मौसर प्रथा  

मौसर राजस्थान में किसी वृद्ध की मृत्यु होने पर परिजनों द्वारा उसकी आत्मा की शांति के लिए दिया जाने वाला मृत्युभोज है।

  • जब कोई व्यक्ति मर जाता है तो मृत्यु के तीसरे दिन व बाहरवें दिन ब्राह्मणों व रिश्तेदारों को, गाँव के लोगों को, समाज के लोगों को खाना खिलाया जाता है, मृतक के लिये पूजा-अर्चना की जाती है व उसके स्वर्ग जाने व आत्मा की शांति के लिये प्रार्थना की जाती है। ग़रीबों व ब्राह्मणों को दान-दक्षिणा दी जाती है। यह बारह दिन का मृत्युभोज 'मौसर' कहलाता है।
  • इसके बाद मृतक की मौत के एक महीने बाद फिर यही होता है। उसे कहते हैं- 'महीने का घड़ा भरना'। फिर तीन महीने व छह महीने बाद यही सब होता है, जिनको 'तिमाही व छमाही का घड़ा भरना' बोलते हैं।
  • जब पूरे बारह महीने हो जाते हैं तो फिर यही सब होता है जिसको बरसी बोलते है, इसके बाद आता है श्राद्ध
  • राजस्थान में यह मृत्युभोज प्रथा बहुत पुरानी है जो अभी तक चलती आ रही है।

इन्हें भी देखें: राजस्थान की संस्कृति, राजस्थान की जनजातियाँ, राजस्थान का इतिहास एवं राजस्थान के रीति-रिवाज


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