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गीता अध्याय-9 श्लोक-29 / Gita Chapter-9 Verse-29
प्रसंग-
उपर्युक्त प्रकार से भगवान् की भक्ति करने वाले को भगवान् की प्राप्ति होती है, दूसरों को नहीं होती – इस कथन से भगवान् में विषमता के दोष की आशंका हो सकती है। अतएव उसका निवारण करते हुए भगवान् कहते हैं-
समोऽहं सर्वभूतेषु न मे द्वेष्योऽस्ति न प्रिय: ।
ये भजन्ति तु मां भक्त्या मयि ते तेषु चाप्यहम् ।।29।।
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मैं सब भूतों में समभाव से व्यापक हूँ, न कोई मेरा अप्रिय है और न प्रिय है; परन्तु जो भक्त मुझको प्रेम से भजते हैं, वे मुझमें हैं और मैं भी उनमें प्रत्यक्ष प्रकट हूँ ।।29।।
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I am eually present in all beings; there is none hateful or dear to me. They, however, who devoutly worship me abide in me; and I too stand revealed in them. (29)
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अहम् = मैं; सर्वभूतेषु = सब भूतों में; स: = समभावसे व्यापक हूं; द्वेष्य: = अप्रिय; अस्ति = है(और); प्रिय: = प्रिय है; माम् = मेरे को; भक्त्या = प्रेमसे; भजन्ति =भजते हैं; मयि = मेरे में; अहम् = मैं; तेषु = उनमें(प्रत्यक्ष प्रकट हूं) ;
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
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