप में अवतार लेकर वेदों का विस्तार किया। अत: व्यासजी की गणना भगवान् के चौबीस अवतारों में की जाती है। व्यासस्मृति के नाम से इनके द्वारा प्रणीत एक स्मृतिग्रन्थ भी है। भारतीय वांड्मय एवं हिन्दू-संस्कृति व्यासजी की ऋणी है। संसार में जब तक हिन्दू-जाति एवं भारतीय संस्कृति जीवित है, तब तक व्यासजी का नाम अमर रहेगा। महर्षि व्यास त्रिकालदर्शी थे। जब पाण्डव एकचक्रा नगरी में निवास कर रहे थे, तब व्यासजी उनसे मिलने आये। उन्होंने पाण्डवों को द्रौपदी के पूर्वजन्म का वृत्तान्त सुनाकर कहा कि 'यह कन्या विधाता के द्वारा तुम्हीं लोगों के लिये बनायी गयी है, अत: तुम लोगों को द्रौपदी-स्वयंवर में सम्मिलित होने के लिये अब पांचाल नगरी की ओर जाना चाहिये।' महाराज द्रुपद को भी इन्होंने द्रौपदी के पूर्वजन्म की बात बताकर उन्हें द्रौपदी का पाँचों पाण्डवों से विवाह करने की प्रेरणा दी थी।

विभिन्न नाम

यमुना के द्वीप में जन्म होने के कारण व्यास जी को कृष्णद्वैपायन तथा बदरीवन में तपस्या करने के कारण बदरायण व्यास भी कहा जाता है। इन्हें अंगों सहित सम्पूर्ण वेद, पुराण, इतिहास और परमात्मतत्त्व का ज्ञान स्वत: प्राप्त हो गया था। मनुष्यों की आयु क्षीण होते हुए देखकर इन्होंने वेदों का विस्तार किया। इसीलिये ये वेदव्यास के नाम से प्रसिद्ध हुए। वेदान्त-दर्शन की शक्ति के साथ अनादि पुराण को लुप्त होते देखकर भगवान कृष्णद्वैपायन ने अठारह पुराणों का प्रणयन किया। इनके द्वारा प्रणीत महाभारत को पंचम वेद कहा जाता है। श्रीमद्भागवत के रूप में भक्ति का सार-सर्वस्व इन्होंने मानव मात्र को सुलभ कराया और ब्रह्मसूत्र के रूप में तत्त्वज्ञान का अनुपम ग्रन्थ-रत्न प्रदान किया।

महाभारत में

महाराज युधिष्ठिर के राजसूय यज्ञ के अवसर पर व्यासजी अपने शिष्यों के साथ इन्द्रप्रस्थ पधारे। वहाँ इन्होंने युधिष्ठिर को बताया कि-'आज से तेरह वर्ष बाद क्षत्रियों का महासंहार होगा, उसमें दुर्योधन के विनाश में तुम्हीं निमित्त बनोगे।' पाण्डवों के वनवासकाल में भी जब दुर्योधन दु:शासन तथा शकुनि की सलाह से उन्हें मार डालने की योजना बना रहा था, तब व्यासजी ने अपनी दिव्य दृष्टि से उसे जान लिया। इन्होंने तत्काल पहुँचकर कौरवों को इस दुष्कृत्य से अवगत किया। इन्होंने धृतराष्ट्र को समझाते हुए कहा-'तुमने जुए में पाण्डवों का सर्वस्व छीनकर और उन्हें वन भेजकर अच्छा नहीं किया। दुरात्मा दुर्योधन पाण्डवों को मार डालना चाहता है। तुम अपने लाडले बेटे को इस काम से रोको, अन्यथा इसे पाण्डवों के हाथ से मरने से कोई नहीं बचा पायगा।' भगवान व्यास जी ने संजय को दिव्य दृष्टि प्रदान की, जिससे युद्ध-दर्शन के साथ उनमें भगवान् के विश्वरूप एवं दिव्य चतुर्भुजरूप के दर्शन की भी योग्यता आ गयी। उन्होंने कुरुक्षेत्र की युद्धभूमि में भगवान् श्रीकृष्ण के मुखारविन्दसे नि:सृत श्रीमद्भगवद्गीता का श्रवण किया, जिसे अर्जुन के अतिरिक्त अन्य कोई नहीं सुन पाया।

द्विविधो जायते व्याधिः शारीरो मानसस्तथा।
परस्परं तयोर्जन्म निर्द्वन्द्वं नोपलम्यते ॥
मनुष्य को दो प्रकार की व्याधियां होती हैं – एक शारीरिक और दूसरी मानसिक। इन दोनों की उत्पत्ति एक दूसरे के आश्रित हैं, एक के बिना दूसरी का होना सम्भव नहीं है।
- वेदव्यास (महाभारत, शांतिपर्व । 16 । 8)

एक बार जब धृतराष्ट्र वनमें रहते थे, तब महाराज युधिष्ठिर अपने परिवार सहित उनसे मिलने गये। व्यासजी भी वहाँ आये। धृतराष्ट्र ने उनसे जानना चाहा कि महाभारत के युद्ध में मारे गये वीरों की क्या गति हुई? उन्होंने व्यासजी से एक बार अपने मरे हुए सम्बन्धियों का दर्शन कराने की प्रार्थना की। धृतराष्ट्र के प्रार्थना करने पर व्यासजी ने अपनी अलौकिक शक्ति के प्रभाव से गंगाजी में खड़े होकर युद्ध में मरे हुए वीरों का आवाहन किया युधिष्ठिर, कुन्ती तथा धृतराष्ट्र के सभी सम्बन्धियों का दर्शन कराया। वैशम्पायन के मुख से इस अद्भुत वृत्तान्त को सुनकर राजा जनमेजय के मन में भी अपने पिता महाराज परीक्षित का दर्शन करने की लालसा पैदा हुई। व्यासजी वहाँ उपस्थित थे। उन्होंने महाराज परीक्षित को वहाँ बुला दिया। जनमेजय ने यज्ञान्त स्त्रान के समय अपने पिता को भी स्नान कराया। तदनन्तर महाराज परीक्षितृ वहाँ से चले गये। अलौकिक शक्ति से सम्पन्न तथा महाभारत के रचयिता महर्षि व्यास के चरणों में शत-शत नमन है।

सहृदय व्यास

शुद्धात्मा व्यास जी विपत्ति ग्रस्त पाण्डवों की समय-समय पर पूरी सहायता करते रहे। इन्होंने संजय को दिव्य दृष्टि प्रदान की थी, जिससे संजय ने महाभारत का युद्ध प्रत्यक्ष देखने के साथ-साथ श्रीकृष्ण के मुखारविन्द से नि:सृत श्रीमद्भगवद् गीता का भी श्रवण किया। महर्षि व्यास की शक्ति अलौकिक थी। एक बार जब ये वन में धृतराष्ट्र और गान्धारी से मिलने गये, तब सपरिवार युधिष्टिर भी वहाँ उपस्थित थे। धृतराष्ट्र पुत्र शोक से अत्यन्त व्याकुल थे। उन्होंने श्रीव्यास जी से अपने मरे हुए कुटुम्बियों और स्वजनों को देखने की इच्छा प्रकट की। महर्षि व्यास के आदेशानुसार धृतराष्ट्र आदि गंगातट पर पहुँचे। व्यास जी ने गंगा जल में प्रवेश किया और दिवंगत योद्धाओं को पुकारा। जल में युद्धकाल-जैसा कोलाहल सुनायी देने लगा। देखते-ही-देखते भीष्म और द्रोण के साथ दोनों पक्षों के योद्धा निकल आये। सबकी वेष-भूषा और वाहनादि पूर्ववत थे। सभी ईर्ष्या-द्वेष से शून्य और दिव्य देहधारी थे। वे सभी लोग रात्रि में अपने पूर्व सम्बन्धियों से मिले और सूर्योंदय से पूर्व भागीरथी गंगा में प्रवेश करके अपने दिव्य लोकों को चले गये। भगवान व्यास के इस चमत्कारिक प्रभाव को देखकर धृतराष्ट्र आदि आश्चर्यचकित रह गये।

  • भगवान व्यास आज भी अमर हैं। समय-समय पर प्रकट होकर ये अधिकारी पुरुषों को अपना दर्शन देकर कृतार्थ किया करते हैं। भगवान आद्य शंकराचार्य और मण्डन मिश्र को उनके दर्शन हुए थे। मनुष्य जाति पर भगवान वेदव्यास के अनन्त उपकार हैं। सम्पूर्ण संसार उनका आभारी है।


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