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*[[भारत]] में धार्मिक व्रतों का सर्वव्यापी प्रचार रहा है। यह हिन्दू धर्म ग्रंथों में उल्लिखित [[हिन्दू धर्म]] का एक व्रत संस्कार है।
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'''नृसिंह द्वादशी''' [[फाल्गुन|फाल्गुन माह]] में [[शुक्ल पक्ष]] की द्वादशी को मनाई जाती है। [[विष्णु|भगवान विष्णु]] के बारह [[अवतार]] में से एक अवतार [[नृसिंह जयन्ती|भगवान नरसिंह]] का है। नृसिंह अवतार में भगवन श्रीहरि विष्णु जी ने आधा मनुष्य तथा आधा शेर का रूप धारण करके दैत्यों के राजा हिरण्यकशिपु का वध किया है।
*यह द्वादशी को होता है।
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==पौराणिक कथा==
*इस व्रत में भगवान नृसिंह का व्रत रखा जाता है।यह
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धार्मिक ग्रंथों के अनुसार प्राचीन काल में [[कश्यप]] नामक ऋषि रहते थे। ऋषि कश्यप की पत्नी का नाम [[दिति]] था तथा उनकी दो संतान थीं। ऋषि कश्यप ने प्रथम पुत्र का नाम ‘[[हिरण्याक्ष]]’  तथा दूसरे पुत्र का नाम ‘[[हिरण्यकशिपु]]’ रखा। परंतु ऋषि के दोनों संतान असुर प्रवृत्ति का हो गये। आसुरी प्रवृत्ति के होने के कारण भगवान विष्णु के [[वराह अवतार|वराह]] रूप ने पृथ्वी की रक्षा हेतु ऋषि कश्यप के पुत्र हरिण्याक्ष का वध कर दिया। अपने भाई की मृत्यु से दु:खी तथा क्रोधित होकर हिरण्यकशिपु ने अपने भाई की मृत्यु का प्रतिशोध लेने के लिए अजेय होने का संकल्प लिया। हिरण्यकशिपु ने भगवान ब्रह्मा का कठोर तप किया। उसकी तपस्या से प्रसन्न होकर [[ब्रह्मा|भगवान ब्रह्मा]] ने हिरण्यकशिपु को अजेय होने का वरदान दिया।
*यह नृसिंह द्वादशी ही है।
 
  
{{संदर्भ ग्रंथ}}
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वरदान पाने के पश्चात हिरण्यकशिपु ने स्वर्ग पर अधिपत्य स्थापित कर लिया तथा स्वर्ग के देवों को मारकर भगा दिया। तीनों लोकों में त्राहि माम् मच गया। अजेय वर प्राप्त करने के कारण हिरण्यकशिपु तीनों लोकों का स्वामी बन गया। देवता गण उनसे युद्ध में पराजित हो जाते थे। हिरण्यकशिपु को अपनी शक्ति पर अत्यधिक अहंकार हो गया। जिस कारण हिरण्यकशिपु प्रजा पर भी अत्याचार करने लगा। इस दौरान हिरण्यकशिपु की पत्नी [[कयाधु]] ने एक पुत्र को जन्म दिया, जिसका नाम [[प्रह्लाद]] रखा गया। परन्तु प्रह्लाद पिता के स्वभाव से पूर्णतः विपरीत स्वभाव का था। भक्त प्रह्लाद बचपन से ही संत प्रवृत्ति का था तथा भक्त प्रह्लाद अपने बाल्यकाल से ही भगवान विष्णु का भक्त बन गया। प्रह्लाद अपने पिता के कार्यों का विरोध करता था। भगवान की भक्ति से प्रह्लाद का मन हटाने के लिए हिरण्यकशिपु ने बहुत प्रयास किया। प्रह्लाद इससे कभी विचलित नहीं हुए। अंततः  हिरण्यकशिपु ने अनीति का सहारा लेकर अपने पुत्र की हत्या के लिए उसे पर्वत से धकेला। [[होलिका दहन]] में जलाया गया, परन्तु हर बार भगवान विष्णु की कृपा से भक्त प्रह्लाद बच जाते थे। भगवान के इस चमत्कार से प्रजाजन भी भगवान विष्णु की पूजा तथा गुणगान करने लगी।
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इस घटना से [[हिरण्यकशिपु]] क्रोधित हो गया। वह प्रह्लाद से कटु शब्द में बोला- "कहाँ है तेरा भगवान? सामने बुला।" प्रह्लाद ने कहा- "प्रभु तो सर्वशक्तिमान हैं। वह तो कण-कण में व्याप्त हैं। यहाँ भी हैं, वहाँ भी हैं।" हिरण्यकशिपु ने क्रोधित होकर कहा- "क्या इस खम्बे में भी तेरा भगवान छिपा है?" भक्त प्रह्लाद ने कहा- "हाँ।" यह सुनकर हिरण्यकशिपु ने खम्बे पर अपने गदा से प्रहार किया। तभी खंभे को चीरकर भगवान नृसिंह प्रकट हुए और हिरण्यकशिपु को अपनी जांघों पर रखकर उसकी छाती को नखों से फाड़ कर उसका वध कर डाला। भगवान नृसिंह ने भक्त प्रह्लाद को वरदान दिया, जो कोई आज के दिन भगवान नृसिंह का स्मरण, व्रत तथा पूजा-अर्चना करेगा, उसकी मनोकामनाएँ अवश्य पूर्ण होंगी।
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==पूजन विधि==
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नृसिंह द्वादशी के दिन व्रत-उपवास एवं पूजा-अर्चना की जाती है। नृसिंह जयंती के दिन प्रातः काल ब्रह्म मुहूर्त में उठकर स्नान आदि से निवृत्त होकर स्वच्छ वस्त्र धारण करना चाहिए एवं भगवान नृसिंह की पूजा विधि-विधान से करें। भगवान नृसिंह की पूजा [[फल]], [[फूल]], धुप, दीप, अगरबत्ती, पंचमेवा, कुमकुम, केसर, [[नारियल]], अक्षत एवं पीतांबर से करें। भगवान नृसिंह को प्रसन्न करने हेतु निम्न मन्त्र का जाप करें-
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'''ॐ उग्रं वीरं महाविष्णुं ज्वलन्तं सर्वतोमुखम्।'''<br />
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'''नृसिंहं भीषणं भद्रं मृत्यु मृत्युं नमाम्यहम्॥'''
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इन मंत्रों के जाप करने से समस्त प्रकार के दु:खों का निवारण होता है तथा भगवान नृसिंह की कृपा से जीवन में मंगल ही मंगल होता है। भगवान नृसिंह अपने भक्तों की सदैव रक्षा करते हैं।
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==बाहरी कड़ियाँ==
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*[http://hindumythology.org/know-major-hindu-festival/devotional-narasimha-dwadashi-story/ नृसिंह द्वादशी, कथा एवं महत्व]
 
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०५:३६, २७ फ़रवरी २०१८ का अवतरण

नृसिंह द्वादशी फाल्गुन माह में शुक्ल पक्ष की द्वादशी को मनाई जाती है। भगवान विष्णु के बारह अवतार में से एक अवतार भगवान नरसिंह का है। नृसिंह अवतार में भगवन श्रीहरि विष्णु जी ने आधा मनुष्य तथा आधा शेर का रूप धारण करके दैत्यों के राजा हिरण्यकशिपु का वध किया है।

पौराणिक कथा

धार्मिक ग्रंथों के अनुसार प्राचीन काल में कश्यप नामक ऋषि रहते थे। ऋषि कश्यप की पत्नी का नाम दिति था तथा उनकी दो संतान थीं। ऋषि कश्यप ने प्रथम पुत्र का नाम ‘हिरण्याक्ष’ तथा दूसरे पुत्र का नाम ‘हिरण्यकशिपु’ रखा। परंतु ऋषि के दोनों संतान असुर प्रवृत्ति का हो गये। आसुरी प्रवृत्ति के होने के कारण भगवान विष्णु के वराह रूप ने पृथ्वी की रक्षा हेतु ऋषि कश्यप के पुत्र हरिण्याक्ष का वध कर दिया। अपने भाई की मृत्यु से दु:खी तथा क्रोधित होकर हिरण्यकशिपु ने अपने भाई की मृत्यु का प्रतिशोध लेने के लिए अजेय होने का संकल्प लिया। हिरण्यकशिपु ने भगवान ब्रह्मा का कठोर तप किया। उसकी तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान ब्रह्मा ने हिरण्यकशिपु को अजेय होने का वरदान दिया।

वरदान पाने के पश्चात हिरण्यकशिपु ने स्वर्ग पर अधिपत्य स्थापित कर लिया तथा स्वर्ग के देवों को मारकर भगा दिया। तीनों लोकों में त्राहि माम् मच गया। अजेय वर प्राप्त करने के कारण हिरण्यकशिपु तीनों लोकों का स्वामी बन गया। देवता गण उनसे युद्ध में पराजित हो जाते थे। हिरण्यकशिपु को अपनी शक्ति पर अत्यधिक अहंकार हो गया। जिस कारण हिरण्यकशिपु प्रजा पर भी अत्याचार करने लगा। इस दौरान हिरण्यकशिपु की पत्नी कयाधु ने एक पुत्र को जन्म दिया, जिसका नाम प्रह्लाद रखा गया। परन्तु प्रह्लाद पिता के स्वभाव से पूर्णतः विपरीत स्वभाव का था। भक्त प्रह्लाद बचपन से ही संत प्रवृत्ति का था तथा भक्त प्रह्लाद अपने बाल्यकाल से ही भगवान विष्णु का भक्त बन गया। प्रह्लाद अपने पिता के कार्यों का विरोध करता था। भगवान की भक्ति से प्रह्लाद का मन हटाने के लिए हिरण्यकशिपु ने बहुत प्रयास किया। प्रह्लाद इससे कभी विचलित नहीं हुए। अंततः हिरण्यकशिपु ने अनीति का सहारा लेकर अपने पुत्र की हत्या के लिए उसे पर्वत से धकेला। होलिका दहन में जलाया गया, परन्तु हर बार भगवान विष्णु की कृपा से भक्त प्रह्लाद बच जाते थे। भगवान के इस चमत्कार से प्रजाजन भी भगवान विष्णु की पूजा तथा गुणगान करने लगी।

इस घटना से हिरण्यकशिपु क्रोधित हो गया। वह प्रह्लाद से कटु शब्द में बोला- "कहाँ है तेरा भगवान? सामने बुला।" प्रह्लाद ने कहा- "प्रभु तो सर्वशक्तिमान हैं। वह तो कण-कण में व्याप्त हैं। यहाँ भी हैं, वहाँ भी हैं।" हिरण्यकशिपु ने क्रोधित होकर कहा- "क्या इस खम्बे में भी तेरा भगवान छिपा है?" भक्त प्रह्लाद ने कहा- "हाँ।" यह सुनकर हिरण्यकशिपु ने खम्बे पर अपने गदा से प्रहार किया। तभी खंभे को चीरकर भगवान नृसिंह प्रकट हुए और हिरण्यकशिपु को अपनी जांघों पर रखकर उसकी छाती को नखों से फाड़ कर उसका वध कर डाला। भगवान नृसिंह ने भक्त प्रह्लाद को वरदान दिया, जो कोई आज के दिन भगवान नृसिंह का स्मरण, व्रत तथा पूजा-अर्चना करेगा, उसकी मनोकामनाएँ अवश्य पूर्ण होंगी।

पूजन विधि

नृसिंह द्वादशी के दिन व्रत-उपवास एवं पूजा-अर्चना की जाती है। नृसिंह जयंती के दिन प्रातः काल ब्रह्म मुहूर्त में उठकर स्नान आदि से निवृत्त होकर स्वच्छ वस्त्र धारण करना चाहिए एवं भगवान नृसिंह की पूजा विधि-विधान से करें। भगवान नृसिंह की पूजा फल, फूल, धुप, दीप, अगरबत्ती, पंचमेवा, कुमकुम, केसर, नारियल, अक्षत एवं पीतांबर से करें। भगवान नृसिंह को प्रसन्न करने हेतु निम्न मन्त्र का जाप करें-

ॐ उग्रं वीरं महाविष्णुं ज्वलन्तं सर्वतोमुखम्।
नृसिंहं भीषणं भद्रं मृत्यु मृत्युं नमाम्यहम्॥


इन मंत्रों के जाप करने से समस्त प्रकार के दु:खों का निवारण होता है तथा भगवान नृसिंह की कृपा से जीवन में मंगल ही मंगल होता है। भगवान नृसिंह अपने भक्तों की सदैव रक्षा करते हैं।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

बाहरी कड़ियाँ

अन्य संबंधित लिंक

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