हैदराबाद  

चारमीनार, हैदराबाद
Charminar, Hyderabad

दक्षिण पू्र्वी भारत में स्थित हैदराबाद शहर आंध्र प्रदेश राज्य की राजधानी है। यह दक्कन के पठार पर मूसा नदी के किनारे स्थित है। हैदराबाद गोलकुंडा के क़ुतुबशाही सुल्तानों द्वारा बसाया गया था, जिनके शासन में गोलकुंडा ने वह महत्त्वपूर्ण स्थान प्राप्त किया, जहाँ केवल उत्तर में मुग़ल साम्राज्य ही उससे आगे था।

स्थापना

गोलकुंडा का पुराना क़िला राज्य की राजधानी के लिए अपर्याप्त सिद्ध हुआ और इसलिए लगभग 1591 में क़ुतुबशाही में पांचवें मुहम्म्द कुली क़ुतुबशाह ने पुराने गोलकुंडा से कुछ मील दूर मूसा नदी के किनारे हैदराबाद नामक नया नगर बनाया।

गोलकुंडा क़िला, हैदराबाद
Golkonda Fort, Hyderabad

चार खुली मेहराबों और चार मीनारों वाली भारतीय-अरबी शैली की भव्य वास्तुशिल्पीय रचना चारमीनार क़ुतुबशाही काल की सर्वोच्च उपलब्धि मानी जाती है। यह वह केंद्र है, जिसके आसपास शहर की योजना बनाई गई मक्का मस्जिद 10 हज़ार लोगो को समाहित कर सकती है। हैदराबाद अपने सौंदर्य और समृद्धि के लिए जाना जाता था, लेकिन यह गौरव केवल क़ुतुबशाही के दिनों तक ही क़ायम रहा।

इतिहास

मुग़लों ने 1685 में हैदराबाद पर विजय प्राप्त कर ली। मुग़ल आधिपत्य के परिणामस्वरूप लूटमार और विध्वंस हुआ और इसके बाद यूरोपीय शक्तियों का भारत के मामलों में हस्तक्षेप आरंभ हुआ। 1724 में दक्कन के मुग़ल सूबेदार आसफ़जाह निज़ाम-उल-मुल्क ने स्वतंत्रता की घोषणा कर दी। दक्कन का यह राज्य, जिसकी राजधानी हैदराबाद थी, हैदराबाद कहलाया।

19वीं शताब्दी के दौरान, आसफ़जाहियों ने पुराने शहर के उत्तर में मूसा नदी के पार विस्तार कर पुनः शक्ति एकत्रित करना आरंभ किया। उत्तर की ओर सिकंदराबाद एक ब्रिटिश छावनी के रूप में विकसित हुआ, जो हुसैन सागर झील पर बने एक मील लंबे बंद (तटबंध) द्वारा हैदराबाद से जुड़ा था। यह बंद एक विहारस्थल का कार्य करता है और नगर का गौरव है। हिंदू व मुस्लिम शैलियों का सुंदर अम्मिश्रण प्रदर्शित करने वाली कई नई संरचनाएँ बाद में बनाई गईं। निज़ामों के शासन में हिंदू और मुसलमान भाईचारे से रहते थे, यद्यपि भारत की आज़ादी के तुरंत बाद एक कट्टर मुस्लिम गुट रज़ाकारों ने राज्य और नगर में तनाव पैदा कर दिया था।

रियासत

दक्षिण-मध्य भारत का पूर्व सामंती राज्य, निज़ाम-उल-मुल्क (मीर क़मरूद्दिन) द्वारा स्थापित, जो 1713 से 1721 तक दक्कन में लगातार मुग़ल बादशाहों के सूबेदार रहे। उन्हें 1724 यह पद फिर से मिला और उन्होंने आसफ़जाह की उपाधि ग्रहण की। वस्तुतः इस समय तक वह स्वतंत्र हो गए थे। उन्होंने हैदराबाद में निज़ामशाही की स्थापना की। 1748 में उनकी मृत्यु के बाद अंग्रेज़ों उर फ़्रांसीसियों ने उत्तराधिकार के लिए हुए युद्धों में भाग लिया।

ब्रिटिश आधिपत्य

अस्थायी रूप से मैसूर के शासक हैदरअली के साथ रहने के बाद 1767 में निज़ाम अली ने मसुलीपट्टनम की संधि (1768) द्वारा ब्रिटिश आधिपत्य स्वीकार कर लिया। 1778 में उनके राज्य में एक ब्रिटिश रेज़िडेंट और सहायक सेना तैनात की गई। 1795 में निज़ाम अली ख़ाँ अपने कुछ क्षेत्र, जिनमें बरार के कुछ हिस्से भी शामिल थे, मराठों के हाथ हार गए। जब उन्होंने सहायता के लिए फ़्रांसीसियों की ओर देखा, तो अंग्रेज़ों ने उनके राज्य में तैनात अपनी सहायक सेना को बढ़ा दिया। टीपू सुल्तान के विरुद्ध 1792 और 1799 में अंग्रेज़ों के सहयोगी के रूप में जीत में निज़ाम को मिले क्षेत्र इस सेना का ख़र्च चलाने के लिए अंग्रेज़ों को दे दिए गए।

निज़ाम अली का समझौता

चारमीनार, हैदराबाद
Charminar, Hyderabad

तीन ओर (उत्तर, दक्षिण और पूर्व) से ब्रिटिश आधिपत्य वाले अथवा उन पर निर्भर क्षेत्रों से घिरे होने से निज़ाम अली ख़ां 1798 में ब्रिटिश शासन के साथ एक समझौता करने पर मज़बूर हो गए। इस समझौते के अनुसार उन्होंने अपना राज्य अंग्रेज़ों के संरक्षण में दे दिया। इस प्रकार वह ऐसा करने वाले पहले शासक बने, लेकिन अंदरूनी मामलों में उनकी स्वतंत्रता की पुष्टि की गई। निज़ाम अली ख़ाँ दूसरे और तीसरे मराठा युद्धों (1803-1805, 1815-1819) में अंग्रेज़ों के सहयोगी थे और निज़ाम नसीरूद्दौला व हैदराबाद का सैनिक दस्ता भारतीय ग़दर (1857-58) के दौरान ब्रिटिश शासन के वफ़ादार रहे। 1918 में निज़ाम मीर उस्मान अली को ‘हिज एक्ज़ॉल्टेड हाइनेस’ की उपाधि दी गई, यद्यपि भारत की ब्रिटिश सरकार ने कुशासन की स्थिति में उनके राज्य में हस्तक्षेप करने का अधिकार सुरक्षित रखा। हैदराबाद एक शांत, लेकिन कुछ पिछड़ा हुआ सामंती राज्य बना रहा, जबकि भारत में स्वतंत्रता आंदोलन ज़ोर पकड़ता गया।

भारतीय उपमहाद्वीप का विभाजन

1947 में भारतीय उपमहाद्वीप का विभाजन होने पर निज़ाम ने भारत में शामिल होने की अपेक्षा स्वतंत्र रहना चाहा। 29 नवंबर, 1947 में उन्होंने भारत के साथ एक साल की अवधि का यथास्थिति क़ायम रखने का समझौता किया और भारतीय सेनाएँ हटा ली गईं। समस्याएँ बनी रहीं, लेकिन निज़ाम ने अपनी स्वायत्ता मनवाने के प्रयास जारी रखे। भारत ने ज़ोर दिया कि हैदराबाद भारत में शामिल हो जाए। निज़ाम ने ब्रिटेन के राजा जॉर्ज VI के समक्ष गुहार की। 13 सितंबर, 1948 को भारत ने हैदराबाद पर आक्रमण कर दिया और चार दिन के अंदर इस राज्य ने स्वतंत्र भारत में सम्मिलित होना स्वीकार कर लिया। कुछ समय के लिए सैनिक व अस्थाई नागरिक सरकारों के बाद राज्य में मार्च, 1952 में एक लोकप्रिय सरकार व विधानसभा का गठन किया गया।

हैदराबाद राज्य प्रशासनिक रूप से समाप्त

1 नवंबर, 1956 को हैदराबाद राज्य प्रशासनिक रूप से समाप्त हो गया। इसे (भाषाई आधार पर) आंध्र प्रदेश, जिसने तेलगांना ज़िले लिए; और बंबई (वर्तमान मुंबई) राज्यों में विभाजित कर दिया गया। बरार को पहले ही मध्य प्रदेश में मिला लिया गया था। हैदराबाद के निज़ाम एक ऐसे मुस्लिम वंश का हिस्सा थे, जिन्होंने बहुल आबादी पर शासन किया। यह इस वंश के शासक के लिए गर्व की बात है की उनकी हिंदू प्रजा ने इन वर्षों में मराठों, मैसूर अथवा यूरोपीय शक्तियों के साथ मिलकर मुस्लिम राजशाही को हटाने का कोई प्रयास नहीं किया।

भारत में विलय

भारत सरकार ने हस्तक्षेप किया और आख़िरकार हैदराबाद को भारत में मिला लिया गया। 1956 में राज्य का विभाजन हुआ; इसमें तेलुगु भाषी इलाक़ों को हैदराबाद के रूप में राजधानी वाले आंध्र प्रदेश राज्य के गठन के लिए भूतपूर्व आंध्र राज्य में मिला लिया गया।

व्यापार और परिवहन विशेषता

चारमीनार, हैदराबाद
Charminar, Hyderabad

हैदराबाद व्यापार और वाणिज्य का केंद्र बन गया है। यहाँ सिगरेट व कपड़ा उत्पादन होता है और सेवा उद्योगों का विस्तार किया गया है। नगर में परिवहन की भी अच्छी सुविधाएँ हैं। दिल्ली, कोलकाता, मुंबई, चेन्नई और बंगलोर के लिए रेल व वायु सेवाएँ हैं, साथ ही ऐतिहासिक स्थलों, अजंता और एलोरा से जुड़े औरंगाबाद के लिए भी टैक्सियाँ, ऑटो-रिक्शा, साइकिल रिक्शा, निजी वाहन और बस व रेल सेवाएँ स्थानीय परिवहन उपलब्ध कराती हैं।

शिक्षण संस्थान

आरंभ में हैदराबाद में मद्रास विश्वविद्यालय से संबद्ध दो महाविद्यालय थे। लेकिन 1918 में निज़ाम ने उस्मानिया विश्वाविद्यालय की स्थापना की और अब यह भारत के श्रेष्ठ विश्वविद्यालयों में से एक है। हैदराबाद विश्वविद्यालयों की स्थापना 1974 में हुई। एक कृषि विश्वविद्यालय और कई ग़ैर सरकारी संस्थान, जैसे अमेरिकन स्टडीज़ रिसर्च सेंटर और जर्मन इंस्टिट्यूट ऑफ़ ओरिएंटल रिसर्च भी हैं।

हैदराबाद में सार्वजनिक व निजी सांस्कृतिक संगठन बड़ी संख्या में हैं, जैसे राज्य द्वारा सहायता प्राप्त नाट्य, साहित्य व ललित कला अकादमियाँ। सार्वजनिक सभागृह रबींद्र भारती नृत्य व संगीत महोत्सवों के लिए मंच प्रदान करता है और सालारजंग संग्रहालय में दुर्लभ वस्तुओं का संगृह है, जिनमें संगेयशब, आभूषण, चित्र और फ़र्नीचर शामिल हैं।

सार्वजनिक उद्यान

सार्वजनिक उद्यान प्रमुख मनोरंजन सुविधाएँ उपलब्ध कराते हैं। विभिन्न पार्कों और सिकंदराबाद में बड़े परेड मैदानों में खेल व मनोरंजन की सुविधाएँ उपलब्ध हैं। चिड़ियाघर व विश्वविद्यालय का वानस्पतिक उद्यान लोकप्रिय आमोद स्थल है। हैदराबाद फुटबॉल और क्रिकेट के लिए प्रसिद्ध है। यहाँ एक रेसकोर्स भी है।

जनसंख्या

2001 की जनगणना के अनुसार हैदराबाद क्षेत्र की जनसंख्या 34,49,878 है, ज़िले की कुल जनसंख्या 36,86,460 है।

चारमीनार से हैदराबाद का विहंगम दृश्य

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