निमाड़  

निमाड़ मध्य प्रदेश का पश्चिमी क्षेत्र है। इसके भौगोलिक सीमाओं में एक तरफ़ विन्ध्य पर्वत और दूसरी तरफ़ सतपुड़ा हैं, जबकि मध्य में नर्मदा नदी है। पौराणिक काल में निमाड़ अनूप जनपद कहलाता था। बाद में इसे निमाड़ की संज्ञा दी गयी।

विभाजन

निमाड़ दो हिस्सों में विभाजित है- पूर्वी और पश्चिमी निमाड़।

  • यहाँ की बोली निमाड़ी कहलाई जाती है। पश्चिमी निमाड़ में खरगोन, गोगांव, महेश्वर, सेंधवा, भिकनगाव जैसे नगर है।
  • पूर्वी निमाड़ में खंडवा, हरसूद, पुनासा जैसे नगर है।

इसके भौगोलिक सीमाओं में निमाड़ के एक तरफ़ विन्ध्य पर्वत और दूसरी तरफ़ सतपुड़ा हैं, जबकि मध्य में नर्मदा नदी है। पौराणिक काल में निमाड़ अनूप जनपद कहलाता था। ऐसा अनुमान है कि आर्य एवं अनार्य सभ्यताओं की मिश्रित भूमि होने के कारण यह क्षेत्र निमार्य नाम से जाना जाने लगा जो कि कालांतर में अपभ्रंश होकर निमार एवं फिर निमाड़ में परिवर्तित हो गया। एक अन्य मतानुसार यह नाम नीम के वृक्षों के कारण पड़ा।

इतिहास

1 नवम्बर, 1956 के पूर्व यह जिला शासकीय रूप से निमाड़ जिला कहलाता था और तत्कालीन मध्य प्रदेश के महाकौशल क्षेत्र का एक भाग था। पुराने प्रांत निमाड़ का पश्चिमी भाग, जिस पर मूलतः होल्कर का अधिकार था, सन् 1948 में जब मध्य भारत राज्य का गठन हुआ। मध्य भारत का एक भाग बन गया। चूँकि राज्य पुनर्गठन के समय मध्य भारत क्षेत्र मध्य प्रदेश में मिला दिया गया, पुराने प्रांत निमाड़ का पश्चिमी भाग मध्य प्रदेश का भाग बन गया। उस क्षेत्र का, जिसका मुख्यालय खरगोन में था, पुराना नाम निमाड़ ही बना रहा और इसके महाकौशल क्षेत्र के पुराने निमाड़ जिले के पश्चिम में स्थित होने के कारण पश्चिम निमाड़ या पश्चिमी निमाड़ नाम पड़ा जबकि 1 नवम्बर, 1956 से इस जिले के नाम शासकीय रूप से पूर्व निमाड़ या पूर्वी निमाड़ कर दिया गया।

सन् 1776 में पेशवा ने इस इलाके को होल्कर, पंवार और सिंधिया में विभाजित कर दिया था और केवल कसरावद, कानापुर और बेड़िया के छोटे क्षेत्र स्वयं अपने लिये रख लिये थे। बाद में पेशवा और सिंधिया के अधीन क्षेत्र अंग्रेजों के अधिकार में आ गए और इस जिले के भाग बन गए।

निमाड़ में हज़ारों वर्षों से उष्म जलवायु रहा है। निमाड़ का सांस्कृतिक इतिहास अत्यन्त समृद्ध और गौरवशाली है। विश्व की प्राचीनतम नदियों में एक नदी नर्मदा का उद्भव और विकास निमाड़ में ही हुआ। नर्मदा-घाटी-सभ्यता का समय महेश्वर नावड़ाटौली में मिले पुरा साक्ष्यों के आधार पर लगभग ढ़ाई लाख वर्ष माना गया है। विन्ध्य और सतपुड़ा अति प्राचीन पर्वत हैं। प्रागैतिहासिक काल के आदि मानव की शरणस्थली सतपुड़ा और विन्ध्य की उपत्यिकाएं रही हैं। आज भी विन्ध्य और सतपुड़ा के वन-प्रान्तों में आदिवासी समूह निवास करते है। नर्मदा तट पर आदि अरण्यवासियों का निमाड़ पुराणों में वर्णित है। उनमें गौण्ड, बैगा, कोरकू, भील, शबर आदि प्रमुख हैं।

कला और संस्कृति

निमाड़ का जनजीवन कला और संस्कृति से सम्पन्न रहा है, जहाँ जीवन का एक दिन भी ऐसा नहीं जाता, जब गीत न गाये जाते हों या व्रत-उपवास कथावार्ता न कही-सुनी जाती हो। निमाड़ की पौराणिक संस्कृति के केन्द्र में ओंकारेश्वर, मांधाता और महिष्मती है। वर्तमान महेश्वर प्राचीन महिष्मती ही है। कालीदास ने नर्मदा और महेश्वर का वर्णन किया है।

निमाड़ की अस्मिता के बारे में पद्मश्री रामनारायण उपाध्याय लिखते है- "जब मैं निमाड़ की बात सोचता हूँ तो मेरी आँखों में ऊँची-नीची घाटियों के बीच बसे छोटे-छोटे गाँव से लगा जुवार और तूअर के खेतों की मस्तानी खुशबू और उन सबके बीच घुटने तक धोती पर महज कुरता और अंगरखा लटकाकर भोले-भाले किसान का चेहरा तैरने लगता है। कठोर दिखने वाले ये जनपद जन अपने हृदय में लोक साहित्य की अक्षय परम्परा को जीवित रखे हुए हैं।'

पश्चिमी निमाड़ क्षेत्र नर्मदा नदी के दक्षिणी भाग में स्थित है। विंध्याचल एवं सतपुड़ा पर्वतश्रेणियों से घिरा यह क्षेत्र भारत में उत्तर से दक्षिण को जाने वाले नैसर्गिक मार्ग में है। इतिहास में परमारों, पेशवाओं एवं होलकरों द्वारा शासित यह क्षेत्र ऐतिहासिक रूप से हमेशा महत्वपूर्ण रहा है। कुंदा और वेदा नदी के मुहाने पर बसा खरगौन जिला अपने भव्य मंदिरों के लिए पूरे राज्य में प्रसिद्ध है। यहां का प्राचीन नवग्रह मंदिर लोगों की गहरी आस्था से जुड़ा हुआ है।

पंडित माखनलाल चतुर्वेदी ने पूर्वी निमाड़ को अपनी कार्यस्थली बनाया और स्वतंत्रता आन्दोलन में जनजागृति में अपना योगदान किया। फिल्म अभिनेता अशोक कुमार और पार्श्वगायक किशोर कुमार भी यहीं खंडवा से थे। इसकी सीमा महाराष्ट्र से जुडी होने से यहाँ के सरल हृदयी लोगों के जीवन में, संस्कृति में महाराष्ट्र की झलक भी मिलती है। पूर्व निमाड़ (खंडवा) जिले के अधिकांश भाग प्रान्त निमाड़ कहलाने वाले पुराने प्रशासकीय उपसंभाग का एक भाग था। जिले के दक्षिणी भाग, तालनेर के पुराने प्रादेशिक संभाग में, जो बाद में खानदेश कहलाने लगा, शामिल था। कहा जाता है कि पूर्व निमाड़ में, पूर्व में गन्जाल नदी से लेकर पश्चिम में हिरनफल तक का नर्मदा घाटी का एक वृहद् भाग समाविष्ट था, इन दोनों स्थानों पर विन्ध्य और सतपुड़ा श्रेणियाँ नर्मदा नदी के तट पर एक दूसरे के बहुत निकट आ गई है।


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