टिन  

टिन
चमकीली धातु
साधारण गुणधर्म
नाम, प्रतीक, संख्या टिन, Sn, 50
तत्व श्रेणी परवर्ती संक्रमण धातु
समूह, आवर्त, कक्षा 14, 5, p
मानक परमाणु भार 118.710g·mol−1
इलेक्ट्रॉन विन्यास 1s2 2s2 2p6 3s2 3p6 3d10 4s2 4p6 4d10 5s2 5p2
इलेक्ट्रॉन प्रति शेल 2, 8, 18, 18, 4
भौतिक गुणधर्म
अवस्था ठोस
घनत्व (निकट क.ता.) (सफ़ेद) 7.365 g·cm−3
घनत्व (निकट क.ता.) (धुंधला) 5.769 g·cm−3
तरल घनत्व
(गलनांक पर)
6.99 g·cm−3
गलनांक 505.08 K, 231.93 °C, 449.47 °F
क्वथनांक 2875 K, 2602 °C, 4716 °F
संलयन ऊष्मा (सफ़ेद) 7.03 किलो जूल-मोल
वाष्पन ऊष्मा (सफ़ेद) 296.1 किलो जूल-मोल
विशिष्ट ऊष्मीय
क्षमता
(सफ़ेद) 27.112

जूल-मोल−1किलो−1

वाष्प दाब
P (Pa) 1 10 100 1 k 10 k 100 k
at T (K) 1497 1657 1855 2107 2438 2893
परमाण्विक गुणधर्म
ऑक्सीकरण अवस्था 4, 2, -4 (उभयधर्मी ऑक्साइड)
इलेक्ट्रोनेगेटिविटी 1.96 (पाइलिंग पैमाना)
आयनीकरण ऊर्जाएँ 1st: 708.6 कि.जूल•मोल−1
2nd: 1411.8 कि.जूल•मोल−1
3rd: 2943.0 कि.जूल•मोल−1
परमाण्विक त्रिज्या 140 pm
सहसंयोजक त्रिज्या 139±4 pm
वैन्डैर वाल्स त्रिज्या 217 pm
विविध गुणधर्म
क्रिस्टल संरचना note चतुर्भुजीय (सफ़ेद), हीरा घन (धुंधला)
चुम्बकीय क्रम (धुंधला) प्रतिचुम्बकीय, (सफ़ेद) पराचुम्बकीय
वैद्युत प्रतिरोधकता (0 °C) 115 nΩ·m
ऊष्मीय चालकता (300 K) 66.8 W·m−1·K−1
ऊष्मीय प्रसार (25 °C) 22.0 µm·m−1·K−1
यंग मापांक 50 GPa
अपरूपण मापांक 18 GPa
स्थूल मापांक 58 GPa
पॉयज़न अनुपात 0.36
मोह्स कठोरता मापांक 1.5
ब्राइनल कठोरता 51 MPa
सी.ए.एस पंजीकरण
संख्या
7440-31-5
समस्थानिक
समस्थानिक प्रा. प्रचुरता अर्द्ध आयु क्षरण अवस्था क्षरण ऊर्जा
(MeV)
क्षरण उत्पाद
112Sn 0.97% 112Sn 62 न्यूट्रॉन के साथ स्थिर
114Sn 0.66% 114Sn 64 न्यूट्रॉन के साथ स्थिर
115Sn 0.34% 115Sn 65 न्यूट्रॉन के साथ स्थिर
116Sn 14.54% 116Sn 66 न्यूट्रॉन के साथ स्थिर
117Sn 7.68% 117Sn 67 न्यूट्रॉन के साथ स्थिर
118Sn 24.22% 118Sn 68 न्यूट्रॉन के साथ स्थिर
119Sn 8.59% 119Sn 69 न्यूट्रॉन के साथ स्थिर
120Sn 32.58% 120Sn 70 न्यूट्रॉन के साथ स्थिर
122Sn 4.63% 122Sn 72 न्यूट्रॉन के साथ स्थिर
124Sn 5.79% 124Sn 74 न्यूट्रॉन के साथ स्थिर
126Sn trace 2.3×105 y β 0.380 126Sb


टिन (अंग्रेज़ी:Tin) आवर्त सारणी का एक तत्व है, जिसका स्थान चौदहवें समूह में हैं। इसे 'वंग' (त्रपु) या 'रांगा' भी कहा जाता है। टि का प्रतीक Sn, परमाणु क्रमांक 50, परमाणु भार 118.710, गलनांक 231.93° सें., क्वथनांक 2602° सें. होता है। इसका इलेक्ट्रॉनिक विन्यास 1s2 2s2 2p6 3s2 3p6 3d10 4s2 4p6 4d10 5s2 5p2 होता है। इसके 10 समस्थानिक 112, 114, 115, 116, 117, 118, 119, 120, 122, 124 होते है। इनके अतिरिक्त चार अन्य रेडियोऐक्टिव समस्थानिक (द्रव्यमान संख्या 113, 121, 123 और 125) भी निर्मित हुए हैं।

इतिहास

टिन की मिश्र धातु का उपयोग आज से 5,000 वर्ष पूर्व भी होता था। इस धातु की बनी सबसे प्राचीन बोतल मिस्र स्थित एक समाधि में पाई गई, जो लगभग ईसा से 1,500 वर्ष पूर्वकाल की है। टिन के अयस्क मिस्र में नहीं मिलते। इस कारण वहाँ यह धातु अवश्य ही बाहर से आयी होगी। ईसा से लगभग 300 वर्ष पूर्व इंग्लैंड में टिन के धातुकर्म के नमूने मिलते हैं। यहाँ टिन की खानें थीं। उस समय यह धातु रोम जाती थी। दक्षिणी अमरीका के आदिवासियों को टिन की मिश्र धातुओं का ज्ञान था।

भारत में सिंधु घाटी की सभ्यता के काल के प्राप्त धातु पदार्थों में टिन पाया गया है। ऐसा अनुमान है कि उस समय टिन ईरान से आता था। ईसा से पाँच शताब्दी पूर्व आयुर्वेद काल में सुश्रुत में टिन तथा वाग्भट्ट के 'अष्टांगहृदयम्' में भी इसके यौगिक का वर्णन आया है। 'रसरत्नसमुच्चय' में टिन धातु तथा वैग भस्म दोनों के गुणों की विवेचना की गई है।[१]

प्राप्ति स्थान

टिन मुक्त अवस्था में प्राप्त नहीं है। पृथ्वी की सतह पर इसकी मात्रा लगभग 40 ग्राम प्रति टन है। इसके प्रमुख अयस्क हैं- कैसिटेराइट (SnO2) और सल्फाइड। मलेशिया, थाइलैंड, इंडोनेशिया, कांगो, नाइजीरिया तथा बोलिविया में टिन की मुख्य खानें हैं।

धातुकर्म

टिन के अयस्क में प्राय: 1 से 5 प्रतिशत टिन ऑक्साइड (SnO2) उपस्थित रहता है। इस कारण इसे सांद्रित करना आवश्यक है। उच्च घनत्त्व तथा अचुंबकीय गुणों के द्वारा ही कैसिटेराइट का सांद्रण करते हैं। सांद्रित अयस्क को कोयले से मिश्रित कर परावर्तनी[२] अथवा वात्या[३] भट्ठी में रखकर अपचयन[४] करने से टिन धातु प्राप्त होती है। अशुद्ध टिन के विशुद्ध करने की अनेक विधियाँ हैं।

गुणधर्म

टिन सफ़ेद रंग की कोमल तन्य[५] धातु है। इसके तार सरलता से खींचे जा सकते हैं, परंतु टिन की चादर मोड़ने पर कटकटाने की ध्वनि होती है, जिसे "टिन की चिल्लाहट" कहते हैं। धातु के दो अपररूपी रूपांतरण[६] हैं। सामान्य अवस्था में यह श्वेत रंग की धातु है, परंतु यदि टिन को अधिक काल तक 13° सें. ताप से नीचे रखा जाए, तो यह भुरभुरा एवं भूरे रंग के चूर्ण में परिवर्तित होकर टिन का दूसरा अपररूप बनाता है, जो निम्न ताप पर स्थायी है।

सामान्य ताप पर टिन वायु द्वारा प्रभावित नहीं होता, परंतु उच्च ताप पर उस पर ऑक्साइड की परत जम जाती है। श्वेत ताप पर टिन वायु में जलकर डाइऑक्साइड (SnO2) बनाता है। यह तप्त अवस्था में पीले रंग का और सामान्य ताप पर श्वेत रंग का पदार्थ है। टिन तनु अम्लों में धीरे-धीरे घुलकर टिन++ (Sn++) यौगिक बनाता है और हाइड्रोजन मुक्त करता है। धातु पर सांद्र नाइट्रिक अम्ल की अभिक्रिया द्वारा जलयुक्त स्टैनिक ऑक्साइड अथवा मेटास्टैनिक अम्ल[७] बनता है। टिन क्षारीय विलयन में घुलकर स्टैनेट बनाता है, जिसके फलस्वरूप हाइड्रोजन मुक्त हो जाता है।[१]

यौगिक

टिन के दो प्रकार के यौगिक ज्ञात हैं-

  1. 'स्टैंनस', जिसमें टिन की संयोजकता 2 है।
  2. 'स्टैनिक', जिसमें टिन की संयोजकता 4 रहती है।

इसके दो ऑक्साइड, स्टैनस ऑक्साइ (SnO) और स्टैनिक ऑक्साइ (SnO2) होते हैं। गंधक के साथ टिन को गरम करने से स्टैनस सल्फाइड (SnS) प्राप्त होता है। स्टैनिक सल्फ़ाइड (SnS2) भी बनता है।

हेलोजन के साथ क्रिया

हेलोजन के साथ टिन स्टैन्स हैलाइड और स्टैनिक हैलाइड बनाता है। टिन के क्लोराइड रंगबंधक के रूप में रेशम रंगने में काम आते हैं। यह नाइट्रोजन, हाइड्रोजन और फॉस्फोरस के साथ भी यौगिक बनाता है। इसके नाइट्रेट और फॉस्फेट अस्थायी होते हैं। क्लोरोस्टैनिक अम्ल का अमोनियम लवण [( N H4)2 SnCl6] रेशम रंगने में काम आता है। टिन अनेक उपसहसंयोजकता[८] यौगिक बनाता है।

उपयोग

टिन मुलम्मा करने और मिश्र धातुओं के निर्माण में काम आता है। लोहे पर टिन से कलई करने पर उस पर न मुरचा ही लगता है और न ही अम्लों का जल्दी असर पड़ता है। काँसा इसकी महत्त्व की मिश्रधातु है। खाद्य पदार्थों के डिब्बों में टिन की कलई करने से वे जल्द आक्रांत नहीं होते। इसके अनेक यौगिक वस्त्र उद्योग, रँगाई, काँच एवं चीनी मिट्टी के पात्र के उद्योगों में काम आते हैं।[१]


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. १.० १.१ १.२ टिन (हिन्दी) भारतखोज। अभिगमन तिथि: 16 जून, 2015।
  2. reverberatory
  3. blast
  4. reduction
  5. ductile
  6. allotropic modifications
  7. metastannie acid
  8. coordinate

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