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{{बहुविकल्प|बहुविकल्पी शब्द=सूर्य|लेख का नाम=सूर्य (बहुविकल्पी)}}
#[[सूर्य देवता]]- वैदिक और पौराणिक आख्यानों के अनुसार भगवान श्री सूर्य समस्त जीव-जगत के आत्मस्वरूप हैं।
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[[चित्र:sun-part.gif|thumb|300px|right|सूर्य<br />Sun]]
#[[सूर्य तारा]]- सूर्य सौरमण्डल का प्रधान तारा है।
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सूर्य या सूरज हमारे लिए बहुत महत्त्वपूर्ण हैं। वह हमें रौशनी और गर्मी देता है जिससे यह धरती, रहने के लिए एक सुखद और रौशन जगह बनती हैं। सूरज के बिना धरती बिल्कुल ठंडी और अंधेरी होती। यहाँ कोई पशु-पक्षी और पेड़-पौधे नहीं होते क्योंकि पेड़-पौधों को अपना खान बनाने के लिए सूरज की रोशनी की जरूरत होती है और जानवर पौधे खाते हैं या दूसरे जानवरों को खाते हैं जो कि पौधे खाते हैं। मतलब यह कि सूरज के बिना पौधे जिन्दा नहीं रह सकते और पौधों के बिना जानवर जी नहीं सकते।
#[[सूर्य वंश]]- क्षत्रियों के दो प्रधान वंशों में से एक जिसका आरम्भ इक्ष्वाकु से माना जाता है, जिन्होंने त्रेता युग में अयोध्या में राज किया।
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==सितारा==
#[[सूर्य तीर्थ मथुरा]]- विरोचन के पुत्र महाराज बलि ने यहाँ सूर्यदेव की आराधना कर मनोवाच्छित फल की प्राप्ति की थी
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सूरज धरती और दूसरे ग्रहों से बहुत अलग हैं। यह एक सितारा हैं, ठीक दूसरे सितारों की तरह, लेकिन उन सबसे बहुत करीब। सूर्य सौर मंडल में सबसे बड़ा पिण्ड है। सूर्य सौरमंडल के केन्द्र में स्थित एक तारा हैं, जिसके चारों तरफ पृथ्वी और सौरमंडल के अन्य अवयव घूमते हैं।  
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====द्रव्यमान ====
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सूर्य का द्रव्यमान 1.989e30 किलो है। सौर मंडल के द्रव्यमान का कुल 99.8% द्रव्यमान सूर्य का है। बाकि बचे में अधिकतर में बृहस्पति का द्रव्यमान है।
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====व्यास====
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सूरज देखने में इतना बड़ा नहीं लगता क्योंकि वह धरती से बहुत दूर है। सूर्य का व्यास 13 लाख 92 हज़ार किलोमीटर (865000 मील) है, जो पृथ्वी के व्यास का लगभग 110 गुना है। सूर्य पृथ्वी से 13 लाख गुना बड़ा है और पृथ्वी को सूर्यताप का 2 अरबवाँ भाग मिलता है।
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====सूर्य से पृथ्वी की औसत दूरी====
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सूर्य से पृथ्वी की औसत दूरी लगभग 14,96,00,000 किलोमीटर या 9,29,60,000 मील है तथा सूर्य के प्रकाश को [[पृथ्वी ग्रह|पृथ्वी]] तक पहुँचने में 8 मिनट 16.6 सेकेण्ड का समय लगता है। इसी प्रकाशीय ऊर्जा से प्रकाश-संश्लेषण नामक एक महत्त्वपूर्ण जैव-रासायनिक अभिक्रिया होती है जो पृथ्वी पर जीवन का आधार है। यह पृथ्वी के जलवायु और मौसम को प्रभावित करता है।
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==आकाशगंगा में सूर्य==
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सूर्य आकाशगंगा के 100 अरब से अधिक तारो में से एक सामान्य मुख्य क्रम का G2 श्रेणी का साधारण तारा है। यह अक्सर कहा जाता है कि सूर्य एक साधारण तारा है। यह इस तरह से सच है कि सूर्य के जैसे लाखों तारे है। लेकिन सूर्य से बड़े तारो की तुलना में छोटे तारे ज़्यादा है। सूर्य द्रव्यमान से शीर्ष 10% तारो में है । हमारी आकाशगंगा में सितारों का औसत द्रव्यमान सूर्य के द्रव्यमान के आधे से भी कम है।
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==पौराणिक कथाओं में सूर्य==
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{{मुख्य|सूर्य देवता}}
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सूर्य [[पुराण|पौराणिक]] कथाओं में एक मुख्य [[देवता]] रहा है, [[वेद|वेदो]] में कई मंत्र सूर्य के लिये है, यूनानियों ने इसे हेलियोस कहा है और रोमनो ने सोल। पौराणिक सन्दर्भ में सूर्यदेव की उत्पत्ति के अनेक प्रसंग प्राप्त होते हैं। यद्यपि उनमें वर्णित घटनाक्रमों में अन्तर है, किन्तु कई प्रसंग परस्पर मिलते-जुलते हैं। सर्वाधिक प्रचलित मान्यता के अनुसार भगवान सूर्य महर्षि [[कश्यप]] के पुत्र हैं। वे महर्षि कश्यप की पत्नी [[अदिति]] के गर्भ से उत्पन्न हुए। अदिति के पुत्र होने के कारण ही उनका एक नाम [[आदित्य देवता|आदित्य]] हुआ।
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==सौर कलंक==
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सूर्य को दूरदर्शी यंत्र से देखने पर इसकी सतह पर छोटे-बड़े धब्बे दिखलाई पड़ते हैं। इन्हें सौर कलंक कहा जाता है। ये कलंक अपने स्थान से सरकते हुए दिखाई पड़ते हैं। इससे वैज्ञानिकों ने निष्कर्ष निकाला है कि सूर्य पूरब से पश्चिम की ओर अपने अक्ष पर एक परिक्रमा करता है। सूर्य की बाहरी परते भिन्न भिन्न घुर्णन गति दर्शाती है, भूमध्य रेखा ( मध्य भाग ) पर सतह हर 25.4 दिनों में एक बार घूमती है, ध्रुवो के पास यह 36 दिन है। यह अजीब व्यवहार इस तथ्य के कारण है कि सूर्य पृथ्वी के जैसे [[ठोस]] नहीं है। इसी तरह का प्रभाव [[गैस]] ग्रहों में देखा जाता है। सूर्य का केन्द्र एक ठोस पिण्ड के जैसे घुर्णन करता है।
  
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सूर्य पर कुछ सूर्य धब्बो / सौर कलंक (चलते हुए गेसों के खोल) के क्षेत्र होते है जिनका तापमान अन्य क्षेत्रो से कुछ कम लगभग 3800 डिग्री केल्वीन (1500 ºC) होता है। सूर्य धब्बे काफ़ी बड़े हो सकते हैं, इनका व्यास 50000 किमी हो सकता है। सूर्य धब्बे सूर्य के चुंबकिय क्षेत्रो में परिवर्तन से बनते हैं। सूर्य के धब्बों का एक पूरा चक्र 22 वर्षों का होता है। पहले 11 वर्षों तक यह धब्बा बढ़ता है और बाद के 11 वर्षों तक यह धब्बा घटता है। जब सूर्य की सतह पर धब्बा दिखलाई देता है, उस समय पृथ्वी पर चुम्बकीय झंझावत (Magnetic Storms) उत्पन्न होते हैं। इससे चुम्बकीय सुई की दिशा बदल जाती है, एवं रेडियो, टलीविजन, बिजली चालित मशीनों में गड़बड़ी उत्पन्न हो जाती है। सूर्य के चुंबकीय क्षेत्र बहुत मजबूत है (स्थलीय मानकों के द्वारा) और बहुत जटिल है। इसका हेलीयोस्फियर भी कहते है जो प्लूटो के परे तक फैला हुआ है। सूर्य का निरंतर ऊर्जा उत्पादन सतत एक मात्रा में नहीं होता है, ना ही सूर्य धब्बो की गतिविधी। 17वी शताब्दी के उत्तारार्ध में सूर्य धब्बे अपने न्यूनतम पर थे। इसी समय में युरोप में ठंड अप्रत्याशित रूप से बढ गयी थी। सौर मंडल के जन्म के बाद से सूर्य ऊर्जा का उत्पादन 40% बढ़ गया है।
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==आकाश गंगा की परिक्रमा==
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जिस प्रकार पृथ्वी और अन्य ग्रह सूरज की परिक्रमा करते हैं उसी प्रकार सूरज भी आकाश गंगा के केन्द्र की परिक्रमा करता है। सूर्य [[सौरमण्डल]] का प्रधान है। यह हमारी मंदाकिनी दुग्धमेखला (आकाश गंगा) के केन्द्र से लगभग 30,000 प्रकाशवर्ष की दूरी पर एक कोने में स्थित है। सूर्य दुग्धमेखला मंदाकिनी के केन्द्र के चारों ओर 251 किलोमीटर प्रति सेकेंड की [[गति]] से परिक्रमा कर रहा है। इसका परिक्रमण काल (दुग्धमेखला के केन्द्र के चारों ओर एक बार घूमने में लगा समय) 22 से 25 करोड़ वर्ष है। जिसे '''[[ब्रह्माण्ड]] वर्ष / निहारिका वर्ष (Cosmos Year)''' कहते हैं।
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==गैसों का विशाल गोला==
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सूर्य मुख्य रूप से [[हाइड्रोजन]] और [[हीलियम]] गैसों का एक विशाल गोला है। सूर्य की सतह का निर्माण हाइड्रोजन, हीलियम, [[लोहा]], निकेल, [[ऑक्सीजन]], सिलिकन, [[सल्फर]], [[मैग्निशियम]], [[कार्बन]], नियोन, [[कैल्सियम]], क्रोमियम [[तत्व|तत्त्वों]] से हुआ है। वर्तमान में सूर्य के द्रव्यमान का 71% [[हाइड्रोजन]] 26.5% [[हीलियम]] और 2.5% अन्य धातु/तत्व है। यह अनुपात धीमे धीमे बदलता है क्योंकि सूर्य हायड्रोजन को जलाकर हीलियम बनाता है। हैंस बेथ (Hans Bethe) ने बताया कि 107 ºC ताप पर सूर्य के केन्द्र पर चारों हाइड्रोजन नाभिक मिलकर एक हीलियम नाभिक का निर्माण करता है अर्थात सूर्य के केन्द्र पर नाभिकीय संलयन होता है इस परमाणु विलय की प्रक्रिया द्वारा सूर्य अपने केंद्र में [[ऊर्जा]] पैदा करता है। सूर्य से निकली ऊर्जा का छोटा सा भाग ही पृथ्वी पर पहुँचता है जिसमें से 15 प्रतिशत अंतरिक्ष में परावर्तित हो जाता है, 30 प्रतिशत पानी को भाप बनाने में काम आता है और बहुत सी ऊर्जा पेड़-पौधे समुद्र सोख लेते हैं। इसकी मजबूत गुरुत्वाकर्षण शक्ति विभिन्न कक्षाओं में घूमते हुए पृथ्वी और अन्य ग्रहों को इसकी तरफ खींच कर रखती है।
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==केन्द्रीय भाग==
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सूर्य का केन्द्रीय भाग क्रोड (Core) (कुल अंतः त्रिज्या का 25%) कहलाता है, अपने चरम तापमान पर है। यहाँ तापमान 15600000 डिग्री केल्विन (1.5×107 ºC) है और दबाव 250 बिलियन वायुमंडलीय दबाव है। सूर्य के केंद्र पर घनत्व पानी के घनत्व से 150 गुना से अधिक है।
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* सूर्य की शक्ति (386 अरब डॉलर मेगावाट / सेकंड) नाभिकीय संलयन द्वारा निर्मित है। हर सेकंड 700,000,000 टन की हाइड्रोजन 695000000 टन में परिवर्तित हो जाती है शेष 5,000,000 टन गामा किरणो के रूप में ऊर्जा में परिवर्तित हो जाती है। यह ऊर्जा जैसे जैसे केंद्र से सतह की तरह बढती है विभिन्न परतो द्वारा अवशोषित हो कर कम तापमान पर उत्सर्जित होती है। सतह पर यह मुख्य रूप में प्रकाश किरणो के रूप में उत्सर्जित होती है। इस तरह से केंद्र में निर्मित कुल ऊर्जा का 20% भाग ही उत्सर्जित होता है।
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* सूर्य की सतह, जो दीप्तीमान रहता हैं, जिसे '''प्रकाश मण्डल (Photo sphere)''' कहा जाता है का तापमान 5800 डिग्री केल्वीन (6000 ºC) है। प्रकाश मण्डल के किनारे प्रकाशमान नहीं होते, क्योंकि सूर्य का वायुमण्डल प्रकाश का [[अवशोषण]] कर लेता है। इसे '''वर्ण मण्डल (Chromosphere)''' कहते हैं। यह काले रंग का होता है। यह फोटोस्फीयर से उपर का क्षेत्र है। क्रोमोस्फीयर के उपर का क्षेत्र जिसे '''सूर्य–किरीट (corona)''' कहते है अंतरिक्ष में लाखों किमी तक फैला हुआ है। इस क्षेत्र का तापमान 1,000,000 डीग्री केल्वीन तक होता है। यह क्षेत्र केवल सूर्य ग्रहण के समय दिखायी देता है। सूर्य–किरीट एक्स–रे उत्सर्जित करता है। इसे सूर्य का मुकुट कहा जाता है। पूर्ण सूर्य–ग्रहण के समय सूर्य किरीट से प्रकाश की प्राप्ति होती है। सौर ज्वाला को उत्तरी ध्रुव पर औरोरा बोरियलिस और दक्षिणी ध्रुव पर औरोरा औस्ट्रेलिस कहते हैं।
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* सूर्य, गर्मी और प्रकाश के अलावा इलेक्ट्रान और प्रोटॉन की एक धारा का भी उत्सर्जन करता है जिसे सौर वायू कहते हैं, जो 450 किमी/सेकंड की रफ्तार से बहती है। सौर वायु और सौर ज्वाला के द्वारा अधिक ऊर्जा के कणो का प्रवाह होता है जिससे पृथ्वी पर बिजली की लाईनो के अलावा संचार उपग्रह और संचार माध्यमो पर प्रभाव पडता है। इसी से ध्रुविय क्षेत्रो में सुंदर अरोरा बनते हैं।
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* पृथ्वी से चंद्रमा और सूर्य एक ही आकार के दिखाई देते हैं। चन्द्रमा पृथ्वी की परिक्रमा उसी प्रतल में करता है जिस प्रतल में पृथ्वी सूर्य परिक्रमा करती है। इस कारण कभी कभी चन्द्रमा सूर्य और पृथ्वी के मध्य आ जाता है और सूर्य ग्रहण होता है। यह सूर्य चन्द्रमा और पृथ्वी का एक रेखा में आना यदि पुर्णतः ना हो तो चन्द्रमा सूर्य को आंशिक रूप से ही ढक पाता है हैं, इसे आंशिक चन्द्रग्रहण कहते हैं। तिनो खगोलिय पिण्डो के एक रेखा में होने पर चन्द्रमा सूर्य को पूरी तरह ढक लेता है जिससे पूर्ण सूर्यग्रहण होता है। आंशिक सूर्यग्रहण एक बृहद क्षेत्र में दिखायी देता है लेकिन पूर्ण सूर्यग्रहण एक बेहद संकरी पट्टी (कुछ किमी) में दिखायी देता है। हांलांकि यह पट्टी हजारो किमी लम्बी हो सकती है। सूर्यग्रहण साल में एक या दो बार होता है। पूर्ण सूर्यग्रहण देखना एक अद्भूत अनुभव है जब आप चन्द्रमा की छाया में खड़े होते है और सूर्य कोरोना देख सकते हैं। पक्षी इसे रात का समय सोचकर सोने की तैयारी करते हैं।
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* अंतरिक्ष यान युलीसीस से प्राप्त आंकड़ो से पता चलता है जब सौर गतिविधी अपने निम्न पर होती है ध्रुवीय क्षेत्रों से प्रवाहित सौर वायू दूगनी गति 750 किमी/सेकंड से बहती है जो कि उच्च अक्षासो में कम होती है। ध्रुवीय क्षेत्रों से प्रवाहित सौर वायू  की संरचना भी अलग होती है । सौर गतिविधी के चरम पर यह यह अपने मध्यम गति पर बहती है।
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* सूर्य की उम्र 4.5 बिलियन वर्ष है अर्थात सूर्य 4.5 अरब वर्ष पूराना है। उसने अपने पास की कुल हाइड्रोजन का आधा हिस्सा प्रयोग कर लिया है लेकिन इसके पास अगले 5 अरब वर्षो के लिये पर्याप्त इंधन है अर्थात भविष्य में सूर्य के द्वारा ऊर्जा देते रहने का समय 1011 प्रकाशवर्ष है। उस समय उसकी चमक लगभग दूगनी हो जायेगी। लेकिन अतत: उसकी हाइड्रोजन खत्म हो जायेगी और वह एक लाल महादानव में बदल जायेगा। उस समय सूर्य मंगल की कक्षा तक फूल जायेगा। पृथ्वी नष्ट हो जायेगी। शायद सूर्य की मौत एक ग्रहीय निहारिका के रूप में होगी।
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११:५२, ८ मई २०११ का अवतरण

सूर्य एक बहुविकल्पी शब्द है अन्य अर्थों के लिए देखें:- सूर्य (बहुविकल्पी)

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सूर्य
Sun

सूर्य या सूरज हमारे लिए बहुत महत्त्वपूर्ण हैं। वह हमें रौशनी और गर्मी देता है जिससे यह धरती, रहने के लिए एक सुखद और रौशन जगह बनती हैं। सूरज के बिना धरती बिल्कुल ठंडी और अंधेरी होती। यहाँ कोई पशु-पक्षी और पेड़-पौधे नहीं होते क्योंकि पेड़-पौधों को अपना खान बनाने के लिए सूरज की रोशनी की जरूरत होती है और जानवर पौधे खाते हैं या दूसरे जानवरों को खाते हैं जो कि पौधे खाते हैं। मतलब यह कि सूरज के बिना पौधे जिन्दा नहीं रह सकते और पौधों के बिना जानवर जी नहीं सकते।

सितारा

सूरज धरती और दूसरे ग्रहों से बहुत अलग हैं। यह एक सितारा हैं, ठीक दूसरे सितारों की तरह, लेकिन उन सबसे बहुत करीब। सूर्य सौर मंडल में सबसे बड़ा पिण्ड है। सूर्य सौरमंडल के केन्द्र में स्थित एक तारा हैं, जिसके चारों तरफ पृथ्वी और सौरमंडल के अन्य अवयव घूमते हैं।

द्रव्यमान

सूर्य का द्रव्यमान 1.989e30 किलो है। सौर मंडल के द्रव्यमान का कुल 99.8% द्रव्यमान सूर्य का है। बाकि बचे में अधिकतर में बृहस्पति का द्रव्यमान है।

व्यास

सूरज देखने में इतना बड़ा नहीं लगता क्योंकि वह धरती से बहुत दूर है। सूर्य का व्यास 13 लाख 92 हज़ार किलोमीटर (865000 मील) है, जो पृथ्वी के व्यास का लगभग 110 गुना है। सूर्य पृथ्वी से 13 लाख गुना बड़ा है और पृथ्वी को सूर्यताप का 2 अरबवाँ भाग मिलता है।

सूर्य से पृथ्वी की औसत दूरी

सूर्य से पृथ्वी की औसत दूरी लगभग 14,96,00,000 किलोमीटर या 9,29,60,000 मील है तथा सूर्य के प्रकाश को पृथ्वी तक पहुँचने में 8 मिनट 16.6 सेकेण्ड का समय लगता है। इसी प्रकाशीय ऊर्जा से प्रकाश-संश्लेषण नामक एक महत्त्वपूर्ण जैव-रासायनिक अभिक्रिया होती है जो पृथ्वी पर जीवन का आधार है। यह पृथ्वी के जलवायु और मौसम को प्रभावित करता है।

आकाशगंगा में सूर्य

सूर्य आकाशगंगा के 100 अरब से अधिक तारो में से एक सामान्य मुख्य क्रम का G2 श्रेणी का साधारण तारा है। यह अक्सर कहा जाता है कि सूर्य एक साधारण तारा है। यह इस तरह से सच है कि सूर्य के जैसे लाखों तारे है। लेकिन सूर्य से बड़े तारो की तुलना में छोटे तारे ज़्यादा है। सूर्य द्रव्यमान से शीर्ष 10% तारो में है । हमारी आकाशगंगा में सितारों का औसत द्रव्यमान सूर्य के द्रव्यमान के आधे से भी कम है।

पौराणिक कथाओं में सूर्य

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सूर्य पौराणिक कथाओं में एक मुख्य देवता रहा है, वेदो में कई मंत्र सूर्य के लिये है, यूनानियों ने इसे हेलियोस कहा है और रोमनो ने सोल। पौराणिक सन्दर्भ में सूर्यदेव की उत्पत्ति के अनेक प्रसंग प्राप्त होते हैं। यद्यपि उनमें वर्णित घटनाक्रमों में अन्तर है, किन्तु कई प्रसंग परस्पर मिलते-जुलते हैं। सर्वाधिक प्रचलित मान्यता के अनुसार भगवान सूर्य महर्षि कश्यप के पुत्र हैं। वे महर्षि कश्यप की पत्नी अदिति के गर्भ से उत्पन्न हुए। अदिति के पुत्र होने के कारण ही उनका एक नाम आदित्य हुआ।

सौर कलंक

सूर्य को दूरदर्शी यंत्र से देखने पर इसकी सतह पर छोटे-बड़े धब्बे दिखलाई पड़ते हैं। इन्हें सौर कलंक कहा जाता है। ये कलंक अपने स्थान से सरकते हुए दिखाई पड़ते हैं। इससे वैज्ञानिकों ने निष्कर्ष निकाला है कि सूर्य पूरब से पश्चिम की ओर अपने अक्ष पर एक परिक्रमा करता है। सूर्य की बाहरी परते भिन्न भिन्न घुर्णन गति दर्शाती है, भूमध्य रेखा ( मध्य भाग ) पर सतह हर 25.4 दिनों में एक बार घूमती है, ध्रुवो के पास यह 36 दिन है। यह अजीब व्यवहार इस तथ्य के कारण है कि सूर्य पृथ्वी के जैसे ठोस नहीं है। इसी तरह का प्रभाव गैस ग्रहों में देखा जाता है। सूर्य का केन्द्र एक ठोस पिण्ड के जैसे घुर्णन करता है।

सूर्य पर कुछ सूर्य धब्बो / सौर कलंक (चलते हुए गेसों के खोल) के क्षेत्र होते है जिनका तापमान अन्य क्षेत्रो से कुछ कम लगभग 3800 डिग्री केल्वीन (1500 ºC) होता है। सूर्य धब्बे काफ़ी बड़े हो सकते हैं, इनका व्यास 50000 किमी हो सकता है। सूर्य धब्बे सूर्य के चुंबकिय क्षेत्रो में परिवर्तन से बनते हैं। सूर्य के धब्बों का एक पूरा चक्र 22 वर्षों का होता है। पहले 11 वर्षों तक यह धब्बा बढ़ता है और बाद के 11 वर्षों तक यह धब्बा घटता है। जब सूर्य की सतह पर धब्बा दिखलाई देता है, उस समय पृथ्वी पर चुम्बकीय झंझावत (Magnetic Storms) उत्पन्न होते हैं। इससे चुम्बकीय सुई की दिशा बदल जाती है, एवं रेडियो, टलीविजन, बिजली चालित मशीनों में गड़बड़ी उत्पन्न हो जाती है। सूर्य के चुंबकीय क्षेत्र बहुत मजबूत है (स्थलीय मानकों के द्वारा) और बहुत जटिल है। इसका हेलीयोस्फियर भी कहते है जो प्लूटो के परे तक फैला हुआ है। सूर्य का निरंतर ऊर्जा उत्पादन सतत एक मात्रा में नहीं होता है, ना ही सूर्य धब्बो की गतिविधी। 17वी शताब्दी के उत्तारार्ध में सूर्य धब्बे अपने न्यूनतम पर थे। इसी समय में युरोप में ठंड अप्रत्याशित रूप से बढ गयी थी। सौर मंडल के जन्म के बाद से सूर्य ऊर्जा का उत्पादन 40% बढ़ गया है।

आकाश गंगा की परिक्रमा

जिस प्रकार पृथ्वी और अन्य ग्रह सूरज की परिक्रमा करते हैं उसी प्रकार सूरज भी आकाश गंगा के केन्द्र की परिक्रमा करता है। सूर्य सौरमण्डल का प्रधान है। यह हमारी मंदाकिनी दुग्धमेखला (आकाश गंगा) के केन्द्र से लगभग 30,000 प्रकाशवर्ष की दूरी पर एक कोने में स्थित है। सूर्य दुग्धमेखला मंदाकिनी के केन्द्र के चारों ओर 251 किलोमीटर प्रति सेकेंड की गति से परिक्रमा कर रहा है। इसका परिक्रमण काल (दुग्धमेखला के केन्द्र के चारों ओर एक बार घूमने में लगा समय) 22 से 25 करोड़ वर्ष है। जिसे ब्रह्माण्ड वर्ष / निहारिका वर्ष (Cosmos Year) कहते हैं।

गैसों का विशाल गोला

सूर्य मुख्य रूप से हाइड्रोजन और हीलियम गैसों का एक विशाल गोला है। सूर्य की सतह का निर्माण हाइड्रोजन, हीलियम, लोहा, निकेल, ऑक्सीजन, सिलिकन, सल्फर, मैग्निशियम, कार्बन, नियोन, कैल्सियम, क्रोमियम तत्त्वों से हुआ है। वर्तमान में सूर्य के द्रव्यमान का 71% हाइड्रोजन 26.5% हीलियम और 2.5% अन्य धातु/तत्व है। यह अनुपात धीमे धीमे बदलता है क्योंकि सूर्य हायड्रोजन को जलाकर हीलियम बनाता है। हैंस बेथ (Hans Bethe) ने बताया कि 107 ºC ताप पर सूर्य के केन्द्र पर चारों हाइड्रोजन नाभिक मिलकर एक हीलियम नाभिक का निर्माण करता है अर्थात सूर्य के केन्द्र पर नाभिकीय संलयन होता है इस परमाणु विलय की प्रक्रिया द्वारा सूर्य अपने केंद्र में ऊर्जा पैदा करता है। सूर्य से निकली ऊर्जा का छोटा सा भाग ही पृथ्वी पर पहुँचता है जिसमें से 15 प्रतिशत अंतरिक्ष में परावर्तित हो जाता है, 30 प्रतिशत पानी को भाप बनाने में काम आता है और बहुत सी ऊर्जा पेड़-पौधे समुद्र सोख लेते हैं। इसकी मजबूत गुरुत्वाकर्षण शक्ति विभिन्न कक्षाओं में घूमते हुए पृथ्वी और अन्य ग्रहों को इसकी तरफ खींच कर रखती है।

केन्द्रीय भाग

सूर्य का केन्द्रीय भाग क्रोड (Core) (कुल अंतः त्रिज्या का 25%) कहलाता है, अपने चरम तापमान पर है। यहाँ तापमान 15600000 डिग्री केल्विन (1.5×107 ºC) है और दबाव 250 बिलियन वायुमंडलीय दबाव है। सूर्य के केंद्र पर घनत्व पानी के घनत्व से 150 गुना से अधिक है।

  • सूर्य की शक्ति (386 अरब डॉलर मेगावाट / सेकंड) नाभिकीय संलयन द्वारा निर्मित है। हर सेकंड 700,000,000 टन की हाइड्रोजन 695000000 टन में परिवर्तित हो जाती है शेष 5,000,000 टन गामा किरणो के रूप में ऊर्जा में परिवर्तित हो जाती है। यह ऊर्जा जैसे जैसे केंद्र से सतह की तरह बढती है विभिन्न परतो द्वारा अवशोषित हो कर कम तापमान पर उत्सर्जित होती है। सतह पर यह मुख्य रूप में प्रकाश किरणो के रूप में उत्सर्जित होती है। इस तरह से केंद्र में निर्मित कुल ऊर्जा का 20% भाग ही उत्सर्जित होता है।
  • सूर्य की सतह, जो दीप्तीमान रहता हैं, जिसे प्रकाश मण्डल (Photo sphere) कहा जाता है का तापमान 5800 डिग्री केल्वीन (6000 ºC) है। प्रकाश मण्डल के किनारे प्रकाशमान नहीं होते, क्योंकि सूर्य का वायुमण्डल प्रकाश का अवशोषण कर लेता है। इसे वर्ण मण्डल (Chromosphere) कहते हैं। यह काले रंग का होता है। यह फोटोस्फीयर से उपर का क्षेत्र है। क्रोमोस्फीयर के उपर का क्षेत्र जिसे सूर्य–किरीट (corona) कहते है अंतरिक्ष में लाखों किमी तक फैला हुआ है। इस क्षेत्र का तापमान 1,000,000 डीग्री केल्वीन तक होता है। यह क्षेत्र केवल सूर्य ग्रहण के समय दिखायी देता है। सूर्य–किरीट एक्स–रे उत्सर्जित करता है। इसे सूर्य का मुकुट कहा जाता है। पूर्ण सूर्य–ग्रहण के समय सूर्य किरीट से प्रकाश की प्राप्ति होती है। सौर ज्वाला को उत्तरी ध्रुव पर औरोरा बोरियलिस और दक्षिणी ध्रुव पर औरोरा औस्ट्रेलिस कहते हैं।
  • सूर्य, गर्मी और प्रकाश के अलावा इलेक्ट्रान और प्रोटॉन की एक धारा का भी उत्सर्जन करता है जिसे सौर वायू कहते हैं, जो 450 किमी/सेकंड की रफ्तार से बहती है। सौर वायु और सौर ज्वाला के द्वारा अधिक ऊर्जा के कणो का प्रवाह होता है जिससे पृथ्वी पर बिजली की लाईनो के अलावा संचार उपग्रह और संचार माध्यमो पर प्रभाव पडता है। इसी से ध्रुविय क्षेत्रो में सुंदर अरोरा बनते हैं।
  • पृथ्वी से चंद्रमा और सूर्य एक ही आकार के दिखाई देते हैं। चन्द्रमा पृथ्वी की परिक्रमा उसी प्रतल में करता है जिस प्रतल में पृथ्वी सूर्य परिक्रमा करती है। इस कारण कभी कभी चन्द्रमा सूर्य और पृथ्वी के मध्य आ जाता है और सूर्य ग्रहण होता है। यह सूर्य चन्द्रमा और पृथ्वी का एक रेखा में आना यदि पुर्णतः ना हो तो चन्द्रमा सूर्य को आंशिक रूप से ही ढक पाता है हैं, इसे आंशिक चन्द्रग्रहण कहते हैं। तिनो खगोलिय पिण्डो के एक रेखा में होने पर चन्द्रमा सूर्य को पूरी तरह ढक लेता है जिससे पूर्ण सूर्यग्रहण होता है। आंशिक सूर्यग्रहण एक बृहद क्षेत्र में दिखायी देता है लेकिन पूर्ण सूर्यग्रहण एक बेहद संकरी पट्टी (कुछ किमी) में दिखायी देता है। हांलांकि यह पट्टी हजारो किमी लम्बी हो सकती है। सूर्यग्रहण साल में एक या दो बार होता है। पूर्ण सूर्यग्रहण देखना एक अद्भूत अनुभव है जब आप चन्द्रमा की छाया में खड़े होते है और सूर्य कोरोना देख सकते हैं। पक्षी इसे रात का समय सोचकर सोने की तैयारी करते हैं।
  • अंतरिक्ष यान युलीसीस से प्राप्त आंकड़ो से पता चलता है जब सौर गतिविधी अपने निम्न पर होती है ध्रुवीय क्षेत्रों से प्रवाहित सौर वायू दूगनी गति 750 किमी/सेकंड से बहती है जो कि उच्च अक्षासो में कम होती है। ध्रुवीय क्षेत्रों से प्रवाहित सौर वायू की संरचना भी अलग होती है । सौर गतिविधी के चरम पर यह यह अपने मध्यम गति पर बहती है।
  • सूर्य की उम्र 4.5 बिलियन वर्ष है अर्थात सूर्य 4.5 अरब वर्ष पूराना है। उसने अपने पास की कुल हाइड्रोजन का आधा हिस्सा प्रयोग कर लिया है लेकिन इसके पास अगले 5 अरब वर्षो के लिये पर्याप्त इंधन है अर्थात भविष्य में सूर्य के द्वारा ऊर्जा देते रहने का समय 1011 प्रकाशवर्ष है। उस समय उसकी चमक लगभग दूगनी हो जायेगी। लेकिन अतत: उसकी हाइड्रोजन खत्म हो जायेगी और वह एक लाल महादानव में बदल जायेगा। उस समय सूर्य मंगल की कक्षा तक फूल जायेगा। पृथ्वी नष्ट हो जायेगी। शायद सूर्य की मौत एक ग्रहीय निहारिका के रूप में होगी।

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