एक्स्प्रेशन त्रुटि: अनपेक्षित उद्गार चिन्ह "१"।

"जाग तुझको दूर जाना -महादेवी वर्मा" के अवतरणों में अंतर  

[अनिरीक्षित अवतरण][अनिरीक्षित अवतरण]
छो (Text replace - "चिन्ह" to "चिह्न")
पंक्ति ३८: पंक्ति ३८:
 
आज पी आलोक को ड़ोले तिमिर की घोर छाया
 
आज पी आलोक को ड़ोले तिमिर की घोर छाया
 
जाग या विद्युत शिखाओं में निठुर तूफ़ान बोले!
 
जाग या विद्युत शिखाओं में निठुर तूफ़ान बोले!
पर तुझे है नाश पथ पर चिन्ह अपने छोड़ आना!
+
पर तुझे है नाश पथ पर चिह्न अपने छोड़ आना!
 
जाग तुझको दूर जाना!
 
जाग तुझको दूर जाना!
  

१०:५९, १ मार्च २०१२ का अवतरण

जाग तुझको दूर जाना -महादेवी वर्मा
कवि महादेवी वर्मा
जन्म 26 मार्च, 1907
जन्म स्थान फ़र्रुख़ाबाद, उत्तर प्रदेश
मृत्यु 22 सितम्बर, 1987
मृत्यु स्थान प्रयाग, उत्तर प्रदेश
मुख्य रचनाएँ 'मेरा परिवार', 'स्मृति की रेखाएँ', 'पथ के साथी', 'शृंखला की कड़ियाँ', 'अतीत के चलचित्र', नीरजा, नीहार
इन्हें भी देखें कवि सूची, साहित्यकार सूची
महादेवी वर्मा की रचनाएँ

चिर सजग आँखें उनींदी आज कैसा व्यस्त बाना!
जाग तुझको दूर जाना!

अचल हिमगिरि के हॄदय में आज चाहे कम्प हो ले!
या प्रलय के आँसुओं में मौन अलसित व्योम रो ले;
आज पी आलोक को ड़ोले तिमिर की घोर छाया
जाग या विद्युत शिखाओं में निठुर तूफ़ान बोले!
पर तुझे है नाश पथ पर चिह्न अपने छोड़ आना!
जाग तुझको दूर जाना!

बाँध लेंगे क्या तुझे यह मोम के बंधन सजीले?
पंथ की बाधा बनेंगे तितलियों के पर रंगीले?
विश्व का क्रंदन भुला देगी मधुप की मधुर गुनगुन,
क्या डुबो देंगे तुझे यह फूल दे दल ओस गीले?
तू न अपनी छाँह को अपने लिये कारा बनाना!
जाग तुझको दूर जाना!

वज्र का उर एक छोटे अश्रु कण में धो गलाया,
दे किसे जीवन-सुधा दो घूँट मदिरा माँग लाया!
सो गई आँधी मलय की बात का उपधान ले क्या?
विश्व का अभिशाप क्या अब नींद बनकर पास आया?
अमरता सुत चाहता क्यों मृत्यु को उर में बसाना?
जाग तुझको दूर जाना!

कह न ठंढी साँस में अब भूल वह जलती कहानी,
आग हो उर में तभी दृग में सजेगा आज पानी;
हार भी तेरी बनेगी माननी जय की पताका,
राख क्षणिक पतंग की है अमर दीपक की निशानी!
है तुझे अंगार-शय्या पर मृदुल कलियां बिछाना!
जाग तुझको दूर जाना!

संबंधित लेख


"https://amp.bharatdiscovery.org/w/index.php?title=जाग_तुझको_दूर_जाना_-महादेवी_वर्मा&oldid=257491" से लिया गया