गृधकूट  

गृधकूट राजगृह, बिहार की पाँच पहाड़ियों में से एक है। इसका उल्लेख पालि ग्रंथों में हुआ है। वहाँ इसे 'गिज्झकूट' कहा गया और इसे एक अन्य पहाड़ी वैपुल्य के दक्षिण में स्थित बताया गया है। गृधकूट की पहाड़ी का अभिज्ञान राजगृह के निकट स्थित छठे गिरि से किया गया है। इस पहाड़ी में दो प्राकृतिक गुफाएँ आज भी वर्तमान हैं।

  • गुफाओं के बाहर दो प्राचीन प्रस्तर भित्तियों के अवशेष भी मिले हैं। पास ही कुछ सीढ़ियाँ चढ़ने के बाद एक चबूतरे पर अनेक छोटे-छोटे बौद्ध मंदिर दिखाई देते हैं। इन बातों से इस स्थान का प्राचीन महत्व प्रमाणित होता है।
  • दूसरी या तीसरी सदी ई. की एक मूर्तिकारी में भी गृधकूट की प्रसिद्ध गुफाओं का अंकन किया गया है।
  • गृधकूट से प्राप्त कलावशेष नालंदा संग्रहालय में सुरक्षित हैं।
  • संभवत: इस शिखर का आकार गिद्ध के समान होने से यह नाम पड़ा है।
  • चीनी यात्री फाह्यान के अनुसार गौतम बुद्ध ने इस स्थान पर अपने प्रिय शिष्य आनन्द की, गृध का रूप धारण करके डरा देने वाले मार से रक्षा की थी और इसी कारण इसका नाम 'गृधकूट' पड़ा।
  • गौतम बुद्ध को यह पहाड़ी बहुत प्रिय थी और जब वे राजगृह में होते तो वर्षाकाल गृधकूट की एक गुफा में ही बिताते थे। उन्होंने राजगृह के जिन स्थानों को रुचिकर एवं सुखदायक बताया था, उनमें गृधकूट भी है।
  • फाह्यान ने लिखा है कि- "बुद्ध जिस गुफा में निवास करते थे, वह पर्वत शिखर से तीन ली (1 मील) पर थी"।
  • युवानच्वांग ने इंदसिला गुहा नाम से जिस स्थान का उल्लेख किया है, वह यही जान पड़ता है।
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