रंग में भंग  

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रंग में भंग एक बहुविकल्पी शब्द है अन्य अर्थों के लिए देखें:- रंग में भंग (बहुविकल्पी)

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रंग में भंग पंचतंत्र की प्रसिद्ध कहानियों में से एक है जिसके रचयिता आचार्य विष्णु शर्मा हैं।

कहानी

          एक बार जंगल में पक्षियों की आम सभा हुई। पक्षियों के राजा गरुड़ थे। सभी गरुड़ से असंतुष्ट थे। मोर की अध्यक्षता में सभा हुई। मोर ने भाषण दिया 'साथियो, गरुड़ जी हमारे राजा हैं पर मुझे यह कहते हुए बहुत दु:ख होता हैं कि उनके राज में हम पक्षियों की दशा बहुत ख़राब हो गई हैं। उसका यह कारण हैं कि गरुड़जी तो यहां से दूर विष्णु लोक में विष्णुजी की सेवा में लगे रहते हैं। हमारी ओर ध्यान देने का उन्हें समय ही नहीं मिलता। हमें अपनी समस्याएं लेकर फरियाद करने जंगली चौपायों के राजा सिंह के पास जाना पडता है। हमारी गिनती न तीन में रह गई हैं और न तेरह में। अब हमें क्या करना चाहिए, यही विचारने के लिए यह सभा बुलाई गई है।
हुदहुद ने प्रस्ताव रखा 'हमें नया राजा चुनना चाहिए, जो हमारी समस्याएं हल करे और दूसरे राजाओं के बीच बैठकर हम पक्षियों को जीव जगत् में सम्मान दिलाए।'
मुर्गे ने बांग दी 'कुकडूं कूं। मैं हुदहुदजी के प्रस्ताव का समर्थन करता हूं'
चील ने ज़ोर की सीटी मारी 'मैं भी सहमत हूं।'
मोर ने पंख फैलाए और घोषणा की 'तो सर्वसम्मति से तय हुआ कि हम नए राजा का चुनाव करें, पर किसे बनाएं हम राजा?'
सभी पक्षी एक दूसरे से सलाह करने लगे। काफ़ी देर के बाद सारस ने अपना मुंह खोला 'मैं राजा पद के लिए उल्लूजी का नाम पेश करता हूं। वे बुद्धिमान हैं। उनकी आँखेंं तेजस्वी हैं। स्वभाव अति गंभीर हैं, ठीक जैसे राजा को शोभा देता हैं।'
हार्नबिल ने सहमति में सिर हिलाते हुए कहा “सारसजी का सुझाव बहुत दूरदर्शितापूर्ण है। यह तो सब जानते हैं कि उल्लूजी लक्ष्मी देवी की सवारी है। उल्लू हमारे राजा बन गए तो हमारा दारिद्रय दूर हो जाएगा।”
लक्ष्मीजी का नाम सुनते ही सब पर जादू सा प्रभाव हुआ। सभी पक्षी उल्लू को राजा बनाने पर राजी हो गए।
मोर बोला 'ठीक हैं, मैं उल्लूजी से प्रार्थना करता हूं कि वे कुछ शब्द बोलें।'
उल्लू ने घुघुआते कहा 'भाइयो, आपने राजा पद पर मुझे बिठाने का निर्णय जो किया हैं उससे मैं गदगद हो गया हूं। आपको विश्वास दिलाता हूं कि मुझे आपकी सेवा करने का जो मौक़ा मिला है, मैं उसका सदुपयोग करते हुए आपकी सारी समस्याएं हल करने का भरसक प्रयत्न करुंगा। धन्यवाद।'
पक्षी जनों ने एक स्वर में ‘उल्लू महाराज की जय’ का नारा लगाया।
कोयलें गाने लगी। चील जाकर कहीं से मनमोहक डिजाइन वाला रेशम का शाल उठाकर ले आई। उसे एक डाल पर लटकाया गया और उल्लू उस पर विराजमान हुए। कबूतर जाकर कपडों की रंगबिरंगी लीरें उठाकर लाए और उन्हें पेड की टहनियों पर लटकाकर सजाने लगे। मोरों की टोलियां पेड के चारों ओर नाचने लगी।
मुर्गों व शतुरमुर्गों ने पेड के निकट पंजों से मिट्टी खोद-खोदकर एक बडा हवन तैयार किया। दूसरे पक्षी लाल रंग के फूल ला-लाकर कुंड में ढेरी लगाने लगे। कुंड के चारों ओर आठ-दस तोते बैठकर मंत्र पढ़ने लगे।
बया चिड़ियों ने सोनेचांदी के तारों से मुकुट बुन डाला तथा हंस मोती लाकर मुकुट में फिट करने लगे। दो मुख्य तोते पुजारियों ने उल्लू से प्रार्थना की 'हे पक्षी श्रेष्ठ, चलिए लक्ष्मी मंदिर चलकर लक्ष्मीजी का पूजन करें।'
निर्वाचित राजा उल्लू तोते पंडितों के साथ लक्ष्मी मंदिर की ओर उड चले उनके जाने के कुछ क्षण पश्चात् ही वहां कौआ आया। चारों ओर जश्न सा माहोल देखकर वह चौंका। उसने पूछा 'भाई, यहां किस उत्सव की तैयारी हो रही हैं?
पक्षियों ने उल्लू के राजा बनने की बात बताई। कौआ चीखा 'मुझे सभा में क्यों नहीं बुलाया गया? क्या मैं पक्षी नहीं?'
मोर ने उत्तर दिया 'यह जंगली पक्षियों की सभा हैं। तुम तो अब जाकर अधिकतर कस्बों व शहरों में रहने लगे हो। तुम्हारा हमसे क्या वास्ता?'
कौआ उल्लू के राजा बनने की बात सुनकर जल-भुन गया था। वह सिर पटकने लगा और कां-कां करने लगा 'अरे, तुम्हारा दिमाग ख़राब हो गया हैं, जो उल्लू को राजा बनाने लगे? वह चूहे खाकर जीता हैं और यह मत भूलो कि उल्लू केवल रात को बाहर निकलता है। अपनी समस्याएं और फरियाद लेकर किसके पास जाओगे? दिन को तो वह मिलेगा नहीं।'
कौए की बातों का पक्षियों पर असर होने लगा। वे आपस में कानाफूसी करने लगे कि शायद उल्लू को राजा बनाने का निर्णय कर उन्होंने ग़लती की है। धीरे-धीरे सारे पक्षी वहां से खिसकने लगे। जब उल्लू लक्ष्मी पूजन कर तोतों के साथ लौटा तो सारा राज्याभिषेक स्थल सूना पडा था। उल्लू घुघुआया 'सब कहां गए?'
उल्लू की सेविका खंडरिच पेड पर से बोली 'कौआ आकर सबको उल्टी पट्टी पढा गया। सब चले गए। अब कोई राज्याभिषेक नहीं होगा।'
उल्लू चोंच पीसकर रह गया। राजा बनने का सपना चूर-चूर हो गया तब से उल्लू कौओं का बैरी बन गया और देखते ही उस पर झपटता है।


सीख- कई में दूसरों के रंग में भंग डालने की आदत होती है और वे उम्र-भर की दुश्मनी मोल ले बैठते हैं।


टीका टिप्पणी और संदर्भ

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