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*जब [[शुक्ल पक्ष|शुक्ल]] [[सप्तमी]] को [[हस्त नक्षत्र]] हो तो वह तिथि भद्रा कहलाती है। | *जब [[शुक्ल पक्ष|शुक्ल]] [[सप्तमी]] को [[हस्त नक्षत्र]] हो तो वह तिथि भद्रा कहलाती है। | ||
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*प्रतिमा को घी, दूध, ईख के रस से स्नान कराया जाता है, उपचार किये जाते हैं। | *प्रतिमा को घी, दूध, ईख के रस से स्नान कराया जाता है, उपचार किये जाते हैं। | ||
*विभिन्न दिशाओं में विभिन्न प्रकार के बहुमूल्य प्रस्तर प्रतिमा के पास सजाये जाते हैं। | *विभिन्न दिशाओं में विभिन्न प्रकार के बहुमूल्य प्रस्तर प्रतिमा के पास सजाये जाते हैं। | ||
− | *ऐसी मान्यता है कि कर्ता सूर्यलोक में जाकर ब्रह्मालोक को चला जाता है।<ref>कृत्यकल्पतरु (व्रत0 138-141 | + | *ऐसी मान्यता है कि कर्ता सूर्यलोक में जाकर ब्रह्मालोक को चला जाता है।<ref>कृत्यकल्पतरु (व्रत0 138-141</ref>; <ref>हेमाद्रि (व्रत0 1, 671-673, भविष्यपुराण से उद्धरण</ref>; <ref>हेमाद्रि (काल, 625</ref>; <ref>पुरुषार्थचिन्तामणि (105</ref> |
+ | {{संदर्भ ग्रंथ}} | ||
==टीका टिप्पणी और संदर्भ== | ==टीका टिप्पणी और संदर्भ== | ||
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१२:५४, २७ जुलाई २०११ के समय का अवतरण
- भारत में धार्मिक व्रतों का सर्वव्यापी प्रचार रहा है। यह हिन्दू धर्म ग्रंथों में उल्लिखित हिन्दू धर्म का एक व्रत संस्कार है।
- जब शुक्ल सप्तमी को हस्त नक्षत्र हो तो वह तिथि भद्रा कहलाती है।
- तिथिव्रत; देवता सूर्य का पूजन करना चाहिए।
- कर्ता को चतुर्थी से सप्तमी की तिथियों तक क्रम से एकभक्त, नक्त, अयाचित एवं उपवास की विधि करनी पड़ती है।
- प्रतिमा को घी, दूध, ईख के रस से स्नान कराया जाता है, उपचार किये जाते हैं।
- विभिन्न दिशाओं में विभिन्न प्रकार के बहुमूल्य प्रस्तर प्रतिमा के पास सजाये जाते हैं।
- ऐसी मान्यता है कि कर्ता सूर्यलोक में जाकर ब्रह्मालोक को चला जाता है।[१]; [२]; [३]; [४]