"प्रयोग:नवनीत1" के अवतरणों में अंतर  

पंक्ति १: पंक्ति १:
{| style="background:transparent; float:right"
+
{{हिन्दी विषय सूची}}
|-valign="top"
+
 
 +
'''हिंदी''' भारतीय गणराज की राजकीय और मध्य भारतीय- आर्य भाषा है। सन [[2001]] की जनगणना के अनुसार, लगभग 25.79 करोड़ भारतीय [[हिंदी]] का उपयोग मातृभाषा के रूप में करते हैं, जबकि लगभग 42.20 करोड़ लोग इसकी 50 से अधिक बोलियों में से एक इस्तेमाल करते हैं। सन [[1998]] के पूर्व, मातृभाषियों की संख्या की दृष्टि से विश्व में सर्वाधिक बोली जाने वाली भाषाओं के जो आँकड़े मिलते थे, उनमें हिन्दी को तीसरा स्थान दिया जाता था।
 +
==बंगाल==
 +
{| class="bharattable-pink" border="1" width="25%" style="margin:5px; float:right"  
 +
|+ हिंदी के लिए महापुरुष कथन
 +
|-
 +
| हिंदी किसी के मिटाने से मिट नहीं सकती।<br /> '''[[चन्द्रबली पाण्डेय]]'''
 +
|-
 
|
 
|
{{सूचना बक्सा राजनीतिज्ञ
+
<poem>है भव्य [[भारत]] ही हमारी मातृभूमि हरी भरी।
|चित्र=Indira-Gandhi.jpg
+
हिंदी हमारी राष्ट्रभाषा और लिपि है नागरी ॥ <br />'''[[मैथिलीशरण गुप्त]]'''</poem>
|पूरा नाम=इंदिरा प्रियदर्शनी गाँधी
+
|-
|अन्य नाम=इन्दु
+
| जिस भाषा में [[तुलसीदास]] जैसे कवि ने कविता की हो वह अवश्य ही पवित्र है और उसके सामने कोई भाषा नहीं ठहर सकती। <br />'''[[महात्मा गाँधी]]''' 
|जन्म=[[19 नवम्बर]], [[1917]]
+
|-
|जन्म भूमि=[[इलाहाबाद]], [[उत्तर प्रदेश]]
+
| हिंदी भारतवर्ष के हृदय-देश स्थित करोड़ों नर-नारियों के [[हृदय]] और मस्तिष्क को खुराक देने वाली भाषा है।  <br />'''[[हज़ारीप्रसाद द्विवेदी]]'''
|अभिभावक=[[जवाहरलाल नेहरू]], [[कमला नेहरू]]
+
|-
|पति/पत्नी=[[फ़ीरोज़ गाँधी]]
+
| हिंदी को [[गंगा]] नहीं बल्कि समुद्र बनना होगा।  <br />'''[[विनोबा भावे]]'''
|संतान=[[राजीव गाँधी]] और [[संजय गाँधी]]
+
|-
|मृत्यु=[[31 अक्टूबर]], [[1984]]
+
| हिंदी के विरोध का कोई भी आन्दोलन राष्ट्र की प्रगति में बाधक है। <br />'''सुभाष चन्द्र बसु'''
|मृत्यु स्थान=[[दिल्ली]]
+
|-
|मृत्यु कारण=हत्या
+
| हिंदी को [[संस्कृत]] से विच्छिन्न करके देखने वाले उसकी अधिकांश महिमा से अपरिचित हैं।  <br />'''[[हज़ारीप्रसाद द्विवेदी]]'''
|स्मारक=शक्ति स्थल, दिल्ली
 
|क़ब्र=
 
|नागरिकता=
 
|प्रसिद्धि=[[1971]] के [[भारत]] -[[पाकिस्तान]] युद्ध में भारत की विजय
 
|पार्टी=[[भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस|काँग्रेस]]
 
|पद=[[:श्रेणी:भारत के प्रधानमंत्री|भारत की तृतीय प्रधानमंत्री]]
 
|भाषा=[[हिन्दी भाषा|हिन्दी]], [[अंग्रेज़ी भाषा|अंग्रेज़ी]]
 
|जेल यात्रा=[[अक्टूबर]], [[1977]] और [[दिसम्बर]], [[1978]]
 
|कार्य काल=[[19 जनवरी]], [[1966]] से [[24 मार्च]], [[1977]], [[14 जनवरी]], [[1980]] से [[31 अक्टूबर]], [[1984]]
 
|विद्यालय=[[विश्वभारती विश्वविद्यालय|विश्वभारती विश्वविद्यालय बंगाल]], इंग्लैंड की ऑक्सफ़ोर्ड यूनिवर्सिटी, शांति निकेतन
 
|शिक्षा=
 
|पुरस्कार-उपाधि=[[भारत रत्न]] सम्मान
 
|विशेष योगदान=बैंको का राष्ट्रीयकरण
 
|संबंधित लेख=
 
|शीर्षक 1=
 
|पाठ 1=
 
|शीर्षक 2=
 
|पाठ 2=
 
|अन्य जानकारी=
 
|बाहरी कड़ियाँ=
 
|अद्यतन=
 
}}
 
|
 
{{इंदिरा गाँधी विषय सूची}}
 
 
|}
 
|}
'''इंदिरा प्रियदर्शनी गाँधी''' (जन्म- [[19 नवम्बर]], [[1917]] [[इलाहाबाद]] - मृत्यु- [[31 अक्टूबर]], [[1984]] [[दिल्ली]]) न केवल [[भारत|भारतीय]] राजनीति पर छाई रहीं बल्कि विश्व राजनीति के क्षितिज पर भी वे एक प्रभाव छोड़ गईं। श्रीमती इंदिरा गाँधी का जन्म नेहरू ख़ानदान में हुआ था। इंदिरा गाँधी, भारत के प्रथम [[प्रधानमंत्री]] पंडित जवाहरलाल नेहरू की इकलौती पुत्री थीं। आज इंदिरा गाँधी को सिर्फ़ इस कारण नहीं जाना जाता कि वह पंडित जवाहरलाल नेहरू की बेटी थीं बल्कि इंदिरा गाँधी अपनी प्रतिभा और राजनीतिक दृढ़ता के लिए 'विश्वराजनीति' के इतिहास में जानी जाती हैं और इंदिरा गाँधी को 'लौह-महिला' के नाम से संबोधित किया जाता है। ये भारत की प्रथम महिला प्रधानमंत्री थीं।
+
[[राजा राममोहन राय]], [[केशवचंद्र सेन]], नवीन चंद्र राय, [[ईश्वर चंद्र विद्यासागर]], तरुणी चरण मिश्र, राजेन्द्र लाल मित्र, राज नारायण बसु, भूदेव मुखर्जी, बंकिम चंद्र चैटर्जी ('हिंदी भाषा की सहायता से भारतवर्ष के विभिन्न प्रदेशों के मध्य में जो ऐक्यबंधन संस्थापन करने में समर्थ होंगे वही सच्चे भारतबंधु पुकारे जाने योग्य हैं।)', [[सुभाषचंद्र बोस]] ('अगर आज हिंदी भाषा मान ली गई है तो वह इसलिए नहीं कि वह किसी प्रान्त विशेष की भाषा है, बल्कि इसलिए कि वह अपनी सरलता, व्यापकता तथा क्षमता के कारण सारे देश की भाषा हो सकती है।') [[रवीन्द्रनाथ टैगोर]] ('यदि हम प्रत्येक भारतीय के नैसर्गिक अधिकारों के सिद्धांत को स्वीकार करते हैं, तो हमें राष्ट्रभाषा के रूप में इस भाषा को स्वीकार करना चाहिए जो देश के सबसे बड़े भू–भाग में बोली जाती है और जिसे स्वीकार करने की सिफ़ारिश महात्मा गाँधीजी ने हम लोगों से की है।') रामानंद चटर्जी, [[सरोजिनी नायडू]], शारदा चरण मित्र, आचार्य क्षिति मोहन सेन ('हिंदी को राष्ट्रभाषा बनाने हेतु जो अनुष्ठान हुए हैं, उनको मैं संस्कृति का राजसूय यज्ञ समझता हूँ।') आदि।
 +
====महाराष्ट्र====
 +
[[बाल गंगाधर तिलक]] ('यह आंदोलन [[उत्तर भारत]] में केवल एक सर्वमान्य [[लिपि]] के प्रचार के लिए नहीं है। यह तो उस आंदोलन का एक अंग है, जिसे मैं एक राष्ट्रीय आंदोलन कहूँगा और जिसका उद्देश्य समस्त भारतवर्ष के लिए एक राष्ट्रीय भाषा की स्थापना करना है, क्योंकि सबके लिए समान भाषा राष्ट्रीयता का महत्त्वपूर्ण अंग है। अतएव यदि आप किसी राष्ट्र के लोगों को एक–दूसरे के निकट लाना चाहें तो सबके लिए समान भाषा से बढ़कर सशक्त अन्य कोई बल नहीं है।'), एन. सी. केलकर, डॉ. भण्डारकर, वी. डी. सावरकर, [[गोपाल कृष्ण गोखले]], गाडगिल, [[काका कालेलकर]] आदि।
  
==जीवन परिचय==
+
====पंजाब====
{{main| इंदिरा गाँधी का जीवन परिचय}}
+
[[लाला लाजपत राय]], श्रद्धाराम फिल्लौरी आदि।
इनका जन्म 19 नवम्बर, 1917 को [[इलाहाबाद]], [[उत्तर प्रदेश]] के [[आनंद भवन]] में एक सम्पन्न परिवार में हुआ था। इनका पूरा नाम है- 'इंदिरा प्रियदर्शनी गाँधी'। इनके पिता का नाम जवाहरलाल नेहरू और दादा का नाम मोतीलाल नेहरू था। पिता एवं दादा दोनों वकालत के पेशे से संबंधित थे और देश की स्वाधीनता में इनका प्रबल योगदान था। इनकी माता का नाम कमला नेहरू था जो दिल्ली के प्रतिष्ठित कौल परिवार की पुत्री थीं। '''इंदिराजी का जन्म ऐसे परिवार में हुआ था जो आर्थिक एवं बौद्धिक दोनों दृष्टि से काफ़ी संपन्न था।''' अत:  इन्हें आनंद भवन के रूप में महलनुमा आवास प्राप्त हुआ। इंदिरा जी का नाम इनके दादा पंडित मोतीलाल नेहरू ने रखा था। यह संस्कृतनिष्ठ शब्द है जिसका आशय है कांति, लक्ष्मी, एवं शोभा। इनके दादाजी को लगता था कि पौत्री के रूप में उन्हें मां लक्ष्मी और दुर्गा की प्राप्ति हुई है। पंडित नेहरू ने अत्यंत प्रिय देखने के कारण अपनी पुत्री को प्रियदर्शिनी के नाम से संबोधित किया जाता था। चूंकि जवाहरलाल नेहरू और कमला नेहरू स्वयं बेहद सुंदर तथा आकर्षक व्यक्तित्व के मालिक थे, इस कारण सुंदरता के मामले में यह गुणसूत्र उन्हें अपने माता-पिता से प्राप्त हुए थे। इन्हें एक घरेलू नाम भी मिला जो इंदिरा का संक्षिप्त रूप 'इंदु' था।
+
====गुजरात====
==विद्यार्थी जीवन==
+
[[दयानंद सरस्वती]], [[महात्मा गाँधी]], [[वल्लभभाई पटेल]], [[कन्हैयालाल माणिकलाल मुंशी]] ('हिंदी को राष्ट्रभाषा बनाना नहीं है, वह तो है ही।') आदि।
{{main| इंदिरा गाँधी का विधार्थी जीवन}}
+
====दक्षिण भारत====
इंदिरा जी को जन्म के कुछ वर्षों बाद भी शिक्षा का अनुकूल माहौल नहीं उपलब्ध हो पाया था। पाँच वर्ष की अवस्था हो जाने तक बालिका इंदिरा ने विद्यालय का मुख नहीं देखा था। पिता जवाहरलाल नेहरू देश की आज़ादी के आंदोलन में व्यस्त थे और माता कमला नेहरू उस समय बीमार रहती थीं। घर का वातावरण भी पढ़ाई के अनुकूल नहीं था। [[भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस|कांग्रेस]] के कार्यकर्ताओं का रात-दिन आनंद भवन में आना जाना लगा रहता था। तथापि पंडित नेहरू ने पुत्री की शिक्षा के लिए घर पर ही शिक्षकों का इंतज़ाम कर दिया था। बालिका इंदु को आनंद भवन में ही शिक्षकों द्वारा पढ़ाया जाता था।
+
*[[सी. राजगोपालाचारी]], टी. विजयराघवाचार्य ('हिन्दुस्तान की सभी जीवित और प्रचलित भाषाओं में मुझे हिंदी ही राष्ट्रभाषा बनने के लिए सबसे अधिक योग्य दिखाई पड़ती है।'),
 +
*सी. पी. रामास्वामी अय्यर ('देश के विभिन्न भागों के निवासियों के व्यवहार के लिए सर्वसुगम और व्यापक तथा एकता स्थापित करने के साधन के रूप में हिंदी का ज्ञान आवश्यक है।')
 +
*अनन्त शयनम आयगर ('हिंदी ही उत्तर और दक्षिण को जोड़ने वाली समर्थ भाषा है।')
 +
*[[एस. निजलिंगप्पा]] ('दक्षिण की भाषाओं ने संस्कृत से बहुत कुछ लेन–देन किया है, इसलिए उसी परम्परा में आई हुई हिंदी बड़ी सरलता से राष्ट्रभाषा होने के लायक़ है।')
 +
*रंगनाथ रामचंद्र दिवाकर ('जो राष्ट्रप्रेमी है, उसे राष्ट्रभाषा प्रेमी होना चाहिए।')
 +
*के. टी. भाष्यम, आर. वेंकटराम शास्त्री, एन. सुन्दरैया आदि।
 +
अन्य—[[मदनमोहन मालवीय]], [[पुरुषोत्तम दास टंडन]] ('हिंदी का प्रहरी'), [[राजेन्द्र प्रसाद]], सेठ गोविन्द दास आदि।
  
==प्रधानमंत्रित्व काल==
+
====महात्मा गाँधी के विचार====
{{main|इंदिरा गाँधी का प्रधानमंत्रीत्व काल}}
+
#'करोड़ों लोगों को [[अंग्रेज़ी]] की शिक्षा देना उन्हें ग़ुलामी में डालने जैसा है। [[लॉर्ड मैकाले|मैकाले]] ने शिक्षा की जो बुनियाद डाली, वह सचमुच ग़ुलामी की बुनियाद थी'।<ref>हिन्द स्वराज, 1909</ref>
इंदिरा गाँधी लगातार तीन बार (1966-1977) और फिर चौथी बार (1980-84) भारत की प्रधानमंत्री बनी।
+
#"अंग्रेज़ी भाषा हमारे राष्ट्र के पाँव में बेड़ी बनकर पड़ी हुई है।" भारतीय विद्यार्थी को अंग्रेज़ी के मार्फ़त ज्ञान अर्जित करने पर कम से कम 6 वर्ष अधिक बर्बाद करने पड़ते हैं। यदि हमें एक विदेशी भाषा पर अधिकार पाने के लिए जीवन के अमूल्य वर्ष लगा देने पड़ें, तो फिर और क्या हो सकता है'। ([[1914]])
*भारत के द्वितीय प्रधानमंत्री श्री [[लालबहादुर शास्त्री]] की मृत्यु के बाद श्रीमती इंदिरा गाँधी भारत की तृतीय और प्रथम महिला प्रधानमंत्री निर्वाचित हुई।
+
#'जिस भाषा में [[तुलसीदास]] जैसे कवि ने [[कविता]] की हो, वह अत्यन्त पवित्र है और उसके सामने कोई भाषा ठहर नहीं सकती'। ([[1916]])
*1967 के चुनाव में वह बहुत ही कम बहुमत से जीत सकीं।
+
#'हिंदी ही हिन्दुस्तान के शिक्षित समुदाय की सामान्य भाषा हो सकती है, यह बात निर्विवाद सिद्ध है। जिस स्थान को अंग्रेज़ी भाषा आजकल लेने का प्रयत्न कर रही है और जिसे लेना उसके लिए असम्भव है, वही स्थान हिंदी को मिलना चाहिए, क्योंकि हिंदी का उस पर पूर्ण अधिकार है। यह स्थान अंग्रेज़ी को नहीं मिल सकता, क्योंकि वह विदेशी भाषा है और हमारे लिए बड़ी कठिन है'। ([[1917]])
*1971 में पुनः भारी बहुमत से वे प्रधामंत्री बनी और [[1977]] तक रहीं।
+
#'हिंदी भाषा वह भाषा है जिसको उत्तर में [[हिन्दू]] व [[मुसलमान]] बोलते हैं और जो [[नागरी लिपि|नागरी]] और फ़ारसी लिपि में लिखी जाती है। यह हिंदी एकदम संस्कृतमयी नहीं है और न ही वह एकदम फ़ारसी शब्दों से लदी है'। ([[1918]])
*1977 के बाद ये 1980 में एक बार फिर प्रधानमंत्री बनीं और [[1984]] तक प्रधानमंत्री के पद पर रहीं।
+
#'हिंदी और उर्दू नदियाँ हैं और हिन्दुस्तानी सागर है। हिंदी और [[उर्दू]] दोनों को आपस में झगड़ना नहीं चाहिए। दोनों का मुक़ाबला तो अंग्रेज़ी से है'।
==दाम्पत्य जीवन==
+
#'अंग्रेज़ों के व्यामोह से पिंड छुड़ाना स्वराज्य का एक अनिवार्य अंग है'।
{{main|इंदिरा गाँधी का दाम्पत्य जीवन}}
+
#'मैं यदि तानाशाह होता (मेरा बस चलता तो) आज ही विदेशी भाषा में शिक्षा देना बंद कर देता, सारे अध्यापकों को स्वदेशी भाषाएँ अपनाने पर मजबूर कर देता। जो आनाकानी करते, उन्हें बर्ख़ास्त कर देता। मैं पाठ्य–पुस्तकों की तैयारी का इंतज़ार नहीं करूँगा, वे तो माध्यम के परिवर्तन के पीछे-पीछे अपने आप ही चली आएगी। यह एक ऐसी बुराई है, जिसका तुरन्त ही इलाज होना चाहिए'।
इंदिरा गँधी का विवाह 1942 में फिरोज़ गाँधी से हुआ। उनके दो पुत्र हुए- [[राजीव गाँधी]] और संजय गाँधी। राजीव गाँधी भी भारत के प्रधानमंत्री रहे हैं।
+
#'मेरी मातृभाषा में कितनी ही ख़ामियाँ क्यों न हों, मैं इससे इसी तरह से चिपटा रहूँगा, जिस तरह से बच्चा अपनी माँ की छाती से, जो मुझे जीवनदायी दूध दे सकती है। अगर अंग्रेज़ी उस जगह को हड़पना चाहती है, जिसकी वह हक़दार नहीं है, तो मैं उससे सख़्त नफ़रत करूँगा। वह कुछ लोगों के सीखने की वस्तु हो सकती है, लाखों–करोड़ों की नहीं'।
 +
#'लिपियों में सबसे अव्वल दरजे की लिपि नागरी को ही मानता हूँ। मैं मानता हूँ कि नागरी और उर्दू लिपि के बीच अंत में जीत नागरी लिपि की ही होगी'।
  
प्रेम की भावना का उदय इंदिरा के हृदय में भी हुआ था। पारसी युवक फ़ीरोज़ गाँधी से इंदिरा का परिचय उस समय से था जब वह [[आनंद भवन]] में एक स्वतंत्रता सेनानी की तरह आते था। फ़ीरोज़ गाँधी ने कमला नेहरू को माता मान दिया था। जर्मनी में जब कमला नेहरू को चिकित्सा के लिए ले जाया गया तब फ़िरोज मित्रता का फर्ज पूरा करने के लिए जर्मनी पहुँच गए था। [[लंदन]] से भारत वापसी का प्रबंध भी फ़िरोज ने एक सैनिक जहाज़ के माध्यम से किया था दोनों की मित्रता इस हद तक परवान चढ़ी कि विवाह करने का निश्चय कर लिया। ऐसा माना जाता है कि कमला नेहरू जीवित होतीं तो इस शादी को आसानी के साथ स्वीकृति मिल सकती थी। कमला जी अपने पति को शादी के लिए विवश कर सकती थीं। लेकिन कमला नेहरू उनकी मदद करने के लिए दुनिया में नहीं थीं। इंदिरा जी चाहती थीं कि उस शादी को पिता का आशीर्वाद अवश्य प्राप्त हो लेकिन पंडित नेहरू को उस शादी के लिए मना पाना असंभव नहीं तो कठिन अवश्य था। '''वैसे फ़ीरोज़ गाँधी को ही इंदिरा से शादी करने का प्रस्ताव पंडित नेहरू के सामने रखना चाहिए था लेकिन फ़िरोज यह हिम्मत नहीं कर पाए।''' उसने यह दायित्व इंदिरा को ही सौंप दिया। इंदिरा ने फ़ीरोज़ गाँधी को शादी का वचन दे दिया था।
 
  
==राजनीति==
+
====समाचार को विभिन्न स्रोतों पर पढ़ें====  
[[चित्र:Radhakrishnan-Indira-Gandhi-Kamaraj.jpg|thumb|right|250px|[[सर्वपल्ली राधाकृष्णन|डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन]], इंदिरा गाँधी एवं [[कुमारास्वामी कामराज]]]]
+
*[http://www.bhaskar.com/article/INT-hindi-to-be-taught-in-australian-schools-3983411-NOR.html दैनिक भास्कर]
{{main|इंदिरा गाँधी का राजनीतिक जीवन}}
+
*[http://dainiktribuneonline.com/2012/10/%E0%A4%B9%E0%A4%BF%E0%A4%A8%E0%A5%8D%E0%A4%A6%E0%A5%80-%E0%A4%AA%E0%A4%A2%E0%A4%BC%E0%A4%BE%E0%A4%A8%E0%A5%87-%E0%A4%95%E0%A5%87-%E0%A4%B2%E0%A4%BF%E0%A4%8F-%E0%A4%91%E0%A4%B8%E0%A5%8D%E0%A4%9F-2/ दैनिक ट्रिब्यून]
इंदिरा प्रियदर्शिनी को परिवार के माहौल में राजनीतिक विचारधारा विरासत में प्राप्त हुई थी। यही कारण है कि पति फ़ीरोज़ गाँधी की मृत्यु से पूर्व ही इंदिरा गाँधी प्रमुख राजनीतिज्ञ बन गई थीं। कांग्रेस पार्टी की कार्यकारिणी में इनका चयन 1955 में ही हो गया था। वह कांग्रेस संसदीय मंडल की भी सदस्या रहीं। पंडित नेहरू इनके साथ राजनीतिक परामर्श करते और उन परामर्शों पर अमल भी करते थे। <br />
+
*[http://www.dw.de/%E0%A4%91%E0%A4%B8%E0%A5%8D%E0%A4%9F%E0%A5%8D%E0%A4%B0%E0%A5%87%E0%A4%B2%E0%A4%BF%E0%A4%AF%E0%A4%BE%E0%A4%88-%E0%A4%B8%E0%A5%8D%E0%A4%95%E0%A5%82%E0%A4%B2%E0%A5%8B%E0%A4%82-%E0%A4%AE%E0%A5%87%E0%A4%82-%E0%A4%B6%E0%A5%81%E0%A4%B0%E0%A5%82-%E0%A4%B9%E0%A5%8B%E0%A4%97%E0%A5%80-%E0%A4%B9%E0%A4%BF%E0%A4%A8%E0%A5%8D%E0%A4%A6%E0%A5%80/a-16338765 डी. डब्ल्यू.]
इंदिरा गाँधी को राजनीतिक रूप से आगे बढ़ाने के आरोप उस समय पंडित नेहरू पर लगे। 1959 में जब इंदिरा को कांग्रेस का अध्यक्ष बनाया गया तो कई आलोचकों ने दबी जुबान से पंडित नेहरू को पार्टी में परिवारवाद फैलाने का दोषी ठहराया था। लेकिन वे आलोचना इतने मुखर नहीं थे कि उनकी बातों पर तवज्जो दी जाती।
 
वस्तुतः इंदिरा गाँधी ने समाज, पार्टी और देश के लिए महत्त्वपूर्ण कार्य किए थे। उन्हें अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर पहचान प्राप्त थी। विदेशी राजनयिक भी उनकी प्रशंसा करते थे। इस कारण आलोचना दूध में उठे झाग की तरह बैठ गई। कांग्रेस अध्यक्षा के रूप में इंदिरा गाँधी ने अपने कौशल से कई समस्याओं का निदान किया। उन्होंने नारी शाक्ति को महत्त्व देते हुए उन्हें कांग्रेस पार्टी में महत्त्वपूर्ण पद प्रदान किए। युवा शक्ति को लेकर भी उन्होंने अभूतपूर्व निर्णय लिए। इंदिरा गाँधी 42 वर्ष की उम्र में कांग्रेस अध्यक्षा बनी थीं।
 
 
 
==देश का विकास==
 
{{main|इंदिरा गाँधी और देश का विकास}}
 
पाकिस्तान से युद्ध के बाद इंदिरा गाँधी ने अपना सारा ध्यान देश के विकास की ओर केंद्रित कर दिया। संसद में उन्हें बहुमत प्राप्त था और निर्णय लेने में स्वतंत्रता थी। उन्होंने ऐसे उद्योगों को रेखांकित किया जिनका कुशल उपयोग नहीं हो रहा था। उनमें से एक बीमा उद्योग था और दूसरा कोयला उद्योग। बीमा कंपनियाँ भारी मुनाफा अर्जित कर रही थीं। लेकिन उनकी पूँजी से देश का विकास नहीं हो रहा था। वह पूँजी निजी हाथों में जा रही थी। बीमा कंपनियों के नियमों में पारदर्शिता का अभाव होने के कारण जनता को वैसे लाभ नहीं प्राप्त हो रहे थे, जैसे होने चाहिए थे। '''लिहाज़ा [[अगस्त]], [[1972]] में बीमा कारोबार का राष्ट्रीयकरण कर दिया गया।'''
 
 
 
==आपातकाल==
 
{{main|इंदिरा गाँधी और आपातकाल}}
 
[[15 जून]], [[1975]] को जे.पी. और समर्थिक विपक्ष ने आंदोलन को उग्र रूप दे दिया। साथ ही यह तय किया गया कि पूरे देश में [[सविनय अवज्ञा आन्दोलन]] चलाया जाए और प्रधानमंत्री आवास को भी घेर लिया जाए। आवास में मौजूद लोगों को नज़रबंद करके किसी को भी अंदर प्रविष्ट न होने दिया जाए।
 
इन्हीं परिस्थितियों के कारण प्रधानमंत्री इंदिरा गाँधी ने [[25 जून]], 1975 को तत्कालीन राष्ट्रपति [[फ़ख़रुद्दीन अली अहमद]] से आपातकाल लागू करने की हस्ताक्षरित स्वीकृति प्राप्त कर ली। '''इस प्रकार [[26 जून]], 1975 की प्रातः देश में आपातकाल की घोषणा कर दी गई।''' आपातकाल लागू होने के बाद जयप्रकाश नारायण, मोरारजी देसाई और अन्य सैकड़ों छोटे-बड़े नेताओं को गिरफ़्तार करके जेल में डाल दिया गया। ऐसा माना जाता है कि आपातकाल के दौरान एक लाख व्यक्तियों को देश की विभिन्न जेलों में बंद किया गया था। इनमें मात्र राजनीतिक व्यक्ति ही नहीं, आपराधिक प्रवृत्ति के लोग भी थे जो ऐसे आंदोलनों के समय लूटपाट करते हैं। साथ ही भ्रष्ट कालाबाज़ारियों और हिस्ट्रीशीटर अपराधियों को बंद कर दिया गया।
 
==देश का विभाजन==
 
[[चित्र:Indira-Gandhi-2.jpg|thumb|250px|left|इंदिरा गाँधी स्टाम्प]]
 
उस समय देश विभाजन के किनारे पर था। [[मुहम्मद अली जिन्ना|जिन्ना]] के नेतृत्व में मुस्लिम लीग ने पाकिस्तान की माँग की थी और अंग्रेज़ भी जिन्ना की माँग को स्पष्ट हवा दे रहे थे लेकिन गाँधीजी विभाजन के पक्ष में नहीं थे। लॉर्ड माउंटबेटन कूटनीति का खेल खेलने में लगे हुए थे। वह एक ओर महात्मा गाँधी को आश्वस्त कर रहे थे कि देश का विभाजन नहीं होगा तो दूसरी ओर पंडित नेहरू से कह रहे थे कि दो राष्ट्रों के विभाजन के फॉर्मूले पर ही आज़ादी प्रदान की जाएगी। '''पंडित नेहरू स्थिति की गंभीरता को समझ रहे थे जबकि महात्मा गाँधी इस भ्रम में थे कि अंग्रेज़ वायसराय विभाजन नहीं चाहता है।''' जिन्ना की अनुचित माँग के कारण हिन्दू और मुसलमानों में वैमनस्य पसर गया था। महत्त्वाकांक्षी जिन्ना पाकिस्तान का प्रधानमंत्री बनने के लिए बहुत लालायित थे। महात्मा गाँधी ने जिन्ना को संपूर्ण और अखंड भारत का प्रधानमंत्री बनाने का आश्वासन दिया। लेकिन जिन्ना यह जानते थे कि पंडित नेहरू के कारण यह संभव नहीं है। हिन्दू किसी भी मुस्लिम को प्रधानमंत्री के रूप में स्वीकार नहीं करेंगे। '''ऐसे में देश सांप्रदायिक दंगों की आग में झुलसने लगा था।''' महात्मा गाँधी किसी तरह दंगों की आग शांत करना चाहते थे। दिल्ली में भी कई स्थानों पर इंसानियत शर्मसार हो रही थी। तब महात्मा गाँधी ने इंदिरा जी को यह मुहिम सौंपी कि वह दंगाग्रस्त क्षेत्रों में जाकर लोगों को समझाएँ और अमन लौटाने में मदद करें।
 
====दंगाग्रस्त क्षेत्रों का दौरा====
 
इंदिरा गाँधी ने फिर महात्मा गाँधी के आदेश को शिरोधार्य किया और दंगाग्रस्त क्षेत्रों में दोनों समुदायों के लोगों को समझाने का प्रयास करने लगीं। वस्तुतः यह अत्यंत जोखिम कार्य था। पंडित नेहरू की बेटी होने के कारण अतिवादी उन्हें नुक़सान पहुँचा सकते थे परंतु निर्भिक इंदिरा ने दंगों की आग शांत करने के लिए पुरज़ोर प्रयास किए। लेकिन 15 अगस्त के बाद सांप्रदायिकता अपने चरम पर पहुँच गई। दंगों में दोनों समुदायों के अनगिनत लोग मौत के घाट उतार दिए गए। [[पाकिस्तान]] से लाखों  शरणार्थी दिल्ली आ गए थे। शरणार्थियों के पुनर्वास का सवाल भी उत्पन्न हो गया था। उन भूखे-प्यासे घर से भागे लोगों के लिए प्राथमिक आवश्यकताएँ भी जरूरी थीं। ऐसी स्थिति में दिल्ली के कई स्थानों पर शरणार्थी एवं दंगा पीड़ित शिविर लगाए गए थे। '''पंडित नेहरू ने 17, पार्क रोड के अपने बंगले पर भी शरणार्थी शिविर लगाए।''' शरणार्थियों के जीवन की बुनियादी सुविधाओं का ध्यान रखा जा रहा था। उस समय महात्मा गाँधी पश्चिम बंगाल के नोआख़ाली ज़िले में जहाँ मुस्लिमों की कई बस्तियों को जला दिया गया था। पाकिस्तान से आने वाली ट्रेनों में हज़ारों हिन्दुओं की लाशें भी आ रही थीं। इस कारण हिन्दू आक्रोशित होकर मुसलमानों पर हमला कर रहे थे।
 
====घर में शरणार्थी शिविर====
 
पंडित जवाहरलाल नेहरू के बंगले में जो शरणार्थी शिविर लगाए गए थे, उनकी देखरेख इंदिरा गाँधी ही कर रही थीं। सभी कमरे ख़ाली करके शरणार्थियों को उनमें ठहरा दिया गया था और प्रांगण आदि में भी तम्बू इत्यादि लगा दिए थे ताकि अधिकाधिक शरणार्थियों को वहाँ रखा जा सके। यहाँ की सभी व्यवस्था इंदिरा गाँधी द्वारा देखी जा रही थी। अंतरिम सरकार के गठन के साथ पंडित नेहरू [[कार्यवाहक प्रधानमंत्री]] बना दिए थे। [[26 जनवरी]], [[1950]] को भारत का संविधान भी लागू हो गया। भारत एक गणतांत्रिक देश बना और प्रधानमंत्री नेहरू की सक्रियता काफ़ी अधिक बढ़ गई। इस समय नेहरूजी का निवास त्रिमूर्ति भवन ही था। समय-समय पर विभिन्न देशों के आगंतुक त्रिमूर्ति भवन में ही नेहरूजी के पास आते थे। उनके स्वागत के सभी इंतज़ाम इंदिरा गाँधी द्वारा किए जाते थे। साथ ही साथ उम्रदराज़़ हो रहे पिता की आवश्यकताओं को भी इंदिरा देखती थीं।
 
 
 
====कांग्रेस पार्टी की सरकार====
 
अभी तीन वर्ष भी पूर्ण नहीं हुए थे कि जनता पार्टी में दरारें पड़ गईं और देश को मध्यावधि चुनाव का भार झेलना पड़ा। इंदिरा गाँधी ने देश में घूम-घूमकर चुनाव प्रचार के दौरान आपातकाल के लिए शर्मिंदगी का इजहार किया और काम करने वाली सुदृढ़ सरकार का नारा दिया। लोगों को यह नारा काफ़ी पसंद आया और चुनाव के बाद नतीजों ने यह प्रमाणित भी कर दिया। इंदिरा कांग्रेस को 592 में से 353 सीटें प्राप्त हुईं और स्पष्ट बहुमत के कारण केंद्र में इनकी सरकार बनी। इंदिरा गाँधी पुनः प्रधानमंत्री बन गईं। इस प्रकार 34 महीनों के बाद वह सत्ता पर दोबारा क़ाबिज हुईं। जनता पार्टी ने 1977 में सत्ता में आने के बाद कई राज्यों की कांग्रेस सरकार को बर्खास्त कर दिया था। उस समय उसने यह तर्क दिया कि जनता का रुझान जनता पार्टी के साथ है, अतः नए चुनाव होने चाहिए। इंदिरा गाँधी ने सत्ता में आने के बाद जनता पार्टी द्वारा आरंभ की गई परिपाटी पर चलकर उन प्रदेशों की सरकारों को बर्खास्त कर दिया जहाँ जनता पार्टी तथा विपक्ष का शासन था। बाद में हुए इन राज्यों के चुनावों में कांग्रेस ने अभूतपूर्व सफलता प्राप्त की। 22 राज्यों में से 15 राज्यों में कांग्रेस पार्टी की सरकार बन गई। यह चुनाव जून 1980 में संपन्न हुए थे।
 
 
==मृत्यु==
 
[[स्वर्ण मन्दिर]] पर हमले के प्रतिकार में पाँच महीने के बाद ही [[31 अक्टूबर]] [[1984]] को श्रीमती गाँधी के आवास पर तैनात उनके दो सिक्ख अंगरक्षकों ने गोली मारकर उनकी हत्या कर दी। 
 
 
 
==उपसंहार==
 
[[भारत]] के जितने भी प्रधानमंत्री हुए हैं, उन सभी की अनेक विशेषताएँ हो सकती हैं, लेकिन इंदिरा गाँधी के रूप में जो प्रधानमंत्री भारत भूमि को प्राप्त हुआ, वैसा प्रधानमंत्री अभी तक दूसरा नहीं हुआ है क्योंकि एक प्रधानमंत्री के रूप में उन्होंने विभिन्न चुनौतियों का मुक़ाबला करने में सफलता प्राप्त की। युद्ध हो, विपक्ष की ग़लतियाँ हों, कूटनीति का अंतर्राष्ट्रीय मैदान हो अथवा देश की कोई समस्या हो- इंदिरा गाँधी ने अक्सर स्वयं को सफल साबित किया। इंदिरा गाँधी, नेहरू के द्वारा शुरू की गई औद्योगिक विकास की अर्द्ध समाजवादी नीतियों पर क़ायम रहीं। उन्होंने सोवियत संघ के साथ नज़दीकी सम्बन्ध क़ायम किए और पाकिस्तान-भारत विवाद के दौरान समर्थन के लिए उसी पर आश्रित रहीं। '''जिन्होंने इंदिरा गाँधी के प्रधानमंत्रित्व काल को देखा है, वे लोग यह मानते हैं कि इंदिरा गाँधी में अपार साहस, निर्णय शक्ति और धैर्य था।'''
 
 
 
==उपलब्धियाँ==
 
*बैंकों का राष्ट्रीयकरण
 
*बाँग्ला देश को स्वतंत्र कराना
 
*निर्धन लोगों के उत्थान के लिए आयोजित 20 सूत्रीय कार्यक्रम
 
*गुट निरपेक्ष आन्दोलन की अध्यक्षा
 
*प्रीवीपर्स समाप्ति 
 
 
 
<div align="center">'''[[इंदिरा गाँधी का जीवन परिचय|आगे जाएँ »]]'''</div>
 
  
 
{{लेख प्रगति|आधार=|प्रारम्भिक=|माध्यमिक=माध्यमिक3|पूर्णता=|शोध=}}
 
{{लेख प्रगति|आधार=|प्रारम्भिक=|माध्यमिक=माध्यमिक3|पूर्णता=|शोध=}}
पंक्ति १०६: पंक्ति ६१:
 
<references/>
 
<references/>
 
==बाहरी कड़ियाँ==
 
==बाहरी कड़ियाँ==
*[http://purvanchalnews.com/index.php?option=com_content&view=article&id=47:2010-01-01-11-56-48&catid=1:2010-01-02-10-56-47&Itemid=78 इंदिरा गाँधी के दो चेहरे]
+
*[http://www.pravakta.com/indian-aryan-languages-of-the-indo-european-family भारोपीय परिवार की भारतीय भाषाएँ]
 +
*[http://www.pravakta.com/reflections-in-relation-to-hindi-language हिन्दी भाषा के सम्बंध में कुछ विचार]
 +
*[http://www.rachanakar.org/2010/03/blog-post_3350.html हिन्दी भाषा-क्षेत्र एवं हिन्दी के क्षेत्रगत रूप]
 +
*[http://www.scribd.com/doc/22142436/Hindi-Urdu हिन्दी-उर्दू का अद्वैत]
 +
*[http://www.scribd.com/doc/22573933/Hindi-kee-antarraashtreeya-bhoomikaa हिन्दी की अन्तरराष्ट्रीय भूमिका]
 +
 
 
==संबंधित लेख==
 
==संबंधित लेख==
{{भारत रत्‍न}}{{भारत के प्रधानमंत्री}}{{स्वतन्त्रता सेनानी}}{{नेहरू परिवार}}
+
{{हिन्दी भाषा}}{{भाषा और लिपि}}{{व्याकरण}}
{{भारत के प्रधानमंत्री2}}
+
[[Category:भाषा और लिपि]][[Category:भाषा कोश]][[Category:साहित्य कोश]]
 +
[[Category:हिन्दी भाषा]]
 +
[[Category:जनगणना अद्यतन]]
 
__INDEX__
 
__INDEX__
 
__NOTOC__
 
__NOTOC__

०७:५८, २० मई २०१६ का अवतरण

हिन्दी विषय सूची


हिंदी भारतीय गणराज की राजकीय और मध्य भारतीय- आर्य भाषा है। सन 2001 की जनगणना के अनुसार, लगभग 25.79 करोड़ भारतीय हिंदी का उपयोग मातृभाषा के रूप में करते हैं, जबकि लगभग 42.20 करोड़ लोग इसकी 50 से अधिक बोलियों में से एक इस्तेमाल करते हैं। सन 1998 के पूर्व, मातृभाषियों की संख्या की दृष्टि से विश्व में सर्वाधिक बोली जाने वाली भाषाओं के जो आँकड़े मिलते थे, उनमें हिन्दी को तीसरा स्थान दिया जाता था।

बंगाल

हिंदी के लिए महापुरुष कथन
हिंदी किसी के मिटाने से मिट नहीं सकती।
चन्द्रबली पाण्डेय

है भव्य भारत ही हमारी मातृभूमि हरी भरी।
हिंदी हमारी राष्ट्रभाषा और लिपि है नागरी ॥
मैथिलीशरण गुप्त

जिस भाषा में तुलसीदास जैसे कवि ने कविता की हो वह अवश्य ही पवित्र है और उसके सामने कोई भाषा नहीं ठहर सकती।
महात्मा गाँधी
हिंदी भारतवर्ष के हृदय-देश स्थित करोड़ों नर-नारियों के हृदय और मस्तिष्क को खुराक देने वाली भाषा है।
हज़ारीप्रसाद द्विवेदी
हिंदी को गंगा नहीं बल्कि समुद्र बनना होगा।
विनोबा भावे
हिंदी के विरोध का कोई भी आन्दोलन राष्ट्र की प्रगति में बाधक है।
सुभाष चन्द्र बसु
हिंदी को संस्कृत से विच्छिन्न करके देखने वाले उसकी अधिकांश महिमा से अपरिचित हैं।
हज़ारीप्रसाद द्विवेदी

राजा राममोहन राय, केशवचंद्र सेन, नवीन चंद्र राय, ईश्वर चंद्र विद्यासागर, तरुणी चरण मिश्र, राजेन्द्र लाल मित्र, राज नारायण बसु, भूदेव मुखर्जी, बंकिम चंद्र चैटर्जी ('हिंदी भाषा की सहायता से भारतवर्ष के विभिन्न प्रदेशों के मध्य में जो ऐक्यबंधन संस्थापन करने में समर्थ होंगे वही सच्चे भारतबंधु पुकारे जाने योग्य हैं।)', सुभाषचंद्र बोस ('अगर आज हिंदी भाषा मान ली गई है तो वह इसलिए नहीं कि वह किसी प्रान्त विशेष की भाषा है, बल्कि इसलिए कि वह अपनी सरलता, व्यापकता तथा क्षमता के कारण सारे देश की भाषा हो सकती है।') रवीन्द्रनाथ टैगोर ('यदि हम प्रत्येक भारतीय के नैसर्गिक अधिकारों के सिद्धांत को स्वीकार करते हैं, तो हमें राष्ट्रभाषा के रूप में इस भाषा को स्वीकार करना चाहिए जो देश के सबसे बड़े भू–भाग में बोली जाती है और जिसे स्वीकार करने की सिफ़ारिश महात्मा गाँधीजी ने हम लोगों से की है।') रामानंद चटर्जी, सरोजिनी नायडू, शारदा चरण मित्र, आचार्य क्षिति मोहन सेन ('हिंदी को राष्ट्रभाषा बनाने हेतु जो अनुष्ठान हुए हैं, उनको मैं संस्कृति का राजसूय यज्ञ समझता हूँ।') आदि।

महाराष्ट्र

बाल गंगाधर तिलक ('यह आंदोलन उत्तर भारत में केवल एक सर्वमान्य लिपि के प्रचार के लिए नहीं है। यह तो उस आंदोलन का एक अंग है, जिसे मैं एक राष्ट्रीय आंदोलन कहूँगा और जिसका उद्देश्य समस्त भारतवर्ष के लिए एक राष्ट्रीय भाषा की स्थापना करना है, क्योंकि सबके लिए समान भाषा राष्ट्रीयता का महत्त्वपूर्ण अंग है। अतएव यदि आप किसी राष्ट्र के लोगों को एक–दूसरे के निकट लाना चाहें तो सबके लिए समान भाषा से बढ़कर सशक्त अन्य कोई बल नहीं है।'), एन. सी. केलकर, डॉ. भण्डारकर, वी. डी. सावरकर, गोपाल कृष्ण गोखले, गाडगिल, काका कालेलकर आदि।

पंजाब

लाला लाजपत राय, श्रद्धाराम फिल्लौरी आदि।

गुजरात

दयानंद सरस्वती, महात्मा गाँधी, वल्लभभाई पटेल, कन्हैयालाल माणिकलाल मुंशी ('हिंदी को राष्ट्रभाषा बनाना नहीं है, वह तो है ही।') आदि।

दक्षिण भारत

  • सी. राजगोपालाचारी, टी. विजयराघवाचार्य ('हिन्दुस्तान की सभी जीवित और प्रचलित भाषाओं में मुझे हिंदी ही राष्ट्रभाषा बनने के लिए सबसे अधिक योग्य दिखाई पड़ती है।'),
  • सी. पी. रामास्वामी अय्यर ('देश के विभिन्न भागों के निवासियों के व्यवहार के लिए सर्वसुगम और व्यापक तथा एकता स्थापित करने के साधन के रूप में हिंदी का ज्ञान आवश्यक है।')
  • अनन्त शयनम आयगर ('हिंदी ही उत्तर और दक्षिण को जोड़ने वाली समर्थ भाषा है।')
  • एस. निजलिंगप्पा ('दक्षिण की भाषाओं ने संस्कृत से बहुत कुछ लेन–देन किया है, इसलिए उसी परम्परा में आई हुई हिंदी बड़ी सरलता से राष्ट्रभाषा होने के लायक़ है।')
  • रंगनाथ रामचंद्र दिवाकर ('जो राष्ट्रप्रेमी है, उसे राष्ट्रभाषा प्रेमी होना चाहिए।')
  • के. टी. भाष्यम, आर. वेंकटराम शास्त्री, एन. सुन्दरैया आदि।

अन्य—मदनमोहन मालवीय, पुरुषोत्तम दास टंडन ('हिंदी का प्रहरी'), राजेन्द्र प्रसाद, सेठ गोविन्द दास आदि।

महात्मा गाँधी के विचार

  1. 'करोड़ों लोगों को अंग्रेज़ी की शिक्षा देना उन्हें ग़ुलामी में डालने जैसा है। मैकाले ने शिक्षा की जो बुनियाद डाली, वह सचमुच ग़ुलामी की बुनियाद थी'।[१]
  2. "अंग्रेज़ी भाषा हमारे राष्ट्र के पाँव में बेड़ी बनकर पड़ी हुई है।" भारतीय विद्यार्थी को अंग्रेज़ी के मार्फ़त ज्ञान अर्जित करने पर कम से कम 6 वर्ष अधिक बर्बाद करने पड़ते हैं। यदि हमें एक विदेशी भाषा पर अधिकार पाने के लिए जीवन के अमूल्य वर्ष लगा देने पड़ें, तो फिर और क्या हो सकता है'। (1914)
  3. 'जिस भाषा में तुलसीदास जैसे कवि ने कविता की हो, वह अत्यन्त पवित्र है और उसके सामने कोई भाषा ठहर नहीं सकती'। (1916)
  4. 'हिंदी ही हिन्दुस्तान के शिक्षित समुदाय की सामान्य भाषा हो सकती है, यह बात निर्विवाद सिद्ध है। जिस स्थान को अंग्रेज़ी भाषा आजकल लेने का प्रयत्न कर रही है और जिसे लेना उसके लिए असम्भव है, वही स्थान हिंदी को मिलना चाहिए, क्योंकि हिंदी का उस पर पूर्ण अधिकार है। यह स्थान अंग्रेज़ी को नहीं मिल सकता, क्योंकि वह विदेशी भाषा है और हमारे लिए बड़ी कठिन है'। (1917)
  5. 'हिंदी भाषा वह भाषा है जिसको उत्तर में हिन्दूमुसलमान बोलते हैं और जो नागरी और फ़ारसी लिपि में लिखी जाती है। यह हिंदी एकदम संस्कृतमयी नहीं है और न ही वह एकदम फ़ारसी शब्दों से लदी है'। (1918)
  6. 'हिंदी और उर्दू नदियाँ हैं और हिन्दुस्तानी सागर है। हिंदी और उर्दू दोनों को आपस में झगड़ना नहीं चाहिए। दोनों का मुक़ाबला तो अंग्रेज़ी से है'।
  7. 'अंग्रेज़ों के व्यामोह से पिंड छुड़ाना स्वराज्य का एक अनिवार्य अंग है'।
  8. 'मैं यदि तानाशाह होता (मेरा बस चलता तो) आज ही विदेशी भाषा में शिक्षा देना बंद कर देता, सारे अध्यापकों को स्वदेशी भाषाएँ अपनाने पर मजबूर कर देता। जो आनाकानी करते, उन्हें बर्ख़ास्त कर देता। मैं पाठ्य–पुस्तकों की तैयारी का इंतज़ार नहीं करूँगा, वे तो माध्यम के परिवर्तन के पीछे-पीछे अपने आप ही चली आएगी। यह एक ऐसी बुराई है, जिसका तुरन्त ही इलाज होना चाहिए'।
  9. 'मेरी मातृभाषा में कितनी ही ख़ामियाँ क्यों न हों, मैं इससे इसी तरह से चिपटा रहूँगा, जिस तरह से बच्चा अपनी माँ की छाती से, जो मुझे जीवनदायी दूध दे सकती है। अगर अंग्रेज़ी उस जगह को हड़पना चाहती है, जिसकी वह हक़दार नहीं है, तो मैं उससे सख़्त नफ़रत करूँगा। वह कुछ लोगों के सीखने की वस्तु हो सकती है, लाखों–करोड़ों की नहीं'।
  10. 'लिपियों में सबसे अव्वल दरजे की लिपि नागरी को ही मानता हूँ। मैं मानता हूँ कि नागरी और उर्दू लिपि के बीच अंत में जीत नागरी लिपि की ही होगी'।


समाचार को विभिन्न स्रोतों पर पढ़ें


पन्ने की प्रगति अवस्था
आधार
प्रारम्भिक
माध्यमिक
पूर्णता
शोध

टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. हिन्द स्वराज, 1909

बाहरी कड़ियाँ

संबंधित लेख


"https://amp.bharatdiscovery.org/w/index.php?title=प्रयोग:नवनीत1&oldid=553439" से लिया गया