राग खंभावती
राम नाम मेरे मन बसियो, रसियो राम रिझाऊं ए माय।
मैं मंदभागण परम अभागण, कीरत कैसे गाऊं ए माय॥
बिरह पिंजरकी बाड़ सखी रीं,उठकर जी हुलसाऊं[१] ए माय।
मनकूं मार सजूं सतगुरसूं, दुरमत दूर गमाऊं[२] ए माय॥
डंको[३] नाम सुरतकी डोरी, कड़ियां[४] प्रेम चढ़ाऊं ए माय।
प्रेम को ढोल बन्यो अति भारी, मगन होय गुण गाऊं ए माय॥
तन करूं ताल मन करूं ढफली, सोती सुरति जगाऊं ए माय।
निरत करूं मैं प्रीतम आगे, तो प्रीतम पद पाऊं ए माय॥
मो अबलापर किरपा कीज्यौ, गुण गोविन्दका गाऊं ए माय।
मीराके प्रभु गिरधर नागर, रज[५] चरणनकी पाऊं ए माय॥