अर्धमत्स्येन्द्रासन  

अर्धमत्स्येन्द्रासन

अर्धमत्स्येन्द्रासन (अंग्रेज़ी: Ardhamatsyendrasana) को "हाफ स्पाइनल ट्विस्ट पोस" भी कहा जाता है। अर्धमत्स्येन्द्रासन तीन शब्दों के मेल से बना है- अर्ध, मत्स्य, और इंद्र। अर्ध मतलब आधा, मत्स्य यानी मछली और इंद्र मतलब भगवान। 'अर्धमत्स्येन्द्र' का अर्थ है शरीर को आधा मोड़ना या घुमाना। अर्धमत्स्येन्द्र आसन मेरुदंड (रीढ़ की हड्डी) के लिए अत्यंत लाभकारक है। यह आसन सही मात्रा में फेफड़ों तक ऑक्सीजन पहुंचाने में मदद करता है अथवा जननांगों के लिए अत्यंत ही लाभकारी है। यह आसन रीढ़ की हड्डी से सम्बंधित है, इसीलिए इसे ध्यानपूर्वक किया जाना चाहिए।

आसन प्रक्रिया

  1. पैरों को सामने की ओर फैलाते हुए बैठ जाएँ, दोनों पैरों को साथ में रखें, रीढ़ की हड्डी सीधी रहे।
  2. बाएँ पैर को मोड़ें और बाएँ पैर की एड़ी को दाहिने कूल्हे के पास रखें (या आप बाएँ पैर को सीधा भी रख सकते हैं)।
  3. दाहिने पैर को बाएँ घुटने के ऊपर से सामने रखें।
  4. बाएँ हाथ को दाहिने घुटने पर रखें और दाहिना हाथ पीछे रखें।
  5. कमर, कन्धों व् गर्दन को दाहिनी तरफ से मोड़ते हुए दाहिने कंधे के ऊपर से देखें।
  6. रीढ़ की हड्डी सीधी रहे।
  7. इसी अवस्था को बनाए रखें ,लंबी , गहरी साधारण साँस लेते रहें।
  8. साँस छोड़ते हुए, पहले दाहिने हाथ को ढीला छोड़े,फिर कमर,फिर छाती और अंत में गर्दन को। आराम से सीधे बैठ जाएँ।
  9. दूसरी तरफ से प्रक्रिया को दोहराएँ।
  10. साँस छोड़ते हुए सामने की ओर वापस आ जाएँ।

लाभ

  1. मेरुदंड को मजबूती मिलती है।
  2. छाती को फ़ैलाने से फेफड़ो को ऑक्सीजन ठीक मात्रा में मिलती है।
  3. अर्ध मत्स्येन्द्रासन रीढ़ की हड्डी का लचीलापन बढ़ाता है, किस से उसकी कार्यकौशलता में सुधार होता है।
  4. पीठ में दर्द और कठोरता से राहत दिलाता है।
  5. छाती को खोलता है और फेफड़ों में ऑक्सीजन की आपूर्ति बढ़ जाती है।
  6. कूल्हे के जोड़ों को कम कर देता है, और उनमें कठोरता से राहत दिलाता है अर्ध मत्स्येन्द्रासन।
  7. बाहों, कंधों, ऊपरी पीठ और गर्दन में तनाव को कम करता है।
  8. अर्ध मत्स्येन्द्रासन स्लिप-डिस्क के लिए चिकित्सीय है (लेकिन यह आसन करने से पहले डॉक्टर से सलाह ज़रूर करें)।
  9. पेट के अंगों की मालिश करता है और पाचन में सुधार लाता है जिस से कब्ज में लाभ होता है।
  10. अग्न्याशय के लिए लाभदायक है जिस से मधुमेह रोगियों के लिए उपयोगी है अर्ध मत्स्येन्द्रासन।
  11. डायबिटीज, कब्ज, सर्वाइकल स्पॉन्डिलाइटिस, मूत्र पथ विकारों, मासिक धर्म की परेशानियों, और अपच के लिए चिकित्सीय है अर्ध मत्स्येन्द्रासन।

सावधानियाँ

  1. गर्भावस्था और मासिक धर्म के दौरान नहीं करना चाहिए।
  2. जिनके दिल, पेट या मस्तिष्क की ऑपरेशन की गयी हो, उन्हे इस आसन का अभ्यास नहीं करना चाहिए।
  3. पेप्टिक अल्सर या हर्निया वाले लोगों को यह आसान बहुत सावधानी से करना चाहिए।
  4. अगर रीढ़ की हड्डी में गंभीर चोट या समस्याएं हैं, तो आप यह आसन ना करें।
  5. हल्के स्लिप-डिस्क में इस आसन से लाभ हो सकता है, लेकिन गंभीर मामलों में इसे नहीं करना चाहिए।


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