है हरि नाम कौ आधार।[१] और इहिं कलिकाल नाहिंन रह्यौ बिधि[२]-ब्यौहार॥[३] नारदादि सुक[४] आदि संकर कियौ यहै विचार। सकल स्रुति दधि मथत पायौ इतौई[५] घृत-सार॥ दसहुं दिसि गुन[६] कर्म रोक्यौ मीन कों ज्यों जार।[७] सूर, हरि कौ भजन करतहिं गयौ मिटि भव-भार॥[८]