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हसरतें ले गए इस बज़्म से चलने वाले
हाथ मलते ही उठे इत्र के मलने वाले।
वो गए गोर-ए-गरीबाँ[१] पे तो आई ये सदा
थम ज़रा ओ रविश-ए-नाज़ से चलने वाले।
देखिए क्या हवा लाए मेरे नामे का जवाब
पास उनके हैं बहुत ज़हर उगलने वाले।
इन जफ़ाओं पे वफ़ा करिए न करिए लेकिन
दिल बदलता नहीं ओ आँख बदलने वाले।
शर्म आलूदा[२] निगाहें तो करेंगी बिस्मिल
अब कोई आन में ये तीर हैं चलने वाले।
दिल ने हसरत से कहा तीर जो उसका निकला
देख इस तरहा निकलते हैं निकलने वाले।
दिल-ए-बेताब वो आते हैं ख़बर आई है
सब्र कर सब्र ज़रा मेरे मचलने वाले।
इमतेहान तेग़-ए-जफ़ा[३] का जो उन्हें हो मंज़ूर
बच- चा कर अभी टल जाते हैं टलने वाले।
गरमि-ए-सोहबत-ए-अग़यार[४] के शिकवे पे कहा
आप ऐ दाग़ हमेशा के हैं जलने वाले।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ आशिक़ की क़ब्र
- ↑ शर्म से भरी
- ↑ अत्याचार की
- ↑ दुश्मन के अधिक पास रहने पर
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