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'''गणेशोत्सव''' (गणेश + उत्सव) [[हिन्दू धर्म]] के लोगों द्वारा मनाया जाने वाला प्रमुख उत्सव है। यह उत्सव [[भाद्रपद मास]] में [[शुक्ल पक्ष]] की [[चतुर्थी]] से [[चतुर्दशी]] तिथि तक मनाया जाता है। यद्यपि गणेशोत्सव पूरे [[भारत]] में पूर्ण श्रद्धा और [[भक्ति]] के साथ मनाया जाता है, किंतु [[महाराष्ट्र]] में इसका विशेष महत्त्व है। गणेशोत्सव में [[गणेश|भगवान गणेश]] की [[पूजा]]-अर्चना का विशेष महत्त्व है। यह भगवान गणेश को समर्पित प्रमुख तिथियों में से एक [[गणेश चतुर्थी]] से प्रारम्भ होकर '[[अनन्त चतुर्दशी]]' (अनन्त चौदस) तक चलने वाला दस दिवसीय महोत्सव है। यह माना जाता है कि इन दस दिनों के दौरान यदि श्रद्धा एवं विधि-विधान के साथ गणेश जी की पूजा-अर्चना की जाए तो जीवन की समस्त बाधाओं का अन्त कर विघ्नहर्ता अपने भक्तों पर सौभाग्य, समृद्धि एवं सुखों की बारिश करते हैं।  
 
'''गणेशोत्सव''' (गणेश + उत्सव) [[हिन्दू धर्म]] के लोगों द्वारा मनाया जाने वाला प्रमुख उत्सव है। यह उत्सव [[भाद्रपद मास]] में [[शुक्ल पक्ष]] की [[चतुर्थी]] से [[चतुर्दशी]] तिथि तक मनाया जाता है। यद्यपि गणेशोत्सव पूरे [[भारत]] में पूर्ण श्रद्धा और [[भक्ति]] के साथ मनाया जाता है, किंतु [[महाराष्ट्र]] में इसका विशेष महत्त्व है। गणेशोत्सव में [[गणेश|भगवान गणेश]] की [[पूजा]]-अर्चना का विशेष महत्त्व है। यह भगवान गणेश को समर्पित प्रमुख तिथियों में से एक [[गणेश चतुर्थी]] से प्रारम्भ होकर '[[अनन्त चतुर्दशी]]' (अनन्त चौदस) तक चलने वाला दस दिवसीय महोत्सव है। यह माना जाता है कि इन दस दिनों के दौरान यदि श्रद्धा एवं विधि-विधान के साथ गणेश जी की पूजा-अर्चना की जाए तो जीवन की समस्त बाधाओं का अन्त कर विघ्नहर्ता अपने भक्तों पर सौभाग्य, समृद्धि एवं सुखों की बारिश करते हैं।  
==शुरुआत==
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==इतिहास==
गणेशोत्सव की शुरुआत [[1893]] ई. में [[महाराष्ट्र]] से [[बाल गंगाधर तिलक|लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक]] ने की थी। 1893 ई. के पहले भी गणपति उत्सव बनाया जाता था, लेकिन वह सिर्फ घरों तक ही सीमित था। उस समय आज की तरह पंडाल नहीं बनाए जाते थे और ना ही सामूहिक गणपति विराजते थे।<ref>{{cite web |url= http://hindi.webdunia.com/kidsworld-gk/%E0%A4%97%E0%A4%A3%E0%A5%87%E0%A4%B6%E0%A5%8B%E0%A4%A4%E0%A5%8D%E0%A4%B8%E0%A4%B5-%E0%A4%95%E0%A4%AC-%E0%A4%B6%E0%A5%81%E0%A4%B0%E0%A5%82-%E0%A4%B9%E0%A5%81%E0%A4%86-1130912030_1.htm|title= गणेशोत्सव कब शुरू हुआ|accessmonthday= 02 अगस्त|accessyear= 2014|last= |first= |authorlink= |format= |publisher= वेबसुनिया|language= हिन्दी}}</ref> बाल गंगाधर तिलक उस समय एक युवा क्रांतिकारी और गर्म दल के नेता के रूप में जाने जाते थे। वे बहुत ही स्पष्ट वक्ता और प्रभावी ढंग से भाषण देने में माहिर थे। यह बात ब्रिटिश अफ़सर भी अच्छी तरह जानते थे कि अगर किसी मंच से तिलक भाषण देंगे तो वहाँ [[आग]] बरसना तय है।
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महाराष्ट्र में [[सातवाहन वंश|सातवाहन]], [[राष्ट्रकूट वंश|राष्ट्रकूट]], [[चालुक्य वंश|चालुक्य]] आदि राजाओं ने गणेशोत्सव की प्रथा चलायी थी। कहा जाता है कि [[शिवाजी]] की माता [[जीजाबाई]] ने [[पुणे]] के क़स्बा गणपति में गणेश जी की स्थापना की थी और [[पेशवा|पेशवाओं]] ने गणेशोत्सव को बहुत अधिक बढ़ावा दिया। मूलतः गणेशोत्सव पारिवारिक त्यौहार था, किन्तु बाद के दिनों में [[बाल गंगाधर तिलक]] ने इस त्यौहार को सामाजिक स्वरूप दे दिया तथा गणेशोत्सव राष्ट्रीय एकता का प्रतीक बन गया।<ref>{{cite web |url= http://days.jagranjunction.com/2011/09/01/ganesh-chaturthi-birthday-of-lord-ganesh/|title= प्रथम पूज्य श्रीगणेश का उत्सव 'गणेशोत्सव'|accessmonthday=02 अगस्त|accessyear= 2014|last= |first= |authorlink= |format= |publisher= जागरण जंक्शन|language= हिन्दी}}</ref>
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==तिलक का योगदान==
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बाल गंगाधर तिलक ने गणेशोत्सव के द्वारा आज़ादी की लड़ाई, छुआछूत दूर करने और समाज को संगठित किया। गणेशोत्सव की शुरुआत [[1893]] ई. में [[महाराष्ट्र]] से [[बाल गंगाधर तिलक|लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक]] ने की थी। 1893 ई. के पहले भी गणपति उत्सव बनाया जाता था, लेकिन वह सिर्फ घरों तक ही सीमित था। उस समय आज की तरह पंडाल नहीं बनाए जाते थे और ना ही सामूहिक गणपति विराजते थे।<ref>{{cite web |url= http://hindi.webdunia.com/kidsworld-gk/%E0%A4%97%E0%A4%A3%E0%A5%87%E0%A4%B6%E0%A5%8B%E0%A4%A4%E0%A5%8D%E0%A4%B8%E0%A4%B5-%E0%A4%95%E0%A4%AC-%E0%A4%B6%E0%A5%81%E0%A4%B0%E0%A5%82-%E0%A4%B9%E0%A5%81%E0%A4%86-1130912030_1.htm|title= गणेशोत्सव कब शुरू हुआ|accessmonthday= 02 अगस्त|accessyear= 2014|last= |first= |authorlink= |format= |publisher= वेबसुनिया|language= हिन्दी}}</ref> बाल गंगाधर तिलक उस समय एक युवा क्रांतिकारी और गर्म दल के नेता के रूप में जाने जाते थे। वे बहुत ही स्पष्ट वक्ता और प्रभावी ढंग से भाषण देने में माहिर थे। यह बात ब्रिटिश अफ़सर भी अच्छी तरह जानते थे कि अगर किसी मंच से तिलक भाषण देंगे तो वहाँ [[आग]] बरसना तय है।
  
तिलक 'स्वराज' के लिए संघर्ष कर रहे थे और वे अपनी बात को अधिक से अधिक लोगों तक पहुंचाना चाहते थे। इसके लिए उन्हें ऐसा सार्वजानिक मंच चाहिए था, जहाँ से उनके विचार अधिकांश लोगों तक पहुंच सकें। इस काम को करने के लिए उन्होंने 'गणपति उत्सव' (गणेशोत्सव) को चुना और इसे सुंदर भव्य रूप दिया, जिसे आज हम देखते हैं। बाल गंगाधर तिलक के इस कार्य से दो फ़ायदे हुए, एक तो वह अपने विचारों को जन-जन तक पहुंचा पाए और दूसरा यह कि इस उत्सव ने आम जनता को भी स्वराज के लिए संघर्ष करने की प्रेरणा दी और उन्हें जोश से भर दिया। इस तरह से गणपति उत्सव ने भी आज़ादी की लड़ाई में एक अहम भूमिका निभाई। तिलक द्वारा शुरू किए गए इस उत्सव को आज भी भारतीय पूरी धूमधाम से मनाते रहे हैं और आगे भी मनाते रहेंगे।  
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तिलक 'स्वराज' के लिए संघर्ष कर रहे थे और वे अपनी बात को अधिक से अधिक लोगों तक पहुंचाना चाहते थे। इसके लिए उन्हें ऐसा सार्वजानिक मंच चाहिए था, जहाँ से उनके विचार अधिकांश लोगों तक पहुंच सकें। इस काम को करने के लिए उन्होंने 'गणपति उत्सव' (गणेशोत्सव) को चुना और इसे सुंदर भव्य रूप दिया, जिसे आज हम देखते हैं। बाल गंगाधर तिलक के इस कार्य से दो फ़ायदे हुए, एक तो वह अपने विचारों को जन-जन तक पहुंचा पाए और दूसरा यह कि इस उत्सव ने आम जनता को भी स्वराज के लिए संघर्ष करने की प्रेरणा दी और उन्हें जोश से भर दिया। इस तरह से गणपति उत्सव ने भी आज़ादी की लड़ाई में एक अहम भूमिका निभाई। तिलक द्वारा शुरू किए गए इस उत्सव को आज भी भारतीय पूरी धूमधाम से मनाते रहे हैं और आगे भी मनाते रहेंगे। आज [[महाराष्ट्र]] का गणेशोत्सव विश्व भर में प्रसिद्ध है, जहाँ गणेश भगवान को मंगलकारी [[देवता]] के रूप में व मंगलमूर्ति के नाम से पूजा जाता है।
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==लोककथा==
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एक लोककथा के अनुसार- "एक बार [[पार्वती|देवी पार्वती]] [[स्नान]] करने के लिए भोगावती नदी गयीं। उन्होंने अपने तन के मैल से एक जीवंत मूर्ति बनायी और उसका नाम '[[गणेश]]' रखा। पार्वती ने उससे कहा- 'हे पुत्र! तुम द्वार पर बैठ जाओ और किसी पुरुष को अंदर मत आने देना।' कुछ देर बाद भगवान [[शिव]] वहाँ आए। द्वार पर पहरा दे रहे गणेश ने उन्हें देखा तो रोक दिया। इसे शिव ने अपना अपमान समझा। क्रोधित होकर उन्होंने गणेश का सिर धड़ से अलग कर दिया और भीतर चले गए। महादेव को नाराज़ देखकर पार्वती ने समझा कि भोजन में विलंब के कारण शायद वे नाराज हैं। उन्होंने तत्काल दो थालियों में भोजन परोसकर शिव को बुलाया। तब दूसरी थाली देखकर शिव ने आश्चर्यचकित होकर पूछा कि दूसरी थाली किसके लिए है? पार्वती बोलीं, दूसरी थाली मेरे पुत्र गणेश के लिए है, जो बाहर द्वार पर पहरा दे रहा है। क्या आपने आते वक्त उसे नहीं देखा? यह बात सुनकर शिव बहुत हैरान हुए। उन्होंने कहा, देखा तो था मैंने, लेकिन उसने मेरा रास्ता रोका था। इस कारण मैंने उसे उद्दंड बालक समझकर उसका सिर काट दिया। यह सुनकर पार्वती विलाप करने लगीं। तब पार्वती को प्रसन्न करने के लिए भगवान शिव ने एक [[हाथी]] के बच्चे का सिर काटकर बालक के धड़ से जोड़ दिया। इस प्रकार पार्वती पुत्र गणेश को पाकर प्रसन्न हो गयीं। उन्होंने पति तथा पुत्र को भोजन परोस कर स्वयं भोजन किया। यह घटना [[भाद्रपद मास]] के [[शुक्ल पक्ष]] की [[चतुर्थी|चतुर्थी तिथि]] पर घटित हुई थी, इसलिए यह तिथि पुण्य पर्व के रूप में मनाई जाती है।<ref>{{cite web |url= http://www.samaylive.com/lifestyle-news-in-hindi/religion-news-in-hindi/168441/the-ganesh-festival-ganesh-chaturthi.html|title=गणेश चतुर्थी यानी गणेशोत्सव|accessmonthday=02 अगस्त|accessyear= 2014|last= |first= |authorlink= |format= |publisher= समय लाइव|language= हिन्दी}}</ref>
  
गणेश की प्रतिष्ठा सम्पूर्ण भारत में समान रूप में व्याप्त है। महाराष्ट्र इसे मंगलकारी देवता के रूप में व मंगलपूर्ति के नाम से पूजता है। दक्षिण भारत में इनकी विशेष लोकप्रियता ‘कला शिरोमणि’ के रूप में है। मैसूर तथा तंजौर के मंदिरों में गणेश की नृत्य-मुद्रा में अनेक मनमोहक प्रतिमाएं हैं। गणेश हिन्दुओं के आदि आराध्य देव है। हिन्दू धर्म में गणेश को एक विशष्टि स्थान प्राप्त है। कोई भी धार्मिक उत्सव हो, यज्ञ, पूजन इत्यादि सत्कर्म हो या फिर विवाहोत्सव हो, निर्विध्न कार्य सम्पन्न हो इसलिए शुभ के रूप में गणेश की पूजा सबसे पहले की जाती है। महाराष्ट्र में सात वाहन, राष्ट्रकूट, चालुक्य आदि राजाओं ने गणेशोत्सव की प्रथमा चलायी थी। छत्रपति शिवाजी महाराज भ गपश की उपासना करते थे।
 
  
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[[गणेश]] की प्रतिष्ठा सम्पूर्ण [[भारत]] में समान रूप में व्याप्त है। [[महाराष्ट्र]] इसे मंगलकारी [[देवता]] के रूप में व मंगलमूर्ति के नाम से पूजता है। [[दक्षिण भारत]] में इनकी विशेष लोकप्रियता ‘कला शिरोमणि’ के रूप में है। [[मैसूर]] तथा [[तंजौर]] के मंदिरों में गणेश की नृत्य-मुद्रा में अनेक मनमोहक प्रतिमाएं हैं। गणेश हिन्दुओं के आदि आराध्य देव हैं। [[हिन्दू धर्म]] में गणेश को एक विशष्टि स्थान प्राप्त है। कोई भी धार्मिक उत्सव हो, [[यज्ञ]], पूजन इत्यादि सत्कर्म हो या फिर विवाहोत्सव हो, निर्विध्न कार्य सम्पन्न हो, इसलिए शुभ के रूप में गणेश की पूजा सबसे पहले की जाती है।
  
 
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०७:५४, २ अगस्त २०१४ का अवतरण

गणेशोत्सव (गणेश + उत्सव) हिन्दू धर्म के लोगों द्वारा मनाया जाने वाला प्रमुख उत्सव है। यह उत्सव भाद्रपद मास में शुक्ल पक्ष की चतुर्थी से चतुर्दशी तिथि तक मनाया जाता है। यद्यपि गणेशोत्सव पूरे भारत में पूर्ण श्रद्धा और भक्ति के साथ मनाया जाता है, किंतु महाराष्ट्र में इसका विशेष महत्त्व है। गणेशोत्सव में भगवान गणेश की पूजा-अर्चना का विशेष महत्त्व है। यह भगवान गणेश को समर्पित प्रमुख तिथियों में से एक गणेश चतुर्थी से प्रारम्भ होकर 'अनन्त चतुर्दशी' (अनन्त चौदस) तक चलने वाला दस दिवसीय महोत्सव है। यह माना जाता है कि इन दस दिनों के दौरान यदि श्रद्धा एवं विधि-विधान के साथ गणेश जी की पूजा-अर्चना की जाए तो जीवन की समस्त बाधाओं का अन्त कर विघ्नहर्ता अपने भक्तों पर सौभाग्य, समृद्धि एवं सुखों की बारिश करते हैं।

इतिहास

महाराष्ट्र में सातवाहन, राष्ट्रकूट, चालुक्य आदि राजाओं ने गणेशोत्सव की प्रथा चलायी थी। कहा जाता है कि शिवाजी की माता जीजाबाई ने पुणे के क़स्बा गणपति में गणेश जी की स्थापना की थी और पेशवाओं ने गणेशोत्सव को बहुत अधिक बढ़ावा दिया। मूलतः गणेशोत्सव पारिवारिक त्यौहार था, किन्तु बाद के दिनों में बाल गंगाधर तिलक ने इस त्यौहार को सामाजिक स्वरूप दे दिया तथा गणेशोत्सव राष्ट्रीय एकता का प्रतीक बन गया।[१]

तिलक का योगदान

बाल गंगाधर तिलक ने गणेशोत्सव के द्वारा आज़ादी की लड़ाई, छुआछूत दूर करने और समाज को संगठित किया। गणेशोत्सव की शुरुआत 1893 ई. में महाराष्ट्र से लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक ने की थी। 1893 ई. के पहले भी गणपति उत्सव बनाया जाता था, लेकिन वह सिर्फ घरों तक ही सीमित था। उस समय आज की तरह पंडाल नहीं बनाए जाते थे और ना ही सामूहिक गणपति विराजते थे।[२] बाल गंगाधर तिलक उस समय एक युवा क्रांतिकारी और गर्म दल के नेता के रूप में जाने जाते थे। वे बहुत ही स्पष्ट वक्ता और प्रभावी ढंग से भाषण देने में माहिर थे। यह बात ब्रिटिश अफ़सर भी अच्छी तरह जानते थे कि अगर किसी मंच से तिलक भाषण देंगे तो वहाँ आग बरसना तय है।

तिलक 'स्वराज' के लिए संघर्ष कर रहे थे और वे अपनी बात को अधिक से अधिक लोगों तक पहुंचाना चाहते थे। इसके लिए उन्हें ऐसा सार्वजानिक मंच चाहिए था, जहाँ से उनके विचार अधिकांश लोगों तक पहुंच सकें। इस काम को करने के लिए उन्होंने 'गणपति उत्सव' (गणेशोत्सव) को चुना और इसे सुंदर भव्य रूप दिया, जिसे आज हम देखते हैं। बाल गंगाधर तिलक के इस कार्य से दो फ़ायदे हुए, एक तो वह अपने विचारों को जन-जन तक पहुंचा पाए और दूसरा यह कि इस उत्सव ने आम जनता को भी स्वराज के लिए संघर्ष करने की प्रेरणा दी और उन्हें जोश से भर दिया। इस तरह से गणपति उत्सव ने भी आज़ादी की लड़ाई में एक अहम भूमिका निभाई। तिलक द्वारा शुरू किए गए इस उत्सव को आज भी भारतीय पूरी धूमधाम से मनाते रहे हैं और आगे भी मनाते रहेंगे। आज महाराष्ट्र का गणेशोत्सव विश्व भर में प्रसिद्ध है, जहाँ गणेश भगवान को मंगलकारी देवता के रूप में व मंगलमूर्ति के नाम से पूजा जाता है।

लोककथा

एक लोककथा के अनुसार- "एक बार देवी पार्वती स्नान करने के लिए भोगावती नदी गयीं। उन्होंने अपने तन के मैल से एक जीवंत मूर्ति बनायी और उसका नाम 'गणेश' रखा। पार्वती ने उससे कहा- 'हे पुत्र! तुम द्वार पर बैठ जाओ और किसी पुरुष को अंदर मत आने देना।' कुछ देर बाद भगवान शिव वहाँ आए। द्वार पर पहरा दे रहे गणेश ने उन्हें देखा तो रोक दिया। इसे शिव ने अपना अपमान समझा। क्रोधित होकर उन्होंने गणेश का सिर धड़ से अलग कर दिया और भीतर चले गए। महादेव को नाराज़ देखकर पार्वती ने समझा कि भोजन में विलंब के कारण शायद वे नाराज हैं। उन्होंने तत्काल दो थालियों में भोजन परोसकर शिव को बुलाया। तब दूसरी थाली देखकर शिव ने आश्चर्यचकित होकर पूछा कि दूसरी थाली किसके लिए है? पार्वती बोलीं, दूसरी थाली मेरे पुत्र गणेश के लिए है, जो बाहर द्वार पर पहरा दे रहा है। क्या आपने आते वक्त उसे नहीं देखा? यह बात सुनकर शिव बहुत हैरान हुए। उन्होंने कहा, देखा तो था मैंने, लेकिन उसने मेरा रास्ता रोका था। इस कारण मैंने उसे उद्दंड बालक समझकर उसका सिर काट दिया। यह सुनकर पार्वती विलाप करने लगीं। तब पार्वती को प्रसन्न करने के लिए भगवान शिव ने एक हाथी के बच्चे का सिर काटकर बालक के धड़ से जोड़ दिया। इस प्रकार पार्वती पुत्र गणेश को पाकर प्रसन्न हो गयीं। उन्होंने पति तथा पुत्र को भोजन परोस कर स्वयं भोजन किया। यह घटना भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि पर घटित हुई थी, इसलिए यह तिथि पुण्य पर्व के रूप में मनाई जाती है।[३]


गणेश की प्रतिष्ठा सम्पूर्ण भारत में समान रूप में व्याप्त है। महाराष्ट्र इसे मंगलकारी देवता के रूप में व मंगलमूर्ति के नाम से पूजता है। दक्षिण भारत में इनकी विशेष लोकप्रियता ‘कला शिरोमणि’ के रूप में है। मैसूर तथा तंजौर के मंदिरों में गणेश की नृत्य-मुद्रा में अनेक मनमोहक प्रतिमाएं हैं। गणेश हिन्दुओं के आदि आराध्य देव हैं। हिन्दू धर्म में गणेश को एक विशष्टि स्थान प्राप्त है। कोई भी धार्मिक उत्सव हो, यज्ञ, पूजन इत्यादि सत्कर्म हो या फिर विवाहोत्सव हो, निर्विध्न कार्य सम्पन्न हो, इसलिए शुभ के रूप में गणेश की पूजा सबसे पहले की जाती है।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. प्रथम पूज्य श्रीगणेश का उत्सव 'गणेशोत्सव' (हिन्दी) जागरण जंक्शन। अभिगमन तिथि: 02 अगस्त, 2014।
  2. गणेशोत्सव कब शुरू हुआ (हिन्दी) वेबसुनिया। अभिगमन तिथि: 02 अगस्त, 2014।
  3. गणेश चतुर्थी यानी गणेशोत्सव (हिन्दी) समय लाइव। अभिगमन तिथि: 02 अगस्त, 2014।

बाहरी कड़ियाँ

संबंधित लेख

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