शिशिर ऋतु  

शिशिर एक बहुविकल्पी शब्द है अन्य अर्थों के लिए देखें:- शिशिर (बहुविकल्पी)
शिशिर ऋतु
विवरण शिशिर ऋतु भारत की छ: ऋतुओं में से एक ऋतु है। इस ऋतु में प्रकृति पर बुढ़ापा छा जाता है। वृक्षों के पत्ते झड़ने लगते हैं। चारों ओर कुहरा छाया रहता है। इसका आरम्भ मकर संक्रांति से भी माना जाता है।
समय माघ और फाल्गुन (15 जनवरी-फ़रवरी)
मौसम शिशिर में कड़ाके की ठंड पड़ती है। घना कोहरा छाने लगता है। दिशाएं धवल और उज्ज्वल हो जाती हैं मानो वसुंधरा और अंबर एकाकार हो गए हों। ओस से कण-कण भीगा जाता है।
अन्य जानकारी शिशिर में वातावरण में सूर्य के अमृत तत्व की प्रधानता रहती है तो शाक, फल, वनस्पतियां इस अवधि में अमृत तत्व को अपने में सर्वाधिक आकर्षित करती हैं और उसी से पुष्ट होती हैं।

शिशिर ऋतु (अंग्रेज़ी: Autumn Season) भारत की छ: ऋतुओं में से एक ऋतु है। विक्रमी संवत के अनुसार माघ और फाल्गुन 'शिशिर' अर्थात पतझड़ के मास हैं। इसका आरम्भ मकर संक्रांति से भी माना जाता है। शिशिर में कड़ाके की ठंड पड़ती है। घना कोहरा छाने लगता है। दिशाएं धवल और उज्ज्वल हो जाती हैं मानो वसुंधरा और अंबर एकाकार हो गए हों। ओस से कण-कण भीगा जाता है।

पतझड़ का मौसम

  • इस ऋतु में प्रकृति पर बुढ़ापा छा जाता है। वृक्षों के पत्ते झड़ने लगते हैं। चारों ओर कुहरा छाया रहता है। इस प्रकार ये ऋतुएं जीवन रूपी फलक के भिन्न-भिन्न दृश्य हैं, जो जीवन में रोचकता, सरसता और पूर्णता लाती हैं।
  • शिशिर ऋतु में फूलों के पौधे फूलों से लद जाते हैं। बाज़ार में नर्सरी से बिकने वाले पुष्पयुक्त पौधों की भरमार दिखाई देने लगती है।
  • सब्जियों के पौधे तथा लताएँ अपने उत्पादन की चरम स्थिति में इस ऋतु में ही पहुँच जाती है। बाज़ार सब्जियों से पट-सा जाता है। भोजन अत्यन्त सुस्वादु लगने लगता है और रसना उसका रस लेते हुए अघाती तक नहीं है। जठराग्नि इतनी तेज हो जाती है कि कुछ भी और कितना भी खाओ, सब पच जाता है।
  • यह ऋतु विसर्गकाल अर्थात् दक्षिणायन का अंतकाल कहलाती है। इस काल में चन्द्रमा की शक्ति सूर्य की अपेक्षा अधिक प्रभावशाली होती है। इसलिए इस ऋतु में औषधियाँ, वृक्ष, पृथ्वी की पौष्टिकता में भरपूर वृद्धि होती है व जीव जंतु भी पुष्ट होते हैं। इस ऋतु में शरीर में कफ का संचय होता है तथा पित्तदोष का नाश होता है।
  • शीत ऋतु में स्वाभाविक रूप से जठराग्नि तीव्र रहती है, अतः पाचन शक्ति प्रबल रहती है। ऐसा इसलिए होता है कि हमारे शरीर की त्वचा पर ठंडी हवा और हवा और ठंडे वातावरण का प्रभाव बारंबार पड़ते रहने से शरीर के अंदर की उष्णता बाहर नहीं निकल पाती और अंदर ही अंदर इकट्ठी होकर जठराग्नि को प्रबल करती है। अतः इस समय लिया गया पौष्टिक और बलवर्धक आहार वर्ष भर शरीर को तेज, बल और पुष्टि प्रदान करता है।

धार्मिक महत्व

शिशिर में वातावरण में सूर्य के अमृत तत्व की प्रधानता रहती है तो शाक, फल, वनस्पतियां इस अवधि में अमृत तत्व को अपने में सर्वाधिक आकर्षित करती हैं और उसी से पुष्ट होती हैं। मकर संक्रांति पर शीतकाल अपने यौवन पर रहता है। शीत के प्रतिकार तिल, तेल आदि बताए गए हैं। शिशिर में ठंड बढ़ने के कारण अनेक प्रकार के स्वास्थ्यवर्धक पाक, मेवों, दूध, गुड़-मूंगफली आदि शरीर को पुष्ट करते हैं। इस ऋतु में हाजमा ठीक रहता है। नई फसल आने पर परमात्मा को पहले अर्पित करते हैं इस समय व्रत-त्योहारों में तिल का महत्व बताया गया है। माघ माह में गणपति आराधना होती है। शनिश्चरी व सोमवती अमावस्या, मकर संक्रांति, तिलकुटा एकादशी, तिल चतुर्थी आदि पर्व आते हैं। स्वास्थ्य की दृष्टि से उपयोगी बातों का वैज्ञानिक दृष्टिकोण तो होता ही है, धर्म उसे कर्तव्य के रूप में विहित कर देता है। इसलिए मकर संक्रांति, लोहड़ी, पोंगल पर्व पर तिल प्रयोग विशेष बताया है। तिल-गुड़ से बने पदार्थ स्वास्थ्यकर होते हैं। धर्मशास्त्रों के अनुसार पौष और माघ मास में तिल और गुड़ का दान पुण्यकारक तथा सेवन हितकर होता है। शिशिर में वातावरण में शीतलता के साथ ही रूक्षता बढ़ जाती है। यह सूर्य का उत्तरायण काल होता है, इसमें शरीर का बल धीरे-धीरे घट जाता है। तिल विशेषतः अस्थि, त्वचा, केश व दांतों को मजबूत बनाता है। बादाम की अपेक्षा तिल में छह गुना से भी अधिक कैल्शियम है। इसीलिए इस ऋतु में आने वाले व्रत-त्योहार में तिल के सेवन करने के लिए कहा गया है। शीतकाल का खान पान वर्षभर रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाता है। शीतकाल के तीन-चार मासों में बनाए जाने वाले प्रमुख व्यंजनों में गोंद, मैथी, मगज के लड्डू और सौंठ की मिठाइयां प्रमुख हैं, जो स्वादिष्ट और सुपाच्य होती हैं तो स्वास्थ्य की दृष्टि से दवा का काम करती हैं। शिशिर में शीतल समीर की लहरें चलने लगती हैं। लोग ठंड से ठिठुरने लगते हैं। प्रचंड शीत से सूर्यनारायण की किरणों की प्रखरता मद्घिम हो जाती है। सूर्य किरणों का स्पर्श प्रिय लगने लगा है। अग्नि की ऊष्मा आकर्षित करने लगी है। शिशिरे स्वदंते वहितायः पवने प्रवाति...[१] अर्थात शिशिर में जब बर्फीली हवा बहती है तो अलाव तापना मीठा लगता है। मकर संक्रांति तीव्र शीतकाल का पर्व माना जाता है।[२]


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. मथुरानाथ शास्त्री
  2. शिशिर ऋतु में सूर्य बरसाता है अमृत (हिंदी) वेब दुनिया। अभिगमन तिथि: 23 जनवरी, 2018।

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