चित्ररेखा  

जायसी द्वारा रचित चित्ररेखा एक प्रेमकथा है किन्तु 'पद्मावत' की तुलना में यह एक द्वितीय श्रेणी की रचना है। जायसी ने पद्मावत की ही भांति "चित्ररेखा' की शुरुआत भी संसार के सृजनकर्ता की वंदना के साथ किया है। इसमें जायसी ने सृष्टि की उद्भव की कहानी कहते हुए करतार की प्रशंसा में बहुत कुछ लिखा है। इसके अलावा इसमें उन्होंने पैगम्बर मुहम्मद साहब और उनके चार मित्रों का वर्णन सुंदरता के साथ किया है। इस प्रशंसा के बाद जायसी ने इस काव्य की असल कथा आरंभ किया है।

जायसी की कथा चंद्रपुर नामक एक अत्यंत सुंदर नगर के राजा, जिनका नाम चंद्रभानु था, की कथा पर आधारित है। इसमें राजा चंद्र भानु की चाँद के समान अवतरित हुई पुत्री चित्ररेखा की सुंदरता एवं उसकी शादी को इस प्रकार बयान किया है:-

कथा

चंद्रपुर की राजमंदिरों में 700 रानियाँ थी। उनमें रुपरेखा अधिक लावण्यमयी थी। उसके गर्भ से बालिका का जन्म हुआ। ज्योतिष और गणक ने उसका नाम चित्ररेखा रखा तथा कहा कि इसका जन्म चंद्रपुर में हुआ है, किंतु यह कन्नौज की रानी बनेगी। धीरे- धीरे वह चाँद की कली के समान बढ़ती ही गयी। जब वह स्यानी हो गयी, तो राजा चंद्रभानु ने वर ख़ोजने के लिए अपने दूत भेजे। वे ढ़ूंढ़ते- ढ़ूंढ़ते सिंहद देश के राजा सिंघनदेव के यहाँ पहुँचे और उसके कुबड़े बेटे से संबंध तय कर दिया।

कन्नौज के राजा कल्याण सिंह के पास अपार दौलत, जन व पदाति, हस्ति आदि सेनाएँ थी। तमाम संपन्नता के बावज़ूद उसके पास एक पुत्र नहीं था। घोर तपस्या एवं तप के पश्चात् उनकी एक राजकुमार पैदा हुआ, जिसका नाम प्रीतम कुँवर रखा गया। ज्योतिषियों ने कहा कि यह भाग्यवान अल्पायु है। इसकी आयु केवल बीस वर्ष की है। जब उसे पता चला कि उसकी उम्र सिर्फ़ ढ़ाई दिन ही रह गई है, तो उन्होंने पूरा राजपाट छोड़ दिया और काशी में अंत गति लेने के लिए चल पड़ा।

रास्ते में राजकुमार को राजा सिंघलदेव से भेंट हो गयी। राजा सिंघलदेव ने राजकुमार प्रीतम कुँवर के पैर पकड़ लिए। उसकी पुरी और नाम पूछा तथा विनती की, कि हम इस नगर में ब्याहने आए हैं। हमारा वर कुबड़ा है, तुम आज रात ब्याह कराकर चले जाना और इस प्रकार चित्ररेखा का ब्याह, प्रीतम सिंह से हो जाता है। प्रीतम सिंह को व्यास के कहने से नया जीवन मिलता है।



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