गीता 8:7  

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गीता अध्याय-8 श्लोक-7 / Gita Chapter-8 Verse-7

प्रसंग-


अन्तकाल में जिसका स्मरण करते हुए मनुष्य मरता है, उसी को प्राप्त होता है; और अन्तकाल में प्राय: उसी भाव का स्मरण होता है, जिसका जीवन में अधिक स्मरण किया जाता है। यह निर्णय हो जाने पर भगवत्प्राप्ति चाहने वाले के लिये अन्तकाल में भगवान् का स्मरण रखना अत्यन्त आवश्यक हो जाता है और अन्तकाल अचानक ही कब आ जाय, इसका कुछ पता नहीं है; अतएव अब भगवान् निरन्तर भजन करते हुए ही युद्ध करने के लिये अर्जुन को आदेश करते हैं-


तस्मात्सर्वेषु कालेषु मामनुस्मर युध्य च ।
मय्यर्पितमनोबुद्धिर्मामेवैष्यस्यसंशयम् ।।7।।



इसलिये हे अर्जुन[१] ! तू सब समय में निरन्तर मेरा स्मरण कर और युद्ध भी कर। इस प्रकार मुझ में अर्पण किये हुए मन- बुद्धि से युक्त होकर तू नि:सन्देह मुझ को ही प्राप्त होगा ।।7।।

Therefore, Arjuna, think of me all times and fight. With mind and reason thus set on me, you will doubtless come to me. (7)


तस्मात् = इसलिये (हे अर्जुन तूं) ; सर्वेषु = सब ; कालेषु = समय में (निरन्तर) ; माम् = मेरा ; अनुस्मर = स्मरण कर ; च = और ; युध्य = युद्ध युद्ध भी कर (इस प्रकार) ; मयि = मेरे में ; अर्पितमनोबुद्धि: = अर्पण किये हुए मन-बृद्धि से युक्त हुआ ; असंशयम् = नि:संदेह ; माम् = मेरे को ; एव = भी ; एष्यसि = प्राप्त होगा



अध्याय आठ श्लोक संख्या
Verses- Chapter-8

1 | 2 | 3 | 4 | 5 | 6 | 7 | 8 | 9 | 10 | 11 | 12, 13 | 14 | 15 | 16 | 17 | 18 | 19 | 20 | 21 | 22 | 23 | 24 | 25 | 26 | 27 | 28

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अध्याय / Chapter:
एक (1) | दो (2) | तीन (3) | चार (4) | पाँच (5) | छ: (6) | सात (7) | आठ (8) | नौ (9) | दस (10) | ग्यारह (11) | बारह (12) | तेरह (13) | चौदह (14) | पन्द्रह (15) | सोलह (16) | सत्रह (17) | अठारह (18)

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. महाभारत के मुख्य पात्र है। वे पाण्डु एवं कुन्ती के तीसरे पुत्र थे। सर्वश्रेष्ठ धनुर्धर के रूप में वे प्रसिद्ध थे। द्रोणाचार्य के सबसे प्रिय शिष्य भी वही थे। द्रौपदी को स्वयंवर में भी उन्होंने ही जीता था।

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