दहेज प्रथा
दहेज प्रथा
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विवरण | 'दहेज प्रथा' विश्व के कई देशों में प्रचलित एक सामाजिक कुप्रथा है। आज भारत सहित कई देशों में इस कुप्रथा ने एक गम्भीर स्थिति उत्पन्न कर दी है। |
अन्य नाम | 'हुँडा', 'वरदक्षिणा', 'जहेज़'[1] |
विशेष | दहेज का प्रयोग अक्सर न केवल विवाह के लिए स्त्री की वांछनीयता बढ़ाने के लिए हुआ, बल्कि बड़े परिवारों में यह सत्ता और संपत्ति बढ़ाने और कई बार राज्यों की सीमा व नीतियों के निर्धारण का कारण बना। |
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अन्य जानकारी | वर-वधू के परिवारों के बीच कई बार दहेज को लेकर सहमति न होने पर रिश्ते टूट जाते हैं। दहेज प्रथा के वीभत्स प्रमाण हैं, प्रताड़ना की घटनाएँ; जो अंतत: नवविवाहित वधुओं की 'दहेज हत्या' के रूप में परिणित होती हैं। |
दहेज का अर्थ है जो सम्पत्ति, विवाह के समय वधू के परिवार की तरफ़ से वर को दी जाती है। दहेज को उर्दू में 'जहेज़' कहते हैं। यूरोप, एशिया, अफ्रीका और दुनिया के अन्य भागों में दहेज प्रथा का लंबा इतिहास है। भारत में इसे दहेज, हुँडा या वरदक्षिणा के नाम से भी जाना जाता है तथा वधू के परिवार द्वारा नक़द या वस्तुओं के रूप में यह वर के परिवार को वधू के साथ दिया जाता है। संभवत: इस प्रथा को उन समाजों में महत्त्व प्राप्त हुआ होगा, जहाँ छोटी उम्र में विवाह प्रचलित रहे होंगे।
दहेज का उद्देश्य
दहेज का उद्देश्य नवविवाहित पुरुष को गृहस्थी जमाने में मदद करना था, जो अन्य आर्थिक संसाधनों के अभाव में शायद वह स्वयं नहीं कर सकता था। कुछ समाजों में दहेज का एक अन्य उद्देश्य था, पति की अकस्मात् मृत्यु होने पर पत्नी को जीवन निर्वाह में सहायता देना। दहेज के पीछे एक अवधारणा यह भी रही होगी कि पति, विवाह के साथ आई ज़िम्मेदारी का निर्वाह ठीक तरह से कर सके। वर्तमान युग में भी दहेज नवविवाहितों के जीवन-निर्वाह में मदद के उद्देश्य से ही दिया जाता है।