जौनसारी भाषा  

जौनसारी भाषा उत्तराखंड राज्य में बोली जाने वाली सबसे बड़ी भाषा है। यह भारतीय आर्य भाषा परिवार की बोली है, जिसे गियर्सन ने पश्चिमी पहाड़ी वर्ग में रखा है। जौनसारी की भी कई उप-बोलियाँ मानी गई हैं, जैसे- 'बावरी' और 'कंडवाणी' आदि। किंतु यह दुर्भाग्य है कि अब भारत में इस भाषा को बोलने वाले बहुत कम लोग ही हैं।

जनजातीय भाषा

बहुत कम लोगों को यह जानकारी है कि उत्तराखंड में गढ़वाली और कुमाऊँनी के इतर भी कई भाषाएँ हैं। इनमें से कई जनजातीय भाषाएँ भी हैं, जैसे- 'मार्छा', 'रं', 'बोक्सा' और 'राजी' आदि। यद्यपि यह अभी भी विवाद का विषय है कि जौनसारी एक स्वतंत्र भाषा है या गढ़वाली की ही एक उपबोली है, किंतु जो भी हो इतना तो तय है कि इस भाषा की अपनी कुछ विशिष्ट विशेषताएँ भी हैं।

उप-बोलियाँ

जौनसारी भारतीय आर्य भाषा परिवार की बोली है और गियर्सन ने इसे पश्चिमी पहाड़ी वर्ग में रखा है। जौनसारी भाषा उत्तराखंड के देहरादून के जौनसार क्षेत्र, जिसमें जौनसार, कलसी, लाखामण्डल और चकराता आता है, तथा उत्तरकाशी के कुछ इलाकों में बोली जाती है। जौनसारी की भी कई उप-बोलियाँ मानी गई हैं, जैसे- 'बावरी' और 'कंडवाणी' आदि। इसकी अपनी एक विशिष्ट बोली भी है, जो कि वर्तमान में अधिक लोकप्रिय नहीं रह गई है। इसका नाम है- "बागोई", अर्थात् "भाग्य की बही"। किंतु ज्योतिष ग्रंथों के रूप में यह लिपि सुरक्षित है। इस लिपि का उद्गम स्थल कश्मीर माना जाता है और इसमें बारह स्वर और पैंतीस व्यंजन हैं।

बोलने वालों की कमी

भारत में यह दुर्भाग्य की बात है कि कालांतर में एनी बोलियों के समान ही जौनसारी भाषा बोलने वाले आज अधिक लोग नहीं रह गए हैं। नई पीढ़ी में अपनी इस पुरखों की पहचान की ओर कम आकर्षण देखा गया है, लेकिन सभी को यह ध्यान रखना चाहिये कि उत्तराखंडी भाषाओं के पुष्प गुच्छ में जौनसारी नामक फूल की अपनी एक विशिष्ट महक रहेगी।


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