पंजाबी भाषा  

पंजाबी भाषा भारतीय आर्य भाषा, जिसे शौरसेनी अपभ्रंश के साथ उत्पन्न हुआ माना जाता है। लेकिन इसके स्वर विज्ञान और रूप विधान, दोनों में आरंभिक प्राकृत भाषाओं, विशेषकर पालि और आदि-आर्य भाषाओं) का प्रभाव है। इस प्रकार पंजाबी भाषा प्राचीन पंजाब की सांस्कृतिक और भाषाशास्त्रीय अंतर्धाराओं का एक सतत भाषा शास्त्रीय इतिहास प्रस्तुत करती है।

विशेषताएँ

  • पंजाबी भाषा भारत तथा पाकिस्तान में बोली जाती है। भारत में यह लगभग ढाई करोड़ नागरिकों की 'मातृभाषा' है। भारत के पंजाब राज्य में इसका उपयोग स्कूल, कॉलेज और विश्वविद्यालयों में माध्यम भाषा के रूप में भी होता है।
  • आधुनिक पंजाबी की सबसे प्रमुख विशेषता, इसकी तीन प्रकार की स्वर प्रणाली है, जिसके उच्च, मध्यम और निम्न स्वर हैं। स्वर विज्ञान की दृष्टि से इन्हें उच्च उतार-चढ़ाव, मध्य उतार-चढ़ाव, तथा बहुत निम्न चढ़ाव वाली रूपरेखा के रूप में वर्णित किया जा सकता है, जो दो सतत अक्षरों पर अनुभूत होती है।
  • दूसरी सबसे बड़ी विशेषता इसमें शब्दों की विशाल संख्या, विशेषकर प्राचीन स्थानों के नाम तथा उनसे उत्पन्न संज्ञाएं व विशेषण और मूर्धन्य स्वर ( तालू को मुड़ी हुई जिह्वा के शीर्ष के स्पर्श से उच्चारित ध्वनि ) है। ऐसे अधिकांश शब्द पश्चिमी पुरा-आर्य सभ्यताओं में पाए जाते हैं।
  • पंजाबी में सबसे पुरानी रचनाएं नाथयोगी काल की हैं। जो नौवीं से चौदहवीं शताब्दी की है, जब पंजाब सामाजिक, धार्मिक आंदोलनों का मुख्य केंद्र था। बनावट की दृष्टि से इन रचनाओं की भाषा शौरसेनी अपभ्रंश के निकट है हालांकि शब्द संग्रह तथा लय पर बोलचाल की भाषा और लोकभाषा का काफ़ी गहरा प्रभाव है।
  • 11वीं से 14वीं शताब्दी के बीच एक सबसे महत्त्वपूर्ण भाषाई और सांस्कृतिक आंदोलन का नेतृत्व सूफ़ी संतों ने किया। मुख्यधारा की रूढ़िवादिता के ख़िलाफ़ अस्तित्वात्मक विचारधारा पर बल देने में वे योगियों के समान थे। शास्त्रीय ब्राह्मणवाद में योगी थे और रूढ़िवादी इस्लाम में सूफ़ी। भाषा के मामले में परिवर्तन अधिक व्यापक था। योगी तो भारतीय धार्मिक परंपरा के भीतर ही कार्यरत थे, अत: उनकी भाषा लगातार अपभ्रंश रूप-विधान और वाक्य विन्यास से समृध्द होती रही। सूफ़ियों को सब कुछ नये ढंग से शुरू करना पड़ा, फ़ारसी शब्द संग्रह के आध्यात्मिक स्वरों से अलग सूफ़ियों ने अपने भाषाई उपदेशों को सबसे लोकप्रिय लोकस्तर पर क़ायम किया। कई मायनों में वे पंजाबी भाषा के पहले कवि थे, जिन्होंने साहित्य की योगी परंपरा को जारी रखते हुए पंजाब के मानसिक , आध्यात्मिक और सामाजिक जीवन के प्रत्येक आयाम में प्रवेश किया।
  • गुरु नानक (1469-1539) पंजाबी भाषा, साहित्य और संस्कृति के जनक हैं। प्रत्येक क्षेत्र में उन्होंने पुराने, शब्दादेशी ढांचे को रूपमय मानस छवियों में बदल दिया। उन्होंने क़दम-क़दम पर भाषाई पाठ को उदाहरणमय रूपकों में समझाया। बोलचाल की पंजाबी भाषा के बल पर गुरु नानक ने भारतीय संस्कृति के एक बेहद सुसंस्कृत आध्यात्मिक उपदेश-संग्रह की रचना की।
  • भाषा शास्त्रीय दृष्टि से पंजाब भाषा धार्मिक उपदेशों से हटकर धर्मनिरपेक्ष और ऐंद्रिक स्वच्छंद स्वरूपों में आ गई है। 20वीं सदी के पंजाब में कई सामाजिक और धार्मिक राजनीतिक आंदोलनों का प्रभाव रहा, जिसमें ऐतिहासिक विकास-प्रक्रिया से विखंडन हुआ। अब तक पजाबी भाषा, साहित्य और संस्कृति सभी पंजाबियों की विरासत थी।
  • पारंपरिक धार्मिक स्वर से आच्छादित इन आंदोलनों के फलस्वरूप मुसलमानों ने उर्दू, हिंदुओं में हिन्दी और सिक्खों ने पंजाबी को अपना लिया, हालांकि इससे बोली पर बहुत कम प्रभाव पड़ा, लेकिन लिखित, मानक भाषा का शब्द-विन्यास विशिष्ट सिक्ख संस्कृति से प्रभावित हो गया है।


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