अन्तरराष्ट्रीय निर्धनता उन्मूलन दिवस
अन्तरराष्ट्रीय निर्धनता उन्मूलन दिवस
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तिथि | 17 अक्टूबर |
प्रथम बार | 1993 |
उद्देश्य | विकासशील देशों में निर्धनता को समाप्त करना है। |
अन्य जानकारी | इस दिवस के द्वारा निर्धनता में रह रहे लोगों के साथ सक्रीय साझेदारी के द्वारा उन्हें निर्धनता से बाहर लाने के प्रयास पर बल दिया जाता है। |
अद्यतन | 13:15, 29 मार्च 2022 (IST)
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विषय सूची
निर्धनता में बढ़ोत्तरी
यूं तो यह दिन विश्व में 1993 से ही मनाया जा रहा है लेकिन बड़े अफसोस की बात है कि विश्व में आज भी गरीबों की संख्या कम नहीं हुई बल्कि बढ़ी ही और गरीबी तो और भी ज्यादा बढ़ी है। भारत में भी गरीबी के हालात कुछ खास अच्छे नहीं हैं।[1]
भारत में गरीबी
भारत की बात की जाए तो यह कहना गलत नहीं होगा कि यहां जरूरत गरीबी हटाने की थी लेकिन गरीबों को हटाने का प्रयास किया गया। चाहे आज़ादी से पहले की बात हो या आज़ादी के बाद, हालात हमेशा बदस्तूर बेकार ही रहे। गरीबी एक ऐसा सवाल है जिसका उत्तर तलाशने की कोशिश आज़ादी के बाद से निरंतर जारी है, लेकिन यह सवाल सुलझने की बजाय अधिक पेचीदा होता नज़र आता है। आज़ादी के समय देश की कुल आबादी 32 करोड़ थी और इसमें से 20 करोड़ लोग गरीब थे। आज़ादी के बाद तमाम आर्थिक विकास और गरीबी निवारण योजनाओं के बावजूद गरीबों की संख्या कम नहीं हुई, बल्कि यह बढ़कर आज 40 करोड़ पहुंच गई है। यह संख्या कम न होना चिंता की बात है और इस पर विचार करने का भी सवाल है कि कमी कहां रह गई? आज सारा ध्यान इस बात पर लगा दिया गया है कि गरीब किसे मानें और किसे नहीं?
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ 1.0 1.1 गरीब कौन है पहले यह तो तय कर लो (हिंदी) jagran.com। अभिगमन तिथि: 29 मार्च, 2022।