कू कू करती काली कोयल -दिनेश सिंह  

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कू कू करती काली कोयल
डाल पे बैठी गाती कोयल
मीठा मीठा राग सुनाती
जीने का वो डंग सिखाती

          जो कुछ बोलो सोच के बोलो
          जो कुछ बोलो मीठा बोलो
          मीठी वाणी सब सुनते हैं
          कागा देख उड़ा देते हैं

काली कितनी वो उपर से
कितना मृदु मन अंदर से
कितना गोरा ऊपर तन हो
किस काम जो काला मन हो

          चाहे कितना भेद हो मत का
          मत करना तुम भेद मन का
          मत का भेद तो फिर मिल जावे
          मन का भेद नहीं मिट पावे

टीका टिप्पणी और संदर्भ

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