न जाओ हाल-ए-दिल-ए-ज़ार[१] देखते जाओ
कि जी न चाहे तो नाचार देखते जाओ।
बहार-ए-उमर में बाग़-ए-जहाँ की सैर करो
खिला हुआ है ये गुलज़ार देखते जाओ।
उठाओ आँख, न शरमाओ, ये तो महिफ़ल है
ग़ज़ब से जानिब-ए-अग़यार[२] देखते जाओ।
हुआ है क्या अभी हंगामा अभी कुछ होगा
फ़ुगां में हश्र के आसार देखते जाओ।
तुम्हारी आँख मेरे दिल से बेसबब-बेवजह
हुई है लड़ने को तय्यार देखते जाओ।
न जाओ बंद किए आँख रहरवान-ए-अदम[३]
इधर-उधर भी ख़बरदार देखते जाओ।
कोई न कोई हर इक शेर में है बात ज़रूर
जनाबे-दाग़ के अशआर देखते जाओ।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ द्रवित हृदय
- ↑ दुश्मनों की ओर
- ↑ परलोक सिधारने वाले
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