दोहावली -तुलसीदास  

दोहावली -तुलसीदास
'दोहावली' का आवरण पृष्ठ
कवि गोस्वामी तुलसीदास
मूल शीर्षक 'दोहावली'
मुख्य पात्र श्रीराम
प्रकाशक गीताप्रेस गोरखपुर
ISBN 81-293-0128-8
देश भारत
शैली दोहा
मुखपृष्ठ रचना अजिल्द
टिप्पणी 'दोहावली' के मुद्रित पाठ में 573 दोहे हैं। इन दोहों में से अनेक दोहे गोस्वामी तुलसीदास के अन्य ग्रंथों में भी मिलते हैं और उनसे लिये गये हैं।

दोहावली तुलसीदास के दोहों का एक संग्रह ग्रंथ है। इसके मुद्रित पाठ में 573 दोहे हैं। इन दोहों में से अनेक दोहे गोस्वामी तुलसीदास के अन्य ग्रंथों में भी मिलते हैं और उनसे लिये गये है। उदाहरणार्थ बहुत से 'रामचरित मानस' और 'रामज्ञा प्रश्न' से लिये गये हैं। वे उन्हीं रचनाओं से 'दोहावली' में लिये गये हैं, यह तथ्य इससे प्रमाणित है कि वे प्राय: निश्चित प्रसंगों के है और अपने प्रसंगों से निकाल लिए जाने पर वे छिन्न-मूल से ज्ञात होते है।

स्फुट दोहे

'दोहावली' की विभिन्न प्रतियों में उसके कई पाठ भी मिलते हैं। इन पाठों का मिलान नहीं किया गया है, किंतु इनमें परस्पर अंतर बहुत है। उदाहरणार्थ संख्या 1797 की एक प्रति में, जो प्राप्त प्रतियों में सबसे प्राचीन है। केवल 478 दोहे हैं और इनमें भी 6 ऐसे हैं, जो मुद्रित पाठ में नहीं मिलते। बहुत कुछ यही दशा रचना की और प्रतियों की भी है। इससे यह ज्ञात होता है कि इसका सम्पादन कवि अपने जीवन काल में नहीं कर सका था। सम्भवत: उसके विविध विषयों के कुछ स्फुट दोहे ही थे, जिन्हें अलग-अलग ढ़ग से अलग-अलग व्यक्तियों ने संकलित कर लिया।

सतसई

इन्हीं दोहों के साथ नव- कल्पित दोहों को मिलाकर एक 'सतसई' भी तैयार की गयी, यही कारण है कि 'दोहावली' और 'सतसई' के बहुत दोहे एक ही हैं।

विषय

'दोहावली' किसी एक विषय की रचना नहीं है। इसमें अनेकानेक विषयों के स्फुट दोहे संकलित हुए हैं। इनमें से 'जातक' की अनन्य निष्ठा पर कहे गये छ्न्द सबसे अधिक मनोहर हैं। कुछ छ्न्द कवि के जीवन की अनेक घटनाओं से सम्बन्धित हैं। इनका महत्त्व कवि के प्रामाणिक जीवन वृत्त के निर्माण में बहुत अधिक है। 'कवितावली' के छ्न्दों के बाद 'दोहावली' के इन दोहों से ही कवि के जीवन- वृत निर्माण में हमें उल्लेखनीय सहायता मिलती है।

समय

'दोहावली' के ये दोहे भी 'कवितावली' के उपर्युक्त छ्न्दों की भाँति कवि के जीवन के अंतिम भाग से सम्बन्ध रखते हैं। फलत: यह असम्भव नहीं कि 'दोहावली' के छ्न्दों की रचना भी 'कवितावली' के छ्न्दों की भाँति तुलसीदास के कवि- जीवन के उत्तरार्ध की हो, किंतु यह बात उतने निश्चय के साथ 'कवितावली' के छ्न्दों के विषय में कही गयी है।


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