क्षारयुक्त मिट्टी  

क्षारयुक्त मिट्टी (अंग्रेज़ी: Saline and Alkaline Soil) शुष्क और अर्धशुष्क क्षेत्रों, दलदली क्षेत्रों, अधिक सिंचाई वाले क्षेत्रों में पाई जाती है। इन्हें 'थूर', ऊसर, कल्लहड़, राकड़, रे और चोपन के नामों से भी जाना जाता है। शुष्क भागों में अधिक सिंचाई के कारण एवं अधिक वर्षा वाले क्षेत्रों में जल-प्रवाह दोषपूर्ण होने एवं जलरेखा उपर-नीचे होने के कारण इस मिट्टी का जन्म होता है। इस प्रकार की मिट्टी में भूमि की निचली परतों से क्षार या लवण वाष्पीकरण द्वारा उपरी परतों तक आ जाते हैं। इस मिट्टी में सोडियम, कैल्सियम और मैग्नेशियम की मात्रा अधिक पायी जाने से प्रायः यह मिट्टी अनुत्पादक हो जाती है।

परिभाषा

क्षारयुक्त मिट्टी उस प्रकार की मिट्टी को कहते हैं, जिसमें क्षार तथा लवण विशेष मात्रा में पाए जाते हैं। शुष्क जलवायु वाले स्थानों में यह लवण श्वेत या भूरे-श्वेत रंग के रूप में मृदा या मिट्टी पर जमा हो जाता है। यह मृदा पूर्णतया अनुपजाऊ एवं ऊसर होती हैं और इसमें शुष्क ऋतु में कुछ लवणप्रिय पौधों के अलावा अन्य किसी प्रकार की वनस्पति नहीं मिलती। इस तरह के मृदा को उत्तर प्रदेश में 'ऊसर' या 'रेहला', पंजाब में 'ठूर', कल्लर या बारा, मुंबई में चोपन, करल इत्यादि कहते हैं।

क्षारीयता का कारण

  1. मिट्टी खनिजों की उपस्थिति में खनिज अपक्षय के दौरान सोडियम कार्बोनेट और सोडियम बाइकार्बोनेट का उत्पादन।
  2. सोडियम कार्बोनेट, सोडियम बाइकार्बोनेट (बेकिंग सोडा), सोडियम सल्फेट, सोडियम हाइड्रोक्साइड (कास्टिक सोडा), सोडियम हाइपोक्लोराइट (ब्लीचिंग पाउडर) आदि जैसे औद्योगिक और घरेलू अपशिष्ट, उनकी उत्पादन प्रक्रिया या खपत में पानी की लवणता को भारी मात्र में बढ़ा देती है।
  3. कोयला से चलने वाले बॉयलर/बिजली संयंत्र, जब चूना पत्थर में समृद्ध कोयले या लिग्नाइट का उपयोग करते है तो कैशियम ऑक्साइड युक्त राख उत्पन्न करते हैं। कैशियम ऑक्साइड आसानी से पानी में घूल जाता है। फिर रासायनिक प्रक्रिया के कारण स्लाके लाइम का निर्माण करते हैं जो सिचाई या नदियों द्वारा मिट्टी या मृदा तक पहुंचती है और इस प्रकार मृदा या मिट्टी का लवणीकरण हो जाता है।
  4. सिंचाई (सतह या भूजल) में नरम पानी का उपयोग जिसमें अपेक्षाकृत उच्च मात्रा में सोडियम बाइकार्बोनेट और कम कैल्शियम और मैग्नीशियम होता है।

उपचार

इस मिट्टी को उर्वर बनाने के लिए ज्यादातर नाइट्रोजन, फॉस्फोरस तथा पोटैशियम का उपयोग किया जाता है लेकिन कैल्शियम एवं सल्फर का उपयोग गौण रखा जाता है। जिससे कैल्शियम एवं सल्फर की कमी की समस्या धीरे-धीरे विकराल रूप धारण कर रही है, इनकी कमी सघन खेती वाली भूमि, हल्की भूमि तथा अपक्षरणीय भूमि में अधिक होती है। कैल्शियम एवं सल्फर संतुलित पोषक तत्व प्रबन्धन के मुख्य अवयवकों में से है जिनकी पूर्ति के अनेक स्त्रोत हैं। इनमें से जिप्सम एक महत्वपूर्ण उर्वरक है। जिप्सम एक तलछट खनिज है और क्षारीय मृदा या मिट्टी के उपचार के लिए यह बहुत महत्वपूर्ण यौगिक माना जाता है। इसमें 23.3 प्रतिशत कैल्शियम एवं 18.5 प्रतिशत सल्फर होता है। जब यह पानी में घुलता है तो कैल्शियम एवं सल्फेट आयन प्रदान करता है। तुलनात्मक रूप से कुछ अधिक धनात्मक होने के कारण कैल्शियम के आयन मृदा में विद्यमान विनिमय सोडियम के आयनों को हटाकर उनका स्थान ग्रहण कर लेते है। आयनों का मटियार कणों पर यह परिर्वतन मृदा की रासायनिक एवं भौतिक अवस्था में सुधार कर देता है तथा मृदा फसलोत्पादन के लिए उपयुक्त हो जाती है।


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