वा पटपीत[१] की फहरानि।
कर धरि[२] चक्र चरन की धावनि, नहिं बिसरति वह बानि॥[३]
रथ तें उतरि अवनि[४] आतुर ह्वै,[५] कच[६] रज[७] की लपटानि।
मानौं सिंह सैल[८] तें निकस्यौ महामत्त गज जानि॥
जिन गुपाल मेरा प्रन राख्यौ मेटि वेद की कानि।[९]
सोई सूर सहाय हमारे निकट भये हैं आनि॥