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'''टिकैत उमराव सिंह''' [[झारखण्ड]] के प्रसिद्ध क्रांतिकारी थे। [[वर्ष]] [[1857 क्रांति कथा|1857 ई. की क्रांति]] में उमराव सिंह और उनके छोटे भाई घासी सिंह ने बेमिसाल वीरता का प्रदर्शन किया था। [[अंग्रेज़]] सेना को [[राँची]] पर कब्जा करने से रोकने में टिकैत उमराव सिंह ने महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई थी।<ref>{{cite web |url= http://samvad.net/samvad-archieves-bibhuti.htm|title= झारखण्ड के विभूति|accessmonthday= 23 मई|accessyear= 2014|last= |first= |authorlink= |format= |publisher= |language=हिन्दी}}</ref>
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'''टिकैत उमराव सिंह''' [[झारखण्ड]] के प्रसिद्ध क्रांतिकारी थे। [[वर्ष]] [[1857 क्रांति कथा|1857 ई. की क्रांति]] में उमराव सिंह और उनके छोटे भाई घासी सिंह ने बेमिसाल वीरता का प्रदर्शन किया था। [[अंग्रेज़]] सेना को [[राँची]] पर क़ब्ज़ा करने से रोकने में टिकैत उमराव सिंह ने महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई थी।<ref>{{cite web |url= http://samvad.net/samvad-archieves-bibhuti.htm|title= झारखण्ड के विभूति|accessmonthday= 23 मई|accessyear= 2014|last= |first= |authorlink= |format= |publisher= |language=हिन्दी}}</ref>
  
 
*[[झारखण्ड]] के इतिहास में प्रसिद्ध टिकैत उमराव सिंह का जन्म ओरमांझी प्रखंड के खटंगा गाँव में हुआ था था।
 
*[[झारखण्ड]] के इतिहास में प्रसिद्ध टिकैत उमराव सिंह का जन्म ओरमांझी प्रखंड के खटंगा गाँव में हुआ था था।

१४:१६, ९ मई २०२१ के समय का अवतरण

टिकैत उमराव सिंह झारखण्ड के प्रसिद्ध क्रांतिकारी थे। वर्ष 1857 ई. की क्रांति में उमराव सिंह और उनके छोटे भाई घासी सिंह ने बेमिसाल वीरता का प्रदर्शन किया था। अंग्रेज़ सेना को राँची पर क़ब्ज़ा करने से रोकने में टिकैत उमराव सिंह ने महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई थी।[१]

  • झारखण्ड के इतिहास में प्रसिद्ध टिकैत उमराव सिंह का जन्म ओरमांझी प्रखंड के खटंगा गाँव में हुआ था था।
  • ये बारह गाँव के ज़मींदार हुआ करते थे। अंग्रेज़ों ने इनके घर को ढाह दिया था।
  • टिकैत उमराव सिंह हमेशा से शोषण तथा अत्याचार के ख़िलाफ़ रहे और इसके विरुद्ध आवाज़ बुलंद की।
  • इन्होंने 1857 ई. के विद्रोह को पूरे छोटा नागपुर में फैलाया और साथ ही विद्रोहितयों के बीच तालमेल बिठाया। चुटुपाल घाटी के फलों को तोड़वा दिया तथा वृक्षों को काटकर राँची आने वाला रास्ता रोक दिया था।
  • टिकैत उमराव सिंह को चुटुपालू घाटी में उनके दीवान शेख़ भिखारी के साथ एक वट वृक्ष पर एक ही डाली पर फाँसी दे दी गई थी।
  • आज भी झारखण्ड में उन्हें एक जनप्रिय नायक के रूप में याद किया जाता है।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. झारखण्ड के विभूति (हिन्दी)। । अभिगमन तिथि: 23 मई, 2014।

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