जानुशीर्षासन
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जानुशीर्षासन (अंग्रेज़ी: Janusirsasana) योग एक संस्कृत का शब्द है। यह दो शब्दों से मिलकर बना है जिसमें पहला शब्द 'जानु' है जिसका अर्थ 'घुटना' है और दूसरे शब्द 'शीर्ष' का अर्थ 'सिर' होता है। जानुशीर्षासन 'अष्टांग योग' की प्राथमिक श्रृंखला का हिस्सा है। यह एक बैठा हुआ आसन है। इस आसन में सिर पूरी तरह से घुटनों को छूता है। हालांकि यह आसन देखने में शीर्षासन के समान लगता है, पर यह उससे बहुत ही अलग है। इस मुद्रा का इरादा शरीर को फोल्ड करना है ताकि सिर घुटने के करीब पहुँच सके। यह योग आसन शरीर को स्वस्थ रखन में बहुत मदद करता है।
विधि
- पैरों को सामने की ओर सीधे फैलाते हुए बैठ जाएँ,रीढ़ की हड्डी सीधी रखें।
- बाएँ घुटने को मोड़ें, बाएँ पैर के तलवे को दाहिनी जांघ के पास रखें, बायाँ घुटना ज़मीन पर रहे।
- साँस भरें, दोनों हाथों को सिर से ऊपर उठाएँ, खींचे ओर कमर को दाहिनी तरफ घुमाएँ।
- साँस छोड़ते हुए कूल्हों के जोड़ से आगे झुकें, रीढ़ की हड्डी सीधी रखते हुए ठुड्डी को पंजों की और बढ़ाएँ।
- अगर संभव हो तो अपने पैरों के अंगूठों को पकडें, कोहनी को जमीन पर लगाएँ, अँगुलियों को खींचते हुए आगे की ओर बढ़ें।
- साँस रोकें। (स्थिति को बनाए रखें)।
- साँस भरें, साँस छोड़ते हुए ऊपर उठें, हाथों को बगल से नीचे ले आएँ।
- पूरी प्रक्रिया को दाएँ पैर के साथ दोहराएँ।
लाभ
- इस आसन को करने से पेट की मांसपेशियां मजबूत होती हैं, इसके साथ यह आसन पेट के छोटी और बड़ी आंतों को फैलता हैं, जो पाचन क्रिया को मजबूत करता है।
- यह पेट में कब्ज की समस्या को खत्म कर देता है। यह पेट फूलना और पेट की सूजन की परेशानी को भी दूर करता है।
- इस आसन का अभ्यास करने से अनिद्रा, साइनसिसिटिस और उच्च रक्तचाप भी ठीक हो जाता है।
- जानुशीर्षासन मन को शांत रखता है और हल्के तनाव से भी रहत देता है।
- प्लीहा और पित्त मूत्राशय को मजबूत करता है और उनको स्वस्थ रखता है। यह यकृत और गुर्दे को उत्तेजित करता है और उनके कार्य को सुधरता है।
- यह पेट के क्षेत्र में रक्त प्रवाह में वृद्धि और गुर्दे की क्रिया को बढ़ावा देता है।
- शरीर से ठंड को कम करने में मदद करता है। अगर जानुशीर्षासन को सही ढंग से करते हैं तो यह आपको बुखार होने से बचाता है। इसके अलावा यह आसन फ्लू के कारण ग्रंथि में हुई सूजन को जल्दी से ठीक कर देता है।
- इस आसन को करने से ग्रोइन, हैमस्ट्रिंग और कंधे को एक अच्छा खिंचाव मिलता है।
- यह आसन प्रजनन प्रणाली के कार्य में सुधार करता है। इस आसन को करने से प्रजनन अंग भी उत्तेजित होते हैं, जिसके कारण मासिक धर्म और रजोनिवृत्ति (मासिक धर्म का बन्द होना) आदि की समस्या खत्म हो जाती है।
- गर्भावस्था के दौरान यह आसन पीठ की मांसपेशियों को मजबूत करने में मदद करता है। लेकिन इस आसन को केवल दूसरे तिमाही तक ही अभ्यास किया जाना चाहिए।
सावधानी
- अगर घुटनों में दर्द हैं तो इस आसन को ना करें।
- गंभीर पीठ दर्द से पीड़ित व्यक्ति को यह आसन नहीं करना चाहिए।
- अगर दस्त और अस्थमा की समस्या से परेशान हैं तो इस आसन को करने से बचें।
- अगर लम्बर डिस्क हर्नियेशन के रोगी हैं तो इस आसन को ना करें।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
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