चंद्रशेखर वेंकट रामन
चंद्रशेखर वेंकट रामन
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पूरा नाम | चंद्रशेखर वेंकट रामन |
अन्य नाम | सी.वी. रमन |
जन्म | 7 नवम्बर, 1888 |
जन्म भूमि | तिरुचिरापल्ली, तमिलनाडु |
मृत्यु | 21 नवम्बर, 1970 |
मृत्यु स्थान | बेंगळूरू |
अभिभावक | चंद्रशेखर अय्यर, पार्वती अम्माल |
पति/पत्नी | त्रिलोकसुंदरी |
कर्म भूमि | भारत, ब्रिटेन |
कर्म-क्षेत्र | विज्ञान |
विषय | भौतिकी |
खोज | रामन प्रभाव |
शिक्षा | एम. ए. |
विद्यालय | प्रेसीडेंसी कॉलेज |
पुरस्कार-उपाधि | 'भारत रत्न', 'नोबेल पुरस्कार', 'लेनिन पुरस्कार' |
नागरिकता | भारतीय |
चंद्रशेखर वेंकट रामन (अंग्रेज़ी: Chandrasekhara Venkata Raman, जन्म: 7 नवम्बर, 1888; मृत्यु: 21 नवम्बर, 1970) पहले व्यक्ति थे, जिन्होंने वैज्ञानिक संसार में भारत को ख्याति दिलाई। प्राचीन भारत में विज्ञान की उपलब्धियाँ थीं, जैसे- शून्य और दशमलव प्रणाली की खोज, पृथ्वी के अपनी धुरी पर घूमने के बारे में तथा आयुर्वेद के फ़ारमूले इत्यादि। मगर पूर्णरूप से विज्ञान के प्रयोगात्मक कोण में कोई विशेष प्रगति नहीं हुई थी। रामन ने उस खोये रास्ते की खोज की और नियमों का प्रतिपादन किया जिनसे स्वतंत्र भारत के विकास और प्रगति का रास्ता खुल गया। रामन ने स्वाधीन भारत में विज्ञान के अध्ययन और शोध को जो प्रोत्साहन दिया उसका अनुमान कर पाना कठिन है।
परिचय
चंद्रशेखर वेंकट रामन का जन्म तमिलनाडु के तिरुचिरापल्ली शहर में 7 नवम्बर 1888 को हुआ था, जो कि कावेरी नदी के किनारे स्थित है। इनके पिता चंद्रशेखर अय्यर एक स्कूल में पढ़ाते थे। वह भौतिकी और गणित के विद्वान् और संगीत प्रेमी थे। चंद्रशेखर वेंकट रामन की माँ पार्वती अम्माल थीं। उनके पिता वहाँ कॉलेज में अध्यापन का कार्य करते थे और वेतन था मात्र दस रुपया। उनके पिता को पढ़ने का बहुत शौक़ था। इसलिए उन्होंने अपने घर में ही एक छोटी-सी लाइब्रेरी बना रखा थी। रामन का विज्ञान और अंग्रेज़ी साहित्य की पुस्तकों से परिचय बहुत छोटी उम्र से ही हो गया था। संगीत के प्रति उनका लगाव और प्रेम भी छोटी आयु से आरम्भ हुआ और आगे चलकर उनकी वैज्ञानिक खोजों का विषय बना। वह अपने पिता को घंटों वीणा बजाते हुए देखते रहते थे। जब उनके पिता तिरुचिरापल्ली से विशाखापत्तनम में आकर बस गये तो उनका स्कूल समुद्र के तट पर था। उन्हें अपनी कक्षा की खिड़की से समुद्र की अगाध नीली जलराशि दिखाई देती थी। इस दृश्य ने इस छोटे से लड़के की कल्पना को सम्मोहित कर लिया। बाद में समुद्र का यही नीलापन उनकी वैज्ञानिक खोज का विषय बना।
- छोटी-सी आयु से ही वह भौतिक विज्ञान की ओर आकर्षित थे।
- एक बार उन्होंने विशेष उपकरणों के बिना ही एक डायनमों बना डाला।
- एक बार बीमार होने पर भी वह तब तक नहीं माने थे जब तक कि पिता ने 'लीडन जार' के कार्य का प्रदर्शन करके नहीं दिखाया।
- रामन अपनी कक्षा के बहुत ही प्रतिभाशाली विद्यार्थी थे।
- उन्हें समय-समय पर पुरस्कार और छात्रवृत्तियाँ मिलती रहीं।
- अध्यापक बार-बार उनकी अंग्रेज़ी भाषा की समझ, स्वतंत्रप्रियता और दृढ़ चरित्र की प्रशंसा करते थे।
- केवल ग्यारह वर्ष की उम्र में वह दसवीं की परीक्षा में प्रथम आये।
- मद्रास के प्रेसीडेंसी कॉलेज में पहले दिन की कक्षा में यूरोपियन प्राध्यापक ने नन्हें रामन को देखकर कहा कि वह ग़लती से उनकी कक्षा में आ गये हैं।