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गीता अध्याय-7 श्लोक-20 / Gita Chapter-7 Verse-20
प्रसंग-
अब दो श्लोकों में देवोपासकों को उनकी उपासना का कैसे और क्या फल मिलता है, इसका वर्णन करते हैं-
कामैस्तैस्तैर्हृतज्ञाना: प्रपद्यन्तेऽन्यदेवता: ।
तं तं नियममास्थाय प्रकृत्या नियता: स्वया ।।20।।
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उन-उन भोगों की कामना द्वारा जिनका ज्ञान हरा जा चुका है, वे लोग अपने स्वभाव से प्रेरित होकर उस-उस नियम को धारण करके अन्य देवताओं को भजते हैं, अर्थात् पूजते हैं ।।20।।
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Those whose wisdom has been carried away by various desires, being prompted by their own nature, worship other deities adopting rules relating to each.(20)
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स्वया = अपने ; प्रकृत्या = स्वभाव से ; नियता: = प्रेरे हुए (तथा) ; तै: = उन ; तै: = उन ; कामै: = भोगों की कामना द्वारा ; हृतज्ञाना: = ज्ञान से भ्रष्ट हुए ; तम् = उस ; तम् = उस ; नियमम् = नियम को ; आस्थाय = धारण करके ; अन्यदेवता: = अन्य देवताओं को ; प्रपद्यन्ते = भजते हैं अर्थात् पूजते हैं
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
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