चिवहे कोली  

चिवहे कोली (अंग्रेज़ी: Chivhe Koli) महाराष्ट्र के कोलियों का एक गोत्र है। यह ज़मीदार थे और मराठा साम्राज्य में किलेदार थे। ये 'नाइक' और 'सरनाईक' की उपाधियों से सम्मानित थे। चिवहे गोत्र के कोलियों ने छत्रपति राजाराम राजे भोंसले के कहने पर मुग़लों से पुरंदर किला छीन लिया था। पुरंदर किले और सिंहगढ़ किले पर चिवहे कोलियों की ही सरदारी रही।

  • सन 1763 में पेशवा ने आभा पुरंदरे को सरनाईक बना दिया था, जिसके कारण चिवहे कोलियों ने पेशवा के खिलाफ़ विद्रोह कर दिया और पुरंदर एवं सिंहगढ़ किले पर कब्जा कर लिया।
  • कोलियों को आभा पुरंदरे पसंद नहीं आया तो आभा ने कोलियों को किलेदारी से हटा दिया और नए किलेदार तैनात कर दिए जिसके कारण कोलियों ने 7 मई, 1764 में किलों पर आक्रमण कर दिया और अपने कब्जे में ले लिया।
  • पांच दिन बाद रुद्रमल किले को भी कब्जे में ले लिया और मराठा साम्राज्य के प्रधानमंत्री पेशवा रघुनाथराव को चुनोती पेश की।
  • कुछ दिन बाद पेशवा पुरंदर किले के अंदर देवता की पूजा करने के लिए किले में आया, लेकिन पेशवा कोलियों के हत्थे चढ़ गया। कोलियों ने पेशवा का सारा सामान और हथियार लूट लिए और उसको बन्दी बना लिया; लेकिन कुछ समय बाद छोड़ दिया।
  • इसके बाद कोलियों ने आसपास के क्षेत्र से कर वसूलना शुरू कर दिया। इसके बाद कोलियों के सरनाईक कोंडाजी चिवहे ने पेशवा के पास पत्र भेजा, जिसमें लिखा हुआ था "और जनाब क्या हाल चाल है, सरकार कैसी चल रही है मज़े में हो"। यह पत्र पढ़कर पेशवा कुछ ज्यादा ही अपमानित महसूस करने लगा और बौखलाकर मराठा सेना को आक्रमण का आदेश दे दिया; लेकिन सेना कुछ भी नही कर पाई क्योंकि कोली खुद ही किलेदार थे और किलों कि भली प्रकार किलेबन्दी कर रखी थी।
  • बाद में अपमानित पेशवा ने चिवहे गोत्र के कोलियों को बंदी बनाना शुरू कर दिया। जितने भी चिवहे गोत्र के कोली पेशवा के अधिकृत हिस्से में रह रहे थे, सभी को बागी घोषित कर दिया और बन्दी बनाया जाने लगा।
  • इसके बाद चिवहे कोलियों ने माधवराव के पास पत्र भेजा और पेशवा को समझाया गया। बाद में कोलियों ने किलों को माधवराव को सौंप दिया और चिवहे कोलियों को फिर से किलेदारी सौंप दी गई।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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