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राग धानी
मैं गिरधर रंग-राती[१], सैयां मैं॥
पचरंग[२] चोला[३] पहर सखी[४] री, मैं झिरमिट[५] रमवा जाती।
झिरमिटमां मोहि मोहन मिलियो, खोल मिली[६] तन गाती[७]॥
कोईके पिया परदेस बसत हैं, लिख लिख भेजें पाती।
मेरा पिया मेरे हीय बसत है, ना कहुं आती जाती॥
चंदा जायगा सूरज जायगा, जायगी धरण[८] अकासी।
पवन पाणी दोनूं ही जायंगे, अटल रहे अबिनासी॥
और सखी मद पी-पी माती[९], मैं बिन पियां[१०] ही माती।
प्रेमभठी[११] को मैं मद पीयो, छकी फिरूं दिनराती॥
सुरत[१२] निरत[१३] को दिवलो जोयो, मनसाकी कर ली बाती।
अगम घाणि को तेल सिंचायो, बाल रही दिनराती॥
जाऊंनी पीहरिये जाऊंनी सासरिये, हरिसूं सैन[१४] लगाती।
मीराके प्रभु गिरधर नागर, हरिचरणां चित लाती॥