निरगुन[१] कौन देश कौ बासी।
मधुकर, कहि समुझाइ, सौंह[२] दै बूझति[३] सांच न हांसी॥
को है जनक,[४] जननि को कहियत, कौन नारि को दासी।
कैसो बरन,[५] भेष है कैसो, केहि रस में अभिलाषी॥
पावैगो पुनि कियो आपुनो जो रे कहैगो गांसी।[६]
सुनत मौन ह्वै रह्यौ ठगो-सौ सूर सबै मति नासी॥