अग्नि परीक्षा
अग्नि परीक्षा
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विवरण | 'अग्नि परीक्षा' प्राचीन भारत में प्रचलित थी। यह स्त्रियों के सतीत्व तथा अपराधियों के निर्दोष होने की परीक्षण विधि थी। |
देश | भारत तथा भारतोत्तर देशों में व्याप्त थी। |
प्रचलन समय | प्राचीन काल से |
विशेष | प्राचीन भारत के समान यूरोप में भी चोरों के दोषा-दोष की परीक्षा आग के द्वारा की जाती थी। |
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अन्य जानकारी | भारतवर्ष में भगवती सीता की 'अग्नि परीक्षा' इस विषय का नितान्त प्रख्यात उदाहरण है। स्मृतिग्रन्थों में भी अग्नि परीक्षा के बारे में बताया गया है। |
अग्नि परीक्षा एक परीक्षण विधि है, जिसमें अग्नि द्वारा स्त्रियों के सतीत्व का तथा अपराधियों के निर्दोष होने का परीक्षण किया जाता है। भारत तथा भारतोत्तर देशों में अग्नि द्वारा परीक्षण अत्यन्त प्राचीन काल से प्रचलित रहा है। परीक्षा का मूल यह है कि अग्नि जैसे तेजस्वी पदार्थ के सम्पर्क में आने पर, जो वस्तु या व्यक्ति किसी प्रकार का विकार प्राप्त नहीं करता, वह वस्तुत: विशुद्ध, दोषरहित तथा पवित्र माना जाता है।
प्राचीनता
भारतवर्ष में भगवती सीता की 'अग्नि परीक्षा' इस विषय का नितान्त प्रख्यात उदाहरण है। स्त्रियों के सतीत्व का 'अग्नि परीक्षा' का प्रकार यह है कि संदिग्ध चरित्र वाली स्त्री को हल्का लोहे का फार आग में खूब गरम कर जीभ से चाटने के लिए दिया जाता है। यदि उसका मुँह नहीं जलता, तो वह सती समझी जाती थी। प्राचीन भारत के समान यूरोप में भी चोरों के दोषा-दोष की परीक्षा आग के द्वारा की जाती थी। अंग्रेज़ी में इसे 'आरडियल' कहते हैं तथा संस्कृत में 'दिव्य'।
टीका टिप्पणी और संदर्भ
भारतीय संस्कृति कोश, भाग-2 |प्रकाशक: यूनिवर्सिटी पब्लिकेशन, नई दिल्ली-110002 |संपादन: प्रोफ़ेसर देवेन्द्र मिश्र |पृष्ठ संख्या: 21 |